यह ब्लडी पसन्दगी की जरूरत


अजीब बात है; पोस्ट लिखने पर वाह-वाह की टिप्पणियों की चाह चाह नहीं जरूरत बन गयी है और कब बनी, पता न चला। चाह और जरूरत में अंतर है। यह दुष्ट सेल्फ-अप्रूवल सीकिंग मन सड़ल्ला है। बड़ी जल्दी कमजोर बन जाता है। चाह को जरूरत (want को need) में बदल देता है। हमारे नेताओं में;Continue reading “यह ब्लडी पसन्दगी की जरूरत”

दलाई लामा का आशावाद


मैने दलाई लामा को उतना पढ़ा है, जितना एक अनिक्षुक पढ़ सकता है। इस लिये कल मेरी पोस्ट पर जवान व्यक्ति अभिषेक ओझा जी मेरे बुद्धिज्म और तिब्बत के सांस्कृतिक आइसोलेशन के प्रति उदासीनता को लेकर आश्चर्य व्यक्त करते हैं तो मुझे कुछ भी अजीब नहीं लगता। मैं अपने लड़के के इलाज के लिये धर्मशालाContinue reading “दलाई लामा का आशावाद”

एक अजूबा है ल्हासा की रेल लाइन


कल तिब्बत पर लिखी पोस्ट पर टिप्पणियों से लगा कि लोग तिब्बत के राजनैतिक मसले से परिचित तो हैं, पर उदासीन हैं। लोग दलाई लामा की फोटो देखते देखते ऊब गये हैं। मुझे भी न बुद्धिज्म से जुड़ाव है न तिब्बत के सांस्कृतिक आइसोलेशन से। मुझे सिर्फ चीन की दादागिरी और एक देश-प्रांत के क्रूरContinue reading “एक अजूबा है ल्हासा की रेल लाइन”

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