ऐसा क्यूं है?


अजीब लगता है। हिन्दी ब्लॉग जगत में बहुत प्रतिभा है। बहुत आदर्श है। बहुत सिद्धांत हैं। पर आम जिन्दगी स्टिंक कर रही है।
 
मैं घर लौटते समय अपने ड्राइवर का बन्धुआ श्रोता होता हूँ। वह रेडियो पर फोन-इन फिल्मी फरमाइशी कार्यक्रम सुनाता है। एक लड़की बहुत प्रसन्न है कि उसका पहली बार फोन लग गया है। उद्घोषिका उस लड़की से उसकी पढ़ाई और उसकी भविष्य की योजनाओं के बारे में पूछती है। लड़की पहली बार फोन लगने में चकाचौंध महसूस कर रही है। पोलिटिकली करेक्ट जवाब देने की बजाय साफ साफ कह बैठती है -“क्या बतायें, अपनी शादी के बारे में बहुत परेशान हैं।”

उद्घोषिका असहज महसूस करती है। नहीं समझ पाती कि यह बेबाक कथ्य कैसे समेटे। वह आदर्शवादी बात कहती है – “आप अभी मन लगा कर पढ़ें। आगे कैरियर बनाने की सोचें। शादी तो समय आने पर होगी ही —” फिर लड़की भी दायें बायें बोलती है। वह भी समझ गयी है कि अपने मन की बात साफ साफ बोल कर फिल्मी गाने के कार्यक्रम में तनाव सा डाल दिया है उसने।
 
मेरा ड्राइवर भी असहज महसूस करता है। अचानक वह रेडियो बन्द कर देता है। मैं एक लम्बी सांस ले कार के बाहर की लाइटें देखने और सोचने लगता हूं।

बहुत आदर्श बूंकने वाले हैं। कविता में, गद्य में, आमने में, सामने में, सब में। दहेज की समस्या यथावत है। समता – समाजवाद की अबाध धारा बह रही है। जला देने के मामले और तिल तिल कर जिलाने के मामले भी ढ़ेरों हैं। कम नहीं हो रहे। जागृति न जाने कहां बिला जाती है। जिससे मिलो, वही कहता है कि उसे अच्छी बहू चाहिये, पैसा नहीं। या फलाने लड़के की शादी में उन्होने कुछ नहीं मांगा/लिया।
 
फिर वह फोन-इन वाली लड़की परेशान क्यूं है?
 
इतने सारे विद्वान और आदर्शवादी हैं कि समाज पटा पड़ा है। तब यह सड़ांध कहां से आ रही है जी? तब एक सांवली सी इन्सिपिड (insipid – नीरस, मन्द, फीकी) आंखों वाली लड़की परेशान और भयभीत क्यूं है?
 
ऐसा क्यूं है जी?


भारत में प्राप्त आंकड़ों के अनुसार चार घण्टे या उससे कम में एक दहेज – मौत होती है। यह तो नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े हैं। असलियत अधिक भयावह होगी।


 

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

19 thoughts on “ऐसा क्यूं है?

  1. बात तो पते की है ज्ञानजी. और मेरी सलाह है की वो लडकी बजाय रेडियो वाली को फोन लगाने के आपके ब्लॉग पर अपना प्रश्न पूछे. परेशानी का ग्यारंटीड हल होगा.

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  2. आपने एक बड़ी और जटिल बात बड़ी आसानी से कह दी है…आपको लगातार पढ़ रहा हूँ…पर अक्सर चुप रह जाता हूँ…

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  3. भारतीय साहित्य और कला या मीडिया जगत का सबसे बड़ा संकट उसका आडम्बर और दोमुहांपन ही है. भाई लोग झंडा उठाए फिरेंगे अमेरिका मी हत्या के खिलाफ. छाता तानेंगे चीन में बरसात के ख़िलाफ़. अपने देश में जब कोई आतंकवादी मारा जाएगा या उसे पकड़ा जाएगा तो मानवाधिकार का मसला उठाया जाएगा. लेकिन उन मुद्दों पर कोई बात तक नहीं करेगा जिनसे जनता सचमुच जूझ रही है. सबकी स्थिति उन बाबाओं जैसी है जो अपने धर्म के अनुयायिनों की संख्या घटने के लिए दूसरे धर्मों को जिम्मेदार ठहराते फिरते हैं, लेकिन अपने गिरेबान में झाँकने की हिम्मत कभी नहीं करते. आपने एक सार्थक मसला उठाया इसके लिए धन्यवाद. वैसे ब्लॉग पर ही ऐसे मसलों को लेकर अभियान चलाया जा सकता है. इस बारे में आपका क्या ख्याल है?

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  4. ऐसा इसलिए है क्यूंकि हम सभी इन बातों से अपने आप को ये सोचकर अलग रखते है कि ये हमारी परेशानी नही है।

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