कटिया फंसाने को सामाजिक स्वीकृति है यहां

मिसिराइन (कल्पित नाम; फिर भी सभी मिसिर-मिसिराइन जी से क्षमा याचना सहित) हफ्ते भर से फड़फड़ी खा रही थीं. बिजली वाले से किसी बात पर तनी तना हो गयी थी और वह इलेक्ट्रानिक मीटर लगा गया था. मीटर फर्र-फर्र चल रहा था और मिसिराइन का दिल डूबा जा रहा था. वो जिस-तिस से समस्या का समाधान पूछ रही थीं.

मिसिराइन गली (मुहल्ला नहीं लिखूंगा, वह ब्लॉगिंग में एक जमात का नाम है) की लीडर हैं. चुनाव का बखत है. वैसे भी बहुत काम हैं उनको. पार्टी का गली में का प्रचार उनके जिम्मे है. गलत मौके पर यह मीटर पुराण हो गया. अच्छी भली जिन्दगी में यह फच्चर फंस गया. मीटर था कि एक दिन में 14 यूनिट चल रहा था. पहले 4-5 सौ रुपये का बिल आता था; अब दो हजार महीने की चपत पड़ने वाली थी…

आज अचानक रास्ते में दिख गयीं मिसिराइन.उनसे नमस्ते कर आगे चलने पर मैने पत्नी से पूछा क्या समाधान निकला मिसिराइन के मीटर का. पत्नी ने बताया कि सिम्पल सा समाधान निकला. मीटर 4-5 सौ रुपये का चलेगा. बाकी काम एक महीने कटिया फंसा कर होगा. उसके बाद मीटर खराब हो जायेगा बिजली वाले से सेट हो गया है. फिर पुराने मीटर रीडिंग के अनुसार बिल आया करेगा.

राम-राम; कटिया फंसाना क्या उचित है? मैने पूछा.

“इसमें क्या है? बहुत लोग ऐसा कर रहे हैं.” पत्नी ने जवाब दिया.

कुछ अटपटा लगा. मैं सोचता था कि गरीब लोग; जिनके पास अथराइज्ड कनेक्शन नहीं हैं वे ही कटिया फंसाते हैं. पर यहां तो सभ्य-सम्पन्न-आदर्श बघारने वाला मध्यवर्ग यह कर रहा है. कटिया फंसाने को सामाजिक स्वीकृति है। ज्यादा कुरेदा जाये तो उसका सैद्धांतिक तर्क भी सामने आ सकता है।

रेलवे के बंगले में रहते यह सब देखने को नहीं मिला था. अब पिताजी के मकान में रहने पर समाज के विभिन्न रंग देखने को मिल रहे हैं. इसे लेकर अपने को (अनुभव के लिये) भाग्यशाली मानूं, या जीवन के पचड़ों से साक्षात्कार होने पर क्षुब्ध महसूस करूं समझ में नहीं आता. खैर, देर सबेर अपने देश-समाज में लौटना ही था. अब नहीं तो अगले दशक में लौटता….

अगले दशक में कटिया रहेगा या नहीं? कटिया न भी रहे समाज में मुफ्तखोरी और सबसिडी की जो लत लग गयी है वह क्या एक दशक में चली जायेगी? शायद नहीं।

यह तो देखना ही था।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

9 thoughts on “कटिया फंसाने को सामाजिक स्वीकृति है यहां

  1. “‘System’ bhrasht hai….”Aur tab tak rahega jab tak ‘Mishraeen’ khud ko system ka hisaa nahin maanti..Poori samasya yahin se shuru hoti hai ki tathakathit samaaj khud ko system ka hissa nahin maanta..Hamare liye system mein neta, sarkari afsar, police waale aur kanoon waale hi hain…Bada aasaan hai system ko gaali dena.Sarkari afsar agar ghuskhri mein lipt na rahe to uske ghar waale use koste hain.Agar apne kisi rishtedaar (jo ki nikamma hai) agar sifaaris karke naukri na lagwa de, koi uske saath baat nahin karta..Rishtedaar yahi kahte milenge ki kuchh nahin hai iske andar, aajtak kisi ka bhala nahin kiya…Bhrashtachar ke sabke apne-apne khand-dweep hain, aur sabhi apne dweep par sukh se rahna chaahte hain..Is ghatna ka ek achchha pahlu bhi hai..Aur woh ye hai ki, Uttar Pradesh mein bijli milti hai..Chaahe katiya laga kar hi mile..

