हरतालिका तीज की पूर्व सन्ध्या की खरीद


(मनिहारी की दुकान में खरीददारी में जुटी महिलायें)

बुरे फंसे हरतालिका तीज की पूर्व सन्ध्या खरीद में. मेरी पत्नी कल शाम को खरीददारी के लिये निकल रही थीं. मैं साथ में चला गया इस भाव से कि इस बहाने शाम की वॉक हो जायेगी. पर पैदल चलना हुआ सो हुआ, खरीददारी में चट गये पूरी तरह. बाजार में बेशुमार भीड़ थी. सभी औरतें तीज के एक दिन पहले ही खरीददारी को निकली थीं. टिकुली, बिन्दी, आलता, रिबन, नेल पॉलिश, शीशा, कंघी, मेन्हदी, डलिया, चूड़ी, कपड़ा, सिंधूरदानी, बिछिया, शंकर-पार्वती की कच्ची मिट्टी की मूर्ति… इन सब की अपनी अपनी श्रद्धानुसार खरीद कर रही थीं वे सभी औरतें. छोटी-छोटी दुकानें, भारी भीड़ और उमस. सारा सामान लोकल छाप और डुप्लीकेट ब्राण्ड. अंतत: वह ब्राह्मण/ब्राह्मणी को दान ही दिया जाना है तो मंहगा कौन ले! पर उसमें भी औरतें पसन्द कर रही थीं रंग और स्टाइल. कीमतों में मोल भाव की चेंचामेची मचा रही थीं.

कुल मिला कर मुझे लगा कि अगर ब्लॉग न लिखना हो और सरकारी नौकरी न हो तो सबसे अच्छा है मनिहारी की दुकान खोल कर बैठना. बस आपमें लोगों की खरीददारी की आदतें झेलने की क्षमता होनी चाहिये और बिना झल्लाये सामान बेचने का स्टैमिना. बहुत मार्केट है!

एक और बात नोट की – त्योहार हिन्दुओं का था पर मनिहारी की दुकान वाले मुसलमान थे.

पत्नी जी जब तक खरीददारी कर रही थीं – तब मोबाइल से मैने कुछ फोटो लिये दुकानों के. उनमें से दो का आप अवलोकन करें.

(सड़क के किनारे ठेले पर लगी तीज विषयक दुकान)

अब हरतालिका तीज के बारे में कुछ पंक्तियां सरका दी जायें. शैलराज हिमालय की पुत्री ने शिव को वर रूप में पाने के लिये विभिन्न प्रकार से तप- व्रत किया:

नित नव चरन उपज अनुरागा, बिसरी देह तपहिं मनु लागा ||
संबत सहस मूल फल खाए, सागु खाइ सत बरष गवाँए ||

पुनि परिहरे सुखानेउ परना, उमहि नाम तब भयउ अपरना ||
देखि उमहि तप खीन सरीरा, ब्रह्मगिरा भै गगन गभीरा ||
भयउ मनोरथ सुफल तव सुनु गिरिजाकुमारि, परिहरु दुसह कलेस सब अब मिलिहहिं त्रिपुरारि ||

शैलजा को जब तप-व्रत से शिव मिल गये तो वही फार्मूला हमारी कुमारियों-विवाहिताओं ने अपना लिया. उमा की तरह सहस्त्रों वर्ष तो नहीं, हरतालिका तीज के दिन वे निर्जल व्रत और शृंगार कर शिव जैसा पति पाने की कामना करती हैं. भगवान उन्हें सफल करें और इस प्रक्रिया में सभी पुरुषों को शिव जैसा भोला-भण्डारी बना दें!


वैसे कल हमें पता चला कि बाबा तुलसीदास अपनी वसीयत तो विद्वानों के नाम कर गये हैं. हम जैसे लण्ठ के हाथ तो गड़बड़ रामायण ही है. लिहाजा तुलसी को उधृत करना भी शायद साहित्यिक अपराध हो!

बढ़िया है; बाबा ने अपने जमाने में संस्कृत के साहित्यिक पण्डितों को झेला और अब हिन्दी के साहित्यिक पण्डित उनपर अधिकार करने लगे! जय हो! जिस “मति अनुरूप राम गुन गाऊं” को उन्होने “गिरा ग्राम्य” में आम जन के लिये लिखा, अंतत: साहित्यकारों ने उसपर अपना वर्चस्व बना ही लिया.

