यह जानने के बाद कि कतरासगढ़ क्षेत्र की कोयला खदानों से साइकल पर चोरी करने वाले कोयला ले का बोकारो तक चलते हैं, मेरा मन कतरासगढ़ देखने को था। और वह अवसर मिल गया। मैं कतरासगढ़ रेलवे स्टेशन पर पंहुचा तो छोटी सी स्टेशन बिल्डिंग मेरे सामने थी। यह आभास नहीं हो सकता था कि यह स्टेशन दिन के पांच-सात रेक कोयले के लदान कर देश के विभिन्न बिजली संयंत्रों को भेजता होगा। एक रेक में उनसठ बॉक्स-वैगन होते हैं और एक वैगन में लगभग ६२ टन कोयला लदान होता है।
पर माल लदान के लिये महत्वपूर्ण स्टेशन ऐसे ही होते हैं। कोई टीमटाम नहीं। वे केवल अच्छी कार्यकुशलता से काम करते हैं और उनके कर्मचारी अत्यन्त समर्पित/दक्ष होते हैं।
कतरासगढ़ ८-९ कोयला लदान की साइडिंग को डील करता है। हर साइडिंग औसत आधा-एक रेक रोज लदान करती है। मैं बरोरा स्थित जो साइडिंग देखने गया, वह तीन रेक प्रतिदिन लदान करती है। पिछले वर्ष वहां लगभग ८५० रेक लदान हुआ।
उस साइडिंग में मैं इस्तेमाल किये जाने वाले उपकरण – डम्पर, क्रशर और पे-लोडर्स देखे। डम्पर खदान से कोयला ला कर साइडिंग के सामने डम्प करते हैं। क्रशर उस ढेरी को समतल करता है और बड़े टुकडों को छोटा करता है। पे-लोडर्स उस ढेरी से कोयला उठा कर वैगनों में लदान करते हैं। इस प्रक्रिया में जलते कोयले को ठण्डा करने और आग सुलगने की सम्भावनायें रोकने को कोयले पर वाटर-टैंकर से पानी की धार दो बार छोड़ी जाती है। एक बार खदान में डम्पर में कोयला डालते समय और दूसरी बार साइडिंग में कोयला बिछाने से पहले।
एक रेक पर पांच-छ पे-लोडर्स एक साथ काम करते हैं। एक बारी में एक पे-लोडर ३ टन कोयला वैगन में डालता है। एक रेक पांच घण्टे में लोड हो जाता है।
मैने हुन्दै का एक नया पे-लोडर देखा जिसमें चालक का चेम्बर वातानुकूलित है और जो एक बार में छ टन कोयला उठा कर वैगन में डालता है। इसे देख एकबारगी मन हुआ कि पे-लोडर का चालक बना जाये!
ओह, इससे पहले कि मैं रेलवे के विषय में बहुत कुछ लिख डालूं, मैं अपने पर लगाम लगाता हूं। आप लिखने लगें तो समझ नहीं आता कि कहां रुकें। और कुछ झमेला वाला नहीं लिखा जाना चाहिये!
कुछ झमेला वाला नहीं लिखा जाना चाहिये!,सही कह रहें हैं सच बहुत कड़वा होता है.
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क्या कतरास गढ़ में भी कोयला माफिया दिखे आपको . कहते है हर रेक से एक लाख तक कमाते है यह माफिया
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आप ने अच्छी जानकारी दी, घर बेठे ही पता चल गया इस हुन्दै जी का भी.धन्यवाद
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कतरासगढ़ और पे लोडर के बारे में जानकारी के लिए आपको धन्यवाद. पे लोडर अपने चलाया की नहीं यह नहीं बताया परन्तु मुझे लगता है की आपने टेस्ट ड्राइव जरुर की होगी हा हा ..
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हमें तो बड़ी दिलचस्प लगी ये पोस्ट.ठेठ ब्लोगिंग के दरअसल यही नियम है …..बहुत सारी चीजो को अपनी आँखों से देखना ..जो महसूस किया .लिखना….इससे ज्ञान की एक खिड़की भी खुलती है
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घणी ज्ञानदायक पोस्ट है जी।
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ज्ञान जी, अब यह तो होता ही है कि पहले किसको मौका दें, तो अमूमन सबसे वरिष्ठ और अनुभवी का ही मौका लगता है, अन्यथा लॉटरी निकालनी पड़ेगी। पर आशा है कि ऐसे पे-लोडरों की संख्या बढ़ने के साथ-२ सभी को मौका मिलेगा। 🙂
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@ अमित जी – मैने तो अपनी वातानुकूलित कार से ही फोटो लिया। पर साथ में जो भारत कोकिंग कोल लिमिटेड के अधिकारी थे, उन्होने बताया कि इस पे-लोडर पर सीनियर-मोस्ट चालक को ही मौका मिल रहा है! होड़ लगती है चलाने के लिये!
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काफी रोचक व उम्दा जानकारी आभार !
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वाह, बढ़िया जानकारी, इसके लिए आभार। :)तो फिर आपका वातानूकूलित पे-लोडर में बैठना हुआ कि नहीं? 🙂 वहाँ गर्मी तो होती होगी, तो चालक कक्ष वातानूकूलित होने के कारण चालक काम करने को और अधिक तत्पर रहेंगे! 🙂
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