बैठे ठाले मेरे iGoogle पन्ने के गूगल समाचार ने लिंक दिया कि टाटा हाइड्रोजन आर्धरित मिनी बस बनायेगा। अंग्रेजी में सीफी, अर्थ टाइम्स, और टाइम्स ऑफ़ इण्डिया में ये लिंक मिले। बाद में नवभारत टाइम्स में भी यह लिंक हिन्दी में भी मिला।
« टाटा एमडीआई के साथ मिल कर सम्पीड़ित वायु पर आर्धारित वाहन की योजना भी रखते हैं। उसमें देरी होती दिख रही है। अब यह उद्जन आर्धारित वाहन की बात प्रसन्न करने वाली है।
क्रायोजीनिक तकनीक का प्रयोग आम जीवन में करने की बात और देशों मे भी है। कहीं तो इस तरह के वाहन चल भी रहे होंगे। पर वह सब रिसर्च-डेवलेपमेण्ट के नाम पर बहुत खर्च और सनसनी के साथ होता होगा। टाटा और इसरो वाली बात में तो यह फ्र्यूगल टेक्नॉलॉजी (frugal technology) जैसा लग रहा है – जुगाड़ तकनीक जैसा!
मुझे इन तकनीकों से भविष्य के अन्य उपकरण चलने की कल्पना में भी कुलबुलाहट होती है। मेरा स्वप्न यह है कि हर घर में रेलवे के प्रथम श्रेणी के फ़ोर बर्थर कम्पार्टमेण्ट जैसा छोटा एयर कण्डीशण्ड कमरा बन सके – आगे आने वाली गर्मियों की प्रचण्डता से निजात देने को। उसमें ईंधन पर खर्च लगभग उतना ही हो जितना रूम कूलर में होता है। वह अगर इस प्रकार के वैकल्पिक और प्रदूषण रहित साधनों से कभी सम्भव हो सका तो क्या मजा है! ऑफ कोर्स; दिल्ली दूर है – पर इस प्रकार की खबरें उस स्वप्न को देखने के लिये एक नया इम्पेटस (impetus – आवेग) देती हैं!
इसरो की रॉकेट टेक्नॉलॉजी के आम जीवन में उपयोग – क्या बढ़िया खबर है!
(हत्या/मारकाट/गला रेत/राखी सावन्त के प्रणय प्रसंग/आतंक के मुद्दे पर लपेट/मूढ़मति फाउण्डेशन की निरर्थक उखाड़-पछाड़ आदि से कहीं बेहतर और रोचक है यह!)
बढिया जानकारी। पर यह भी सही है हमारे मीडीया मे तकनीकी जानकारी रखने वाले कम है। और सब कुछ वे पहली बार बता रहे है, की तर्ज पर प्रस्तुत करना चाहते है।
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देल्ही दूर सही लेकिन पहुँच में है….आज नहीं तो कल पहुँच जायेंगे. ख़बर अच्छी है और कभी साकार भी होगी ही.नीरज
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बढिया खबर सुनायी………
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अच्छी खबर!!भगवान करे वो दिन भी आए कि आपका उपरोक्त सपना सच हो!!! ऐसी पोस्ट में भी राखी सावन्त याद आ ही गई??;राम-राम-राम, आजकल के बड़े बुजुर्ग भी न……क्या कहें 😉
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ख़बर अच्छी है. बहुत सी आशाएं जगाती है. जल्द ही ये पायलट प्रोजेक्ट पूरा हो. और सफलता मिले हमारी यही कामना है.
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@ Anonymous – आपके लिंक्स के लिये धन्यवाद मित्र। बीएचयू इनीशियेटिव, 50 डेमो वेहीक्ल्स का सालों से चलना आदि बहुत अच्छी लगने वाली खबरें हैं – और इनके बारे में जानकारी न मिलना गलत प्रर्यॉरिटीज का नतीजा है। बुधिया की गाय ने दो मुंह वाला बछड़ा जना – यह तो खबरों में आ जाता है पर इस प्रकार की बातें नहीं। अधिकांश रिपोर्टर वैज्ञानिक/तकनीकी खबर को सरल भाषा में समझ और पेश नहीं कर पाते।
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खबर तो भौत धांसू है। एक धांसू खबर और आयी है आप कैलिफोर्निया जर्नल आफ टेक्नोलोजी देखते हैं या नहीं। इसमे एक खबर आयी है कि कुछ खास किस्म के गधों के पसीने को बतौर पेट्रोल इस्तेमाल किया जा सकता है। ऐसे गधे एशिया के कुछ इलाकों में ही पाये जाते हैं। पश्चिमी पाकिस्तान और अफगानिस्तान में खास तौर पर। अगर ये तकनीक सफल हो जाये, तो फिर हमें गधे भी इंपोर्ट करने पड़ेंगे।जरा इस पर कुछ शोधिये।
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Badi majedar lekin ghatiya reporting hai.Shayad patrkaar mahoday jinhone report likha hai unhone agal bagal jhakane ki jarurat hi nahi samajhi ki hydrogen enegy vehicles par bharat me kitana kaam huaa hai.jara in links par jaaye aur dekhe.http://www.adb.org/Documents/Events/2001/RETA5937/New_Delhi/documents/nd_23_malhotra.pdfwww.cpcb.nic.in/oldwebsite/alternatefuel/ch60403.htm http://www.en.articlesgratuits.com/hydrogen-cars-no-petrol-no-diesel-hydregen-cars-id725.php http://www.iahe.org/News.asp?id=28 Dhanyawaad
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सचमुच अच्छी खबर है!
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आपने बहुत ही बढिया खबर पढवाई, आपका स्वपन जलद ही साकार हो, यही शुभकामना।Post script बहुत पसंद आई 🙂
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