हर मुश्किल का हल होता है – बनाम बेलगाम कविता


कई बार बड़ी अच्छी बात बड़े सामान्य से मौके पर देखने को मिल जाती है. एक बार (बहुत सालों पहले) बड़ी फटीचर सी फिल्म देखी थी – कुंवारा बाप. उसमें बड़ा अच्छा गीत था-

आंसुओं को थाम ले
सब्र से जो काम ले
आफतों से न डरे
मुश्किलों को हल करे
अपने मन की जिसके हाथ में लगाम है
आदमी उसी का नाम है.

फ़टीचर फिल्म और इतने अच्छे अर्थ वाली कविता!

इसी प्रकार कई बार ट्रकों – बसों के पीछे लिखे कथन बहुत भाते हैं – बेहिसाब सार्थक पर किन्ही मायनों में बेलगाम. जैसे कुछ दिन पहले दिल्ली में एक बस के पीछे लिखा पाया था –

हर मुश्किल का हल होता है
आज नहीं तो कल होता है

GDP(021)

आप जरा देखें – यह बस, जिसपर उक्त पंक्तियां लिखी हैं; किसी भरत सिंह पुण्डीर, एफ-२७६, लक्ष्मीनगर की है. पुण्डीर जी, पूरी सम्भावना है आलोक पुराणिक के उखर्रा पूड़ी वाले की तरह लठ्ठमार आदमी होंगे. बस की मालिकी और उसे चलवाना कविता करने छाप काम नहीं है. पर बात क्या पते की कही है उन्होने! सुबुक सुबुकवादी उपन्यास लेखन या फलाने-ढिमाके वाद की “टहनी पर टंगे चांद” वाली कविता की बजाय मुझे तो भरत सिंह पुण्डीर जी की यह दो पंक्तियां बहुत सार्थक लगी हैं.

आपने भी ऐसी सार्थक पर तथाकथित खालिस काव्य से अस्सी कोस दूर की पंक्तियां कहीं न कहीं पढ़ी होंगी जिनमें बड़े काम का जीवन दर्शन होता है! ऐसी पंक्तियां अगर याद हों तो जरा बताने का कष्ट करेंगे?

और न याद आ रही हों पंक्तियां तो इस पहेली को ही हल करें, जो हमारे जैसे किसी गड़बड़ जोड़क – तोड़क (धरती के इस हिस्से में रहने वाले) ने लिखी होगी, जिसे गणित का तो ज्ञान रहा ही न होगा:

एक अजगर चला नहाइ
नौ दिन में अंगुल भर जाइ
असी कोस गंगा के तीर
कितने दिन में पंहुचा बीर!1


1. अगर उंगली आधा इंच मोटी है तो 18.14 करोड़ दिनों में! तब तक अजगर के फरिश्ते भी जिन्दा न होंगे!

पर साहब, अजगर को गंगा नहाने की क्या पड़ी थी? मैने तो आजतक अजगर को नहाते नहीं देखा! ये पन्क्तियां किसी स्थापित कवि ने लिखी होती तो पूछते भी!

मैं सोचता था टिप्पणियां नहीं आयेंगी. पर टिप्पणियां तो इतनी मस्त हैं कि पोस्ट को मुंह चिढ़ा रही हैं!

(पोस्ट छापने के ढ़ाई घण्टे बाद का अमेण्डमेण्ट)


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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

16 thoughts on “हर मुश्किल का हल होता है – बनाम बेलगाम कविता

  1. आपकी पोस्ट पर टिप्पणी ना करें ऎसा हो सकता है क्या ? आपने सचमुच बहुत अच्छा लिखा है.ट्रक के पीछे की एक दूरगामी सोच वो भी एक बेहद संवेदनशील और जटिल मुद्दे पर आपका कहना सही है.ऎसेही लिखेते रहिये.बहुत बहुत बहुत धन्यवाद !

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  2. कोयले के ढेर में हीरा ढूढने वाली आँख है आप के पास तभी कहाँ कहाँ से सार्थक विषय ले आते हैं !भला हो शिव का जो तिपयाने के बहाने देश की एक अत्यन्त गोपनीय रिपोर्ट को सार्वजनिक कर देते हैं! लगता है आप की शरण में आए बाद उनको किसी का कोई डर ही नहीं रहा ! तभी वो कहते फिरते हैं आप से १३ मेरा ७ रहे.नीरज

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  3. ट्रक के पीछे भी साहित्य की एक विधा है. यह दूरगामी सोच देखिये-बुरी नज़र वाले तेरे बच्चे जियें.बड़े होकर तेरा खून पियें.