बोधिसत्व और अभय क्षमा करें. वे मित्रवत हैं, इसलिये यह फुटनोट लिखा. अन्यथा चुप रह जाते!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

13 thoughts on “हरतालिका तीज की पूर्व सन्ध्या की खरीद

  1. क्या बात है! सभी दुकान खोल रहे हैं! एक ही मार्केट में खोल लीजिये. दोपहर या कभी भी खाली व्क्त मिलने पर ब्लागर-मीट (माफ कीजियेगा मिलन) भी हो जाया करेगा. ज्ञान भाई! आप क्या कहते हैं?

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  2. चलो भाई अब खरीददारी मे कोई दिक्कत नही आएगी। और शायद कुछ कंसेशन भी मिल जाएगा आख़िर ब्लॉगर भाईयों की दुकान जो है। :)

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  3. मुझे कई प्रकाशकों के यहाँ से किताब बेचने के लिए उनकी दुकान पर बैठने का बुलावा है। पर हो सकता है मैं अपनी किताब की दुकान या सायकिल से अखबार फेंकने का काम करूँ। और कोई धंधा मैं नहीं कर सकता। ज्ञान भाई अभय के साथ ही मुझे भी माफ करदें।क्षमा बड़न को चाहिए,छोटन को उत्पातक्षमा नहीं करने पर बच्चे लेते हैं काट।

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  4. आप इंटरनेट पर मनिहारी की दुकान क्यों नही खोल लेते ?औरतें टिकुली, चूड़ी की ई-शापिंग भी करेगीं साथ ही आपके उपदेशों के टिप्स भी मिलेंगें।

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  5. ज्ञानदत्तजी,अगर हमने कभी कोई दुकान खोली तो कचौडी की दुकान खोलेंगे । हमारे घर के पास (मथुरा में) मोहन मिष्ठान्न भंडार है, मोहन भैया सुबह ४ घंटे के लिये भगवान बन जाते हैं । हर कोई चिल्लाता है, मोहन भाई दो कचौडी, मोहन भाई ६ कचौडी । और मोहन भाई जिसे देख लें वो निहाल हो जाये ।दुकान खोलेंगे तो कचौडी की ही, ये तो पक्का है वरना तेल के धंधे में जिन्दगी बिता देंगे :-)

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  6. ‘धर्म परिवर्तन’ का ज़माना है. आईडिया बुरा नहीं है. ब्लागर धर्म वाले धर्म परिवर्तन का सहारा लेकर ‘खुदरा-व्यापार धर्म’ की शरण में जा सकते हैं. ख़तरा केवल रिलायंस और भारती ग्रुप से रहेगा.@पुराणिक जी,सर प्राइवेट इक्विटी के लिए कोई संभावना हो तो बताईयेगा. हम तैयार हैं. नाम भी सजेस्ट कर दे रहा हूँ. कार्पोरेट के नाम के हिसाब से ‘ए पी वाटर बाल्स लिमिटेड’ (मेरा मतलब फुचका के ठेले से है) ठीक रहेगा. फ़ूड प्रोसेसिंग के नाम पर चलाया जा सकता है.:) :)

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  7. एक दुकान की फोटू के ऊपर पर्सनाल्टी डेवपलमेंट का बैनर लगा हुआ, बोले तो पर्सनाल्टी चमकानी हो, तो दुकानदारी और वो भी लेडीज के आइटमों की दुकानदारी करनी चाहिए। साड़ी की दुकानदारी बंदे को एकाध हफ्ते में इत्ता धैर्यवान बना देती है कि वह मोक्ष के करीब हो जाता है। ये वाला कलर वो वाला डिजाइन,वो वाला फिनिश और यह वाला प्राइज -सारे कांबिनेशन्स जमाना सीख लेता है। पर दुकान खोलने के मामले गोलगप्पे की दुकान खोलना सही विकल्प है। हुल्लड़ मुरादाबादी की कुछ लाइनों का आशय यह है कि चाहता है जो हसीनों से करीबी,चाट का ठेला लगा ले। अभी जरा काम धाम से फुरसत मिल जाये, तो इंडिया गेट पर चाट का ठेला लगाना है। ज्वाइंट वेंचर चाहिए, तो अभी से पईसा भिजवा दीजिये।

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  8. रहीमन गाय बजाय के दियो काठ मे पाव..? ये आप को क्या सूझी ..? कहा चल दिये थे आप .. ? हमे तो डर है कि अब कही रिटायर होकर यहा से वहा ना शिफ़्ट हो जाओ..? लेकिन चिंता नही है वो रोग आपके बस का है नही लौट जल्दी ही आओगे..

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  9. मनिहारी की दुकान खोल कर भी तो ब्लॉगिंग कर सकते हैं. फुटनोट बंदों से चिंता न पालें, अपने हिसाब से चलें.

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