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  2. यहां कंटिया फ़ंसाने की सामाजिक स्वीकृति है.धनिया में लीद मिलाने और कालीमिर्च में पपीते के बीज मिलाने को सामाजिक अनुमोदन है.रिश्वत लेना और देना सामान्य और स्वीकृत परंपरा है और उसे लगभग रीति-रिवाज़ के रूप में मान्यता है.कन्या-भ्रूण की हत्या यहां रोज़मर्रा का कर्म है और अपने से कमज़ोर को लतियाना अघोषित धर्म है .पर अगर एक लड़की अपनी मर्ज़ी से अपनी पसन्द के किसी लड़के से शादी कर ले तो महाभारत और विश्व-युद्ध है, बिजली का ४४० वोल्ट का करेंट है,पाप और पतन की पराकाष्ठा है. फ़लाने की लड़की भाग गई इसका जोर-शोर से संचार और प्रचार है और उससे उपजा जुगुप्सा और जुगाली का रसबोध है .

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  3. अरे यार! पूरा सिस्टम ही भ्रष्ट है। बिजली वाले, बिजली चोरी के तरीके बताते है। और तो और, समानान्तर अवैध बिजली(डायरेक्ट खंबे से) की लाइने चलती है। मुझे याद है जब मै कानपुर मे रहता था तो अवैध बिजली की तीन लाइने दिखती थी, सुपर, डीलक्स और प्रीमियम। सुपर मे वोल्टेज का उतार चढाव रहेगी, डीलक्स मे कभी कभी ही लाइट जाएगी। प्रीमियम मे चढावा ऊपर तक जाता है, मोहल्ले की लाइट चली जाए, तब भी आपकी लाइट आएगी। जित्ता मर्जी एयरकंडीशनर चलाओ। चाहो तो हीटर पर ही खाना बनाओ। ये सब केसा (अब केस्को) की क्षत्रछाया में हो रहा था।

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  4. पांडेयजी, ये मिसराइन की क्या बात है! वो तो खाली अपने पंखा-बिजली के खातिर कटिया फंसाती हैं। यहां हम तमाम साधन संपन्न लोगों को देखते हैं कि उनके यहां हर कमरे में एयर कंडीशनर है और बिल आता है कुल जमा चार सौ पांच हजार। का करोगे महाराज!

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  5. “…मुहल्ला नहीं लिखूंगा, वह ब्लॉगिंग में एक जमात का नाम है…”आपने तो यहाँ भी कंटिया फंसा दी!वैसे एमपी में कंटिया फंसाने का पुराना रिवाज है – जब से हमारे माननीय अर्जुन सिंह जी सीएम थे कोई बीसेक साल पहले… और उन्होंने एम पी से भारत में मुफ़्त बिजली बांटने की शुरूआत की थी जिसे अन्य राज्यों ने बाद में अपनाया. उसके बाद तो बिजली बोर्ड नंगा हो गया. कोई ये कैसे देख सकता है कि पड़ोसी तो कंटिया लेकर लीगल तरीके से मुफ़त बिजली ले रहा है और उसका अपना मीटर फर्राटे मार रहा है. कोई भी नहीं देख सकता.

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  6. पांडे जीइस बार उ प्र यात्रा के दौरान इस संस्कृति से परिचय प्राप्त किया था. बड़ा दुख होता था देखकर, जब सक्षम लोग भी इसी का पालन करते दिखे.

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