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  4. पिछली बार मैंने पोस्ट लिख दी थी. टिपण्णी करने का अपना अधिकार सुरक्षित रखा था…..ट्रक पर लिखे गए शेर/कविता कुछ मैंने भी देखा है….कीचड में पाँव दोगे तो धोना ही पड़ेगादोस्त को उधार दोगे तो रोना ही पडेगाहट जा रे मारुति हट जा ५४३२ आ रही हैथोड़ी सी जगह दे दे हावडा जा रही हैए मालिक क्यों बनाया मोटर बनाने वाले कोघर से बेघर कर दिया, मोटर चलाने वाले को

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  5. मालिक की गाड़ी ड्राइवर का पसीना, सड़क पर चलती है बन के हसीना |मालिक की जिन्दगी बिस्किट और केक पर,ड्राइवर की जिन्दगी स्टेयरिंग और ब्रेक पर |१३ मेरा ७ |

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  6. अजगर वाली बुझौवल मेरे बाबा मुझसे जाड़े के दिनों में तपता तापते हुए पूछा करते थे। और…ट्रक नहीं, एक कार के पीछे लिखी दो लाइनें पेश हैं – सौ में अस्सी हैरान, बीस परेशानक्या यही है मेरा भारत महानबड़े-बड़े विद्वान…इसके बाद ऐसे ही बिंदु थे। लेकिन बनारस के आसपास या बीएचयू में पढ़ा कोई शख्स बता देगा कि बड़े-बड़े विद्वान के बाद का ठेका क्या है।

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  7. आपकी पोस्ट पर टिप्पणी ना करें ऎसा हो सकता है क्या..फिर भी आप लिख सकते थे.51 के fool ,हजार की मालाना टिपियाने वाले,तेरा मुँह काला

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  8. आज आपकी फिर से एक माईक्रो पोस्ट. वो भी एक बेहद संवेदनशील और जटिल मुद्दे पर.इसलिए कमेंट के नाम पर मैं एक पोस्ट लिख रहा हूँ, हमेशा की तरह….इस अजगर वाली कविता का बड़ा ऐतिहासिक महत्व है.इसके बारे में जो लोग नहीं जानते हैं, उनको मैं बता दूँ.असल में इस कविता का अर्थ जब लोगों को नहीं समझ में आया तो लोगों ने भारत सरकार के हिन्दी विभाग को चिट्ठी लिखकर जानकारी लेनी चाही.सरकार के पास क़रीब ५४००० चिट्ठियां पहुँची. हारकर सरकार ने इस कविता की जांच सीबीआई को सौंप दी. लेकिन सीबीआई की रिपोर्ट को सरकार ने उजागर नहीं होने दिया.सीबीआई की रिपोर्ट में लिखा था;’ये कविता एक स्थापित कवि की नहीं अपितु एक विस्थापित कवि की विकट छायावादी कविता है.गंगा पर बाँध बनाने के लिए सरकार ने गंगा के किनारे रहने वाले कवि श्री भुल्लन मिश्र के मकान को गिराकर उन्हें विस्थापित कर दिया.मिश्र जी के विस्थापित होने के क़रीब तीस सालों के बाद भी जब बाँध का काम नहीं शुरू हुआ, तो उन्हें लगा कि उनके मकान की कुर्बानी व्यर्थ हो गई.सरकार के प्रोजेक्ट में हुई बेहिसाब देरी से खीझ कर मिश्र जी ने ये कविता लिखी थी.सीबीआई द्वारा इस कविता की व्याख्या कुछ यूं हुई….अजगर का मतलब एक ऐसा जीव जो सभी कुछ निगल लेता है, ठीक सरकार के प्लान की तरह से, जिसमें न जाने कितना पैसा, समय, श्रम वगैरह चला जाता है.उसके बाद भी कोई प्लान समय से नहीं लागू हो पाता.अजगर के गंगा नहाने का मतलब एक ऐसा काम जो जीवन में कभी नहीं हो पायेगा.अब अजगर अगर नौ दिन में एक अंगुल चलेगा, तो गंगा के तीर कैसे पहुंचेगा…………आपका कहना सही है. ये बाँध कभी नहीं बन सका…

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  9. इस गोत्र-कुल का एक शेर चचा गालिब भी छोड़ गये हैं-गालिबे खस्ता के बगैर कौन से काम बंद हैंरोईये जार जार क्या, कीजिये हाय हाय क्यू

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  10. फुरसतिया सुकुल का कहना है कि टिप्पणी बिना पोस्ट विधवा की मांग की तरह होती है. इस गड़बड़ सी पोस्ट पर मेरी आशंका है कि कहीं सिन्दूर पड़े ही न! लिहाजा मैं ही टिप्पणी कर देता हूं.———-एक बस के पीछे कितना मार्मिक लिखा था: कीचड़ में पैर डालोगी, धोना ही पड़ेगा.ड्राइवर से शादी करोगी, रोना ही पड़ेगा. अपनी जिन्दगी पर ड्राइवर भी हंस लेता है!

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