कहीं धूप तो कहीं छाँव

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praveen
यह पोस्ट श्री प्रवीण पाण्डेय की बुधवासरीय अतिथि पोस्ट है।

मैने एक बार अपने एक मित्र से मिलने का समय माँगा तो उन्होने बड़ी गूढ़ बात कह दी। ’यहाँ तो हमेशा व्यस्त रहा जा सकता है और हमेशा खाली।’ मैं सहसा चिन्तन में उतरा गया। ऐसी बात या तो बहुत बड़े मैनेजमेन्ट गुरू कह सकते हैं या किसी सरकारी विभाग में कार्यरत कर्मचारी।
आप यदि अपने कार्य क्षेत्र में देखें तो व्यक्तित्वों के ४ आयाम दिखायी पड़ेंगे।

  1. पहले लोग वो हैं जो न केवल अपना कार्य समुचित ढंग से करते हैं अपितु अपने वरिष्ठ व कनिष्ठ सहयोगियों के द्वारा ठेले गये कार्यों को मना नहीं कर पाते हैं। कर्मशीलता को समर्पित ऐसे सज्जन अपने व्यक्तिगत जीवन पर ध्यान न देते हुये औरों को सुविधाभोगी बनाते हैं।
  2. दूसरे लोग वो हैं जो सुविधावश वह कार्य करने लगते हैं जो कि उन्हें आता है और वह कार्य छोड़ देते हैं जो कि उन्हें करना चाहिये। यद्यपि उनके कनिष्ठ सहयोगी सक्षम हैं और अपना कार्य ढंग से कर सकते हैं पर कुछ नया न सीखने के सुविधा में उन्हें पुराना कार्य करने में ही मन लगता है। इस दशा में उनके द्वारा छोड़ा हुया कार्य या तो उनका वरिष्ठ सहयोगी करता है या कोई नहीं करता है।
  3. तीसरे लोग वो हैं जिन्हें कार्य को खेल रूप में खेलने में मजा आता है। यदि कार्य तुरन्त हो गया तो उसमें रोमान्च नहीं आता है। कार्य को बढ़ा चढ़ा कर बताने व पूर्ण होने के बाद उसका श्रेय लेने की प्रक्रिया में उन्हें आनन्द की अनुभूति होती है।
  4. चौथे लोग वो हैं जो सक्षम हैं पर उन्हें यह भी लगता है कि सरकार उनके द्वारा किये हुये कार्यों के अनुरूप वेतन नहीं दे रही है तो वे कार्य के प्रवाह में ही जगह जगह बाँध बनाकर बिजली पैदा कर लेते हैं।

इन चारों व्यक्तित्वों से आप के कार्य क्षेत्र में ’कहीं धूप तो कहीं छाँव’ की स्थिति उत्पन्न होती है और जिसके द्वारा मित्र द्वारा कहे हुये गूढ़ दर्शन को भी समझा जा सकता है।
यदि समय कभी भी निकाला जा सकता है और कितनी भी मात्रा में निकाला जा सकता है, इस दशा में भी यदि मेरे मित्र अपने काम में लगनशीलता से लगे हैं तो उनका समर्पण तुलसीदास के स्वान्तः सुखाय से किसी भी स्तर में कम नहीं हैं। श्रीमान बधाई के पात्र हैं।


ज्ञानदत्त पाण्डेय का कथ्य

उक्त चार प्रकार के बारे में पढ़ते ही हम अपने को देखने लगते हैं कि कौन से प्रकार में आते हैं। मैं तो पहले अपने आप को प्रकार 1 में पाता था, पर अब उत्तरोत्तर प्रकार 2 में पाने लगा हूं। बहुधा जैसे जैसे हम अपनी दक्षता के बल पर प्रोमोशन पाते हैं तो जो कार्य दक्षता से कर रहे होते हैं, वही करते चले जाते हैं। यह सोचते ही नहीं कि हमारा काम बदल गया है और जो काम हम पहले करते थे, वह औरों से कराना है। एक प्रकार का फेक वर्क करने लगते हैं हम!

work1 बाकी, बड़बोले और खुरपेंचिये (प्रकार – 3 और 4) की क्या बात करें!

बड़बोले और खुरपैंचिये? मैने इन शब्दों का प्रयोग किया कोई बहुत मनन कर नहीं। मुझे नहीं मालुम कि प्रवीण सभी कार्य करने वालों को चार प्रकार में बांट रहे हैं, या मात्र कुछ प्रकार बता रहे हैं [1]। यदि पूरे का वर्गीकरण है तो हर प्रकार का एक सुगठित नाम होना चाहिये। और अन्य प्रकार के काम करने वाले हैं तो आप चुप क्यों हैं? उनके प्रकार/विवरण और नामकरण के लिये मंच खुला है! ओवर टू यू!

[1] – प्रवीण ने अपना स्पष्टीकरण टिप्पणी में दे दिया है। कृपया उसे ले कर चलें:

यह वर्गीकरण किसी कार्यव्यवस्था में ’कहीं धूप तो कहीं छाँव’ की स्थिति उत्पन्न करने वाले कारकों के लिये ही है । हम सभी को इन प्रभावों से दूर रहने का प्रयास करना चाहिये । यह पोस्ट आदरणीय ज्ञानदत्त जी की फेक कार्य पोस्ट से प्रेरित है ।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

32 thoughts on “कहीं धूप तो कहीं छाँव

  1. I have already learnt about 4 categories of government employees/officers from you but now through this blog, this cocept of 4 categories is shared with all the readers. Good article.

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  2. इसमें तो बड़ा लोचा है. अभी कई वर्ग छूट गए हैं. एक वर्ग वह है जिसे कुछ नहीं आता है, पर सब कुछ करने के लिए तैयार रहता है. एक वह भी है जो कुछ नहीं करता है, और यह प्रचार करता रहता है कि सब कुछ उसी ने किया. मुझे तो कई और वर्ग सूझ रहे हैं. लेकिन चूंकि यह काम समाजशास्त्रियों का है और मैं उनके पेट पर लात नहीं मारना चाहता, लिहाजा नहीं कर रहा हूं. 🙂

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