हिमांशु मोहन जी ने पंकज उपाध्याय जी को एक चेतावनी दी थी।
“आप अपने बर्तनों को भरना जारी रखें, महानता का जल जैसे ही ख़तरे का निशान पार करेगा, लोग आ जाएँगे बताने, शायद हम भी।”
हिमांशु जी का यह अवलोकन बहुत गहरे तक भेद कर बैठा है भारतीय सामाजिक मानसिकता को।
पर यह बताईये कि अच्छे गुणों से डर कैसा? यदि है तो किसको?
बात आपकी विद्वता की हो, भावों की हो, सेवा की हो या सौन्दर्य की क्यों न हो………..छलकना मना है।
आप असभ्य या अमर्यादित समझे जायेंगे, यदि छलकेंगे।
छलकना गुस्ताख़ी है ज़नाब
अपनी हदों में रहो,
जब बुलायें लब, तुम्हें ईशारों से,
तभी बहना अपने किनारों से,
क्या हो, क्यों इतराते हो,
बहकता जीवन, क्यों बिताते हो,
सुनो बस, किसने हैं माँगे जबाब,
छलकना गुस्ताखी है ज़नाब।
सह लो, दुख गहरा है,
यहाँ संवाद पर पहरा है,
भावों को तरल करोगे,
आँखों से ही निकलोगे,
अस्तित्व को बचाना सीखो,
दुखों को पचाना सीखो,
आँखों का काजल न होगा खराब,
छलकना गुस्ताखी है ज़नाब।
सौन्दर्य, किसका,
तुम्हारा या आत्मा का,
किसके लिये रचा है,
अब आप से कौन बचा है,
अपने पास ही रखिये,
सुकून से दर्पण में तकिये,
हवा में जलन है, छिपा हो शबाब
छलकना गुस्ताखी है ज़नाब।
आपको किसी का जुनून है,
रगों में उबलता खून है,
गरीबों के लिये होगा,
भूख का या टूटते घरों का,
उनका जीवन, आपको क्या पड़ी,
यहाँ पर सियासत की चालें खड़ीं,
आस्था भी अब तो माँगे हिसाब,
छलकना गुस्ताखी है ज़नाब।
कल कुश वैष्णव ने यह कहा कि एक ही पोस्ट को ब्लॉगर और वर्डप्रेस पर प्रस्तुत करना गूगल की नियमावली में सही नहीं है। लिहाजा मैं मेरी हलचल पर भी पोस्ट करने का अपना प्रयोग बन्द कर रहा हूं।
पत्नीजी कहती हैं कि मेरी हलचल पर कुछ और पोस्ट करो। पर उस ब्लॉग की एक अलग पर्सनालिटी कैसे बनाऊं। समय भी नहीं है और क्षमता भी!
@ E-Pandit – शायद मन में यही कारण थे कि मैने ब्लॉगर वाला ब्लॉग नहीं छोड़ा और डिस्कस जोड़ लिया उससे! 🙂
LikeLike
सबसे पहले तो वर्डप्रैस.कॉम को वर्डप्रैस नहीं लिखा/कहा जाना चाहिये।मुफ्त के औजारों में ब्लॉगर वर्डप्रैस.कॉम से बेहतर है तथा पेड में वर्डप्रैस ब्लॉगर से बेहतर है। यदि आपने वेब स्पेस नहीं ले रखा तो ब्लॉगर पर ही जारी रहें, वर्डप्रैस.कॉम दिखने में भले ही आकर्षक लगे पर उसमें कई बन्दिशें होती हैं मसलन जावास्क्र्पिट् का प्रयोग नहीं कर सकते (कोई विजेट वगैरा लगाने के लिये)। दूसरी ओर यदि वेब स्पेस हो तो वर्डप्रैस प्रयोग करना चाहिये, वर्डप्रैस ब्लॉग के हर पहलू को कण्ट्रोल करने की सुविधा देता है।
LikeLike
@-छलकना संक्रामक है । Do not worry. Just use broad spectrum antb. [ie-an innocent smile]@- देखिये हम भी छलक गये । aapke chhalakne ka har andaaz hume bhata hai,Ye andaaz hi to hai jo fir-fir hume bulata hai !
LikeLike
@ हिमान्शु मोहनलगा के गये थे आप, बुझाने भी आयेंगे,झुलसा हुआ था दिल, फिर से जला गये ।दिलचस्प सा फसाना, यूँ छेड़ना नहीं,सोचा बहारें आ रहीं, कमायत ही आ गयी ।हम देखते तनहाई में दिल को उड़ेलकर,बेदर्द बन क्यों आज परदा हटा दिया ।वो मुस्कराते देखकर, एक खेल हो रहा, मैं भीगता रहा हूँ ऐसे छलक छलक ।हम तो उछल रहे थे, पाने ऊँचाईयाँ,लुत्फ पूरा ले रहे, खूँटी पे टाँग कर ।@ zealछलकना संक्रामक है । देखिये हम भी छलक गये । @ अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठीहुस्न छलकता है तो लोग कटोरी लेकर आ जाते हैं रस बटोरने , पर ऐसा छलकती हुई महानता के साथ नहीं होता , जाहिर है – 'बहुत कठिन है डगर पनघट की ' !आँखों को ही कटोरी बना देते हैं, हुस्न के छलकावे । @ विष्णु बैरागीमैं अभिभूत हुआ ।
LikeLike