शवयात्रा


अभी सवेरे दफ्तर आते समय मेरा वाहन झटके से रुका. चौराहा था. ड्राइवर ने आड़ी सड़क पर एक कारवां के चलते वाहन रोका था. उस कारवां में सबसे आगे एक मल्टी-यूटिलिटी-वेहीकल का पीछे वाला ऊपर की ओर उठ कर खुलने वाला दरवाजा खुला था. वेहीकल में लम्बाई में एक फूलों से लदा शव रखा था. वह वेहीकल गंगा किनारे रसूलाबाद के श्मशान घाट की तरफ जा रहा था. उसके पीछे 8-10 कारें थीं. सबके शीशे चढ़े हुये थे. गाड़ियों का कारवां धीमी रफ्तार से चल रहा था.

पहले का जमाना होता तो जुलूस सा जाता. “रामनाम सत्त है” बोलता हुआ. शव को कन्धा देने वाले बदलते रहते. आधे रास्ते में शव का सिर घुमाकर उल्टी दिशा में ले आया जाता. धीरे-धीरे चलते लोग वैराज्ञ महसूस करते. पर यहां तो मामला दूसरे प्रकार का था.

गाड़ियां निकल गयीं. पर नहीं. केवल एक बची थी. थोड़ा अंतर पर एक अंतिम गाड़ी आ रही थी. उसमें एक शीशा खुला था. उसमें से एक आदमी हल्का सा बाहर मुंह निकाल कर बोल रहा था – “राम-नाम सत्त है.”

मुझे लगा कि यह व्यक्ति मेरे प्रकार का है. तकनीकी विकास के युग में रह रहा है, पर अपने संस्कारों का सलीब भी ढो रहा है. मुझे उससे भाईचारे का अहसास हुआ.

शवयात्रा का कारवां अपने रास्ते गया और मेरा वाहन अपने रास्ते. पर यह प्रकरण मुझे सोचने का मसाला दे गया.


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

9 thoughts on “शवयात्रा

  1. चलते चलिये. वो दिन दूर नहीं जब कोरियर से शवयात्रा तय होगी और कोरियर घर पर हंडिया में राख पहुँचा जायेगा.-इनका नसीब कि कम से कम कार से कोई राम नाम सत्य तो बोल रहा है. पुण्य आत्मा की शान्ति के लिये प्रार्थना.

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  2. हम जैसे पुराने संस्कारों को ढोने वाले किसी अंजान शवयात्रा को देख अब भी रूक कर सिर झुका लेते हैं लेकिन आने वाले समय में शायद लोगो के पास अपनों के लिए भी फुर्सत नही होगी। ..आप का इस घट्ना को पोस्ट बनाना आप की संवेदनशीलता को दर्शाता है।

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  3. तकनीकी विकास के साथ-साथ इंसान बदल तो जाता है लेकिन साथ-साथ संस्कारों के सलीब ढोने का दिखावा करता रहता है. जब इस आदमी ने कार की खिड़की से सर निकाला होगा तो अगल-बगल जरूर देखा होगा की; कोई देख तो नहीं रहा.

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  4. ज्ञान भाई आपने शव को प्रणाम किया या नहीं। मेरा ममियाउर यानी ननिहाल कलिजरा नाम के एक गाँव में है। यह ऐन गंगा के तट पर बसा ऐसा गाँव है जहाँ घाट है श्मशान भी है। बचपन में जब भी हमारे सामने से कोई शव गुजरता नाना या मामा कहते कि प्रणाम करके सिर ढंक लो। आज तक नहीं जान पाया कि क्यों सिर ढंकने को कहते थे। चलते-चलते कबीर का एक दोहा-माला आवत देख के कलियां करी पुकार फूलै-फूलै चुन लई, काल्ह हमारी बार।

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  5. महंगी कार वालों के बीच मरना बहुत खराब होता है। सारे के सारे जाने की जल्दी में होते हैं। सारे के सारे मेकअप कांशस होते हैं।सारे के सारे वहां क्यों होते हैं। बाई दि वे आपकी कार कौन सी है।

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  6. ज्ञान भाईहम तो बात अपनी बात शेर मैं कहने के आदि हैं सो सुनिये एक हमारा ही शेर :किसको निस्बत रही ज़माने मैं ,अब कहाँ दिल के रिश्ते नाते हैं लोग चलते हुए ज़नाज़े मैं आजकाल चुटकुले सुनाते हैं !!आप ने शुक्र है की कम से कम ऐसा भध्धा दृश्य तो नहीं देखा !नीरज

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  7. अच्छा है जी की लोग अभी भी चले जाते है वरना फूल भेजने का चलन भी अब भारत मे शुरू हो गया है..किसी दिन किसी विदाई मे चार लोग भी ना जूटेगे और फूल तथा एस एम एस ढेरौ होगे..और आज हम भी हम भी यही गलती करके आये है,क्या करे जीवन की चाल के साथ चलना पड रहा है वक्त की भी अपनी जरूरते है..

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  8. बुद्ध के बाद किसी शवयात्रा ने किसी को तकनीकि की जटिलता के मध्य बाजार के प्रभावी होने और समाज की सतह से छीजते संस्कार पर सोचने का “मसाला” दिया. उस शवयात्रा को नमन.

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