अभी कहां आराम बदा…


श्चिम रेलवे के रतलाम मण्डल के स्टेशनों पर रॉबर्ट फ्रॉस्ट की कविता का हिन्दी अनुवाद टंगा रहता था। यह पंक्तियां नेहरू जी को अत्यन्त प्रिय थीं:

गहन सघन मनमोहक वन, तरु मुझको याद दिलाते हैं
किन्तु किये जो वादे मैने याद मुझे आ जाते हैं

अभी   कहाँ आराम बदा यह मूक निमंत्रण छलना है
अरे अभी तो मीलों मुझको , मीलों मुझको चलना है


अनुवाद शायद बच्चन जी का है। उक्त पंक्तियां मैने स्मृति से लिखी हैं – अत: वास्तविक अनुवाद से कुछ भिन्नता हो सकती है। 


मूल पंक्तियां हैं:

 

The woods are lovely dark and deep
But I have promises to keep
And miles to go before I sleep
And miles to go before I sleep.

कल की पोस्ट “एक सामान्य सा दिन” पर कुछ टिप्पणियां थीं; जिन्हे देख कर यह कविता याद आ गयी। मैं उत्तरोत्तर पा रहा हूं कि मेरी पोस्ट से टिप्पणियों का स्तर कहीं अधिक ऊंचा है। आपको नहीं लगता कि हम टिप्पणियों में कही अधिक अच्छे और बहुआयामीय तरीके से अपने को सम्प्रेषित करते हैं?!


Business Standard
कल बिजनेस स्टेण्डर्ड का विज्ञापन था कि वह अब हिन्दी में भी छप रहा है। देखता हूं कि वह इलाहाबाद में भी समय पर मिलेगा या नहीं। “कारोबार” को जमाना हुआ बन्द हुये। यह अखबार तो सनसनी पैदा करेगा!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

22 thoughts on “अभी कहां आराम बदा…

  1. अब टिप्पणियों को लेकर आपने बात ही कुछ ऐसी कह दी कि आज तो ठान ली है कि में भी कुछ धाँसू टिपण्णी लिखू. ….कुछ सोचता हूँ……………………………………………………………प्रयास जारी है शायद शाम तक कुछ लिख पाऊँ………..

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  2. ज्ञान जी, आपको ‘कारोबार’ अभी तक याद है? मैं उस कारोबार का न्यूज एडिटर हुआ करता था। सारी टीम बनाने में अहम रोल था मेरा। अभी तो मुझे नहीं लगता कि बिजनेस स्टैंडर्ड आपकी अपेक्षाओं को पूरा कर पाएगा।

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  3. रॉबर्ट फ्रॉस्ट मेरे पसंदीदा कवियों में से रहे हैं. उनकी कई कविताओं का भावानुवाद करने का प्रयास किया है. यह जिस कविता के अंश हैं, उनका भी एक समय भावानुवाद किया था कृप्या नजर डालें. बहुत प्रेरणादायक कविता है यह अंग्रेजी वाली:http://udantashtari.blogspot.com/2006/03/robert-frost_15.html

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  4. ज्ञान जी ,दशकों पहले बी बी सी हिन्दी सेवा पर सुनी हुई वही पंक्तियाँ मुझे इस तरह याद हैं -सुंदर सघन मनोहर वन तरु मुझको आज बुलाते हैं मगर किए जो वादे मैंने याद मुझे आ जाते हैं अभी कहाँ आराम मुझे ,यह मूक निमंत्रण छलना है और अभी तो मीलों मुझको ,मीलो मुझको चलना है .’बदा’ थोडा भदेस सा है अतः मैंने ख़ुद मूल रचनाकार[????] से क्षमा याचना सहित संपादित कर दिया है .राबर्ट फ्रास्त की यह कविता पंडित नेहरू की मेज पर लिखी पायी गयी थी ..ऐसा कहीं पढा था .कितनी स्फूर्ति और जीवन का स्पंदन है इन लाईनों मे…धन्यवाद

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  5. सामान्य सा दिन प्रविष्टी में आपका काव्यानुवाद पसंद आया और आज बच्चन जी का भी – अच्छी बातें जहाँ कहीं भी लिखी गयीं या पढी गयीं या सुनने में आयीं , वहीं किसी न किसी मन को संदेशा देतीं गयीं — यही भाषा और मनुज का मेल है !

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  6. अनूप शुक्ल > (पुराणिक जी से हिसाब बराबर करते) वे असली टिप्पणीकार और नकलची ब्लागर हैं। हैं कि नहीं आप ही बताइये। :)क्या बतायें? कीर्ति-सुकीर्ति भी उन्ही की है। लिखने से मालपानी भी वही खींच रहे हैं। … यह जरूर है कि एक बार उनके छात्रों की कापियां हमें मिल जायें तो हम भी अपना स्तर बढ़ा लें! :-)

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  7. “आपको नहीं लगता कि हम टिप्पणियों में कही अधिक अच्छे और बहुआयामीय तरीके से अपने को सम्प्रेषित करते है”आपने सही कहा लेकिन यह शायद प्रक्रति का नियम है। सृजन करना कठिन है। एक विचार को विषय बनाना और उस पर लिखना कठिन काम है, पर एक विचार को बढाना, उस पर अपनी राय देना या समालोचना करना आसान ह। इसी कारण कई बार टिप्पणीयां बहुआयामीय लगती है।

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  8. आराम हराम है इसीलिये कह गये हैं चाचा जी कि कुछ न कुछ करते रहो। टिप्पणियों का ‘अस्तर’ तो उंचा है लेकिन पोस्टें तो नींव की ईंट हैं न! आलोक पुराणिक देखिये टिप्प्णियां कित्ती धांसू लिखते हैं जबकि लेख उत्ते अच्छे नहीं लिख पाते। जब देखो तब किसी टापर की कबाड़-कापी से मसाला चुराकर टीप देते हैं। वे असली टिप्पणीकार और नकलची ब्लागर हैं। हैं कि नहीं आप ही बताइये। :)

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  9. धन्यवाद हर शाम को बढ़िया ब्लॉग पढ़वाने के लिए.आप के लिए यह सुबह ही होती है लेकिन हमारे लिए तो शाम है. अनामी टिप्पणिया इसलिए की नम पता लिखने का कौन कष्ट उठाये, वैसे आजकल हिन्दी ब्लॉग जगत मे अनामी लोगो का बहुत आतंक है और अनामी टिप्पणिया लिखने पर सामुहिक गाली खाने का बहुत खतरा है , फ़िर भी आलस्य जिन्दाबाद.

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  10. टिप्पणियों का स्तर ब्लॉग के अंकों से बेहतर जा रहा है, यह मैं ने भी महसूस किया है। हम आलेख के स्थान पर टिप्पणियां अधिक अच्छी कर रहे हैं। इस का एक कारण यह हो सकता है कि हमें विषय मिला हुआ होता है और टिप्पणी करते हुए हम अधिक सजग होते हैं। ब्लॉगस्पॉट क्या एक चिट्ठाकार द्वारा की गई सभी टिप्पणियों को एक स्थान पर उपलब्ध करा सकता है? यदि ऐसा है तो मैं अपनी टिप्पणियों को संग्रह करना चाहूँगा। हो सकता है इस का कोई अन्य जुगाड़ हो सकता हो। आप का चलता चित्र भी यही कहता है-And miles to go before I sleep.

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