रेलवे का सबसे बड़ा सिरदर्द – लेवल क्रॉसिन्ग की दुर्घटनायें


जब मैं गोरखपुर में पूर्वोत्तर रेलवे की सुरक्षा की जिम्मेदारी संभाल रहा था, तब जिस खबर से मुझे अत्यधिक भय लगता था वह था – रेलवे के समपार फाटकों (level crossings) पर होती दुर्घटनायें. अधिकतर ये घटनायें बिना गेटमैन के समपार फाटकों पर होती थीं. उनपर रेलवे का बहुत नियन्त्रण नहीं होता. हम लोग लेवल क्रासिन्ग की सड़क को समतल रखने, उसपर सड़क के चिन्ह ठीक से लगवाने, विज्ञापन जारी करने कि लोग समपार फाटक दोनो ओर देख समझ कर पार करें और विघ्न विनाशक विनायक का स्मरण करने के अलावा विशेष कुछ नहीं कर पाते थे. उत्तर प्रदेश और बिहार की जनता माथे पर कफन बांध कर सड़कों पर चलती है. रेल से आगे निकल जाने की एक जंग जीतने को सदैव तत्पर रहती है. कई-कई जगहों पर जहां रेल और सड़क समान्तर चलते हैं – वहां वाहन लहक-बहक कर रेल पर चले आते हैं. जब खडे़ हो जाते हैं पटरी के बीचों बीच तो ड्राइवर और अन्य लोग तो सटक लेते हैं (मौका मिल पाया तो) और आने वाली रेलगाड़ी को वाहन से निपटने को छोड़ जाते हैं. कई बार इस तरह से अवपथन के मामले हुये हैं. पर तकलीफ तब होती है जब वाहन में सवार लोगों की जानें जाती हैं. एक बार तो एक ही कार में ८ लोग काल के ग्रास में चले गये थे, जब उनकी कार अन-मैन्ड रेलवे क्रासिंग पर ४०० मीटर तक ट्रेन इन्जन से घिसटती गयी थी.

मेरे पास आंकड़ों के चार्ट है – कुल दुर्घटनाओं और रेलवे के लेवल क्रॉसिन्ग्स पर हुई दुर्घटनाओं के उनमें हिस्से के. जरा उसके चित्र पर नजर डालें:

भारतीय रेलवे पर दुर्घटनायें उत्तरोत्तर कम हुई हैं; बावजूद इसके कि नेटवर्क और यातायात बढा़ है.

Level crossing

पर लेवल क्रासिंग दुर्घटनाओं का प्रतिशत (कुल में) पिछले एक दशक में बढ रहा है.

समपार फाटकों की दुर्घटनायें कम करने में लोगों में जागरूकता लाने के साथ साथ समपार फाटकों पर गेटमैन उपलब्ध कराना, समपारों को अन्तर्पार्शित करना, उनपर ट्रैन-एक्चुयेटेड वार्निन्ग डिवाइस लगाना, समपार की सड़क की गुणवत्ता में सुधार करना आदि उपाय काम में लाये जा रहे हैं. पर ये सभी उपाय खर्चीले हैं. और इन उपायों को भी जनता अगर तुल जाये तो विफल कर देती है. गेटमैन से जबरन गेट खुलवाने और न खोलने पर मारपीट करने के मामले बढ़ते जा रहे हैं. लोग इतने खुराफाती या अपराधिक मनोवृत्ति के हो गये हैं कि अन्तर्पार्शन (interlocking) से छेड़-छाड़ करने से बाज नहीं आते. इसके साथ साथ सड़क यातायात का दबाव बढ़ता जा रहा है. उत्तरप्रदेश और बिहार के मैदानी भाग में सड़कों का जाल बढ़ता जा रहा है और लोग समपार फाटकों को कम करने की बजाय, उत्तरोत्तर बढाने की मांग करते हैं. लोग पर्यावरण के नाम पर लोग सेतुसमुद्रम का विरोध करेंगे; पर सुरक्षा के नाम पर अगले रोड-ओवर ब्रिज से जाने की बजाय सीधे रेल लाइन पर स्कूटर कुदाते पाये जायेंगे.

जन-जागरण की बहुत जरूरत है समपार दुर्घटनाओं से बचाव के लिये.


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

11 thoughts on “रेलवे का सबसे बड़ा सिरदर्द – लेवल क्रॉसिन्ग की दुर्घटनायें

  1. सर,
    आपको शायद याद होगा 1998 मे रतलाम मण्डल मे कालीसिंध- किसोनी स्टेशनो के मध्य एक समपार पर भोपाल इंन्दौर ईंटरसिटी एक्सप्रेस एक ट्रेक्टर ट्राली से टकराई थी . मैं उस समय ईंटरसीटी की केब मे ही था.
    क्या भयावह दृष्य था . आज भी रोंगटे खडे हो जाते है.

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