एपिलेप्सी-रोधी दवाओं के साथ वापसी

DSC02400 (Small)
काफी समय पहले मैने वैतरणी नाले के पानी से कछार में खेती करते श्री अर्जुन प्रसाद पटेल की मड़ई और उनके क्रियाकलाप पर लिखा था। मैं उनकी मेहनत से काफी प्रभावित था। कल पुन: उनकी मड़ई का दूर से अवलोकन किया। उस नाले में पर्याप्त सूअर घूमते हैं। अत: उनकी क्यारियों की सब्जी में न्यूरोसिस्टिसर्कोसिस (NEUROCYSTICERCOSIS) के मामले बनाने की क्षमता होगी!
खैर, मेरी पत्नी और मैने, बावजूद इस बीमारी के, हरी सब्जियां खाना बन्द न करने का फैसला किया है!

चौबीस मई को शाम नौ बजे मुझे बायें हाथ में अनियंत्रित दौरे जैसा कुछ हुआ। तेजी से बिना नियंत्रण के हिलते हाथ को दायां हाथ पूरे प्रयास से भी नहीं रोक पा रहा था। लगभग चार मिनट तक यह चला। उसके बाद कलाई के आगे का हाथ मानसिक नियंत्रण में नहीं रहा।

मैने दो फोन किये। एक अपने बॉस को आपात अवस्था बताते हुये और दूसरा अपने रिश्ते में आनेवाले आजमगढ़ के सी.एम.ओ. ड़ा. एस.के. उपाध्याय को। बॉस श्री उपेन्द्र कुमार सिंह ने अस्पताल ले जाने की तुरन्त व्यवस्था की। ड़ा. उपाध्याय ने यह स्पष्ट किया कि मामला किसी अंग विशेष/तंत्रिकातन्त्र में स्पॉडिलाइटिस का भी नहीं, वरन मस्तिष्क से सम्बन्धित है। मस्तिष्क की समस्या जानकर मैं और व्यग्र हो गया।

अस्पताल जाने के बाद की बात आप सत्यार्थमित्र की पोस्टों के माध्यम से जान चुके हैं। वहां और अन्य प्रकार से जिन-जिन मित्र गणों ने भिन्न-भिन्न प्रकार से मेरे लिये प्रार्थना की और मेरा सम्बल बढ़ाया, उनका मैं समग्र रूप से कृतज्ञ हूं।

Gyan638-001 इस विषय में पच्चीस मई को सवेरे आई.सी.यू. में लेटे लेटे एक पोस्ट (Hand bringing to I.C.U.) दायें हाथ का प्रयोग कर उपलब्ध संसाधन (मोबाइल फोन) से लिखी, बनाई (बायें हाथ का मोबाइल से लिया चित्र संलग्न करते) और पोस्ट की (ई-मेल से); उसे ब्लॉगिंग की विशेष उपलब्धि मानता हूं। ऐसी दशा में कितने लोगों ने ब्लॉग-पोस्ट लिखी होगी? कह नहीं सकता।

अभी लगभग पच्चासी प्रतिशत उबर गया हूं मैं। अस्पताल से छुट्टी मिल गई है। अब घर पर हूं – २४ जून तक।

Arjun111 मुझे न्यूरोसिस्टिसर्कोसिस (NEUROCYSTICERCOSIS) का मरीज मान कर उपचारित किया जा रहा है। मस्तिष्क के दायें सामने के हिस्से में हल्की सूजन से ग्रस्त पाया गया। यह सूजन पोर्क (सूअर के मांस)/प्रदूषित जल/जल युक्त खाद्य (पत्ता गोभी, पालक आदि) से सम्भव है। मेरे मामले में मांस तो नहीं है, दूसरे कारण ही लगते हैं।

न्यूरोसिस्टिसर्कोसिस की दवायें तो लगभग एक-दो महीना चलेंगी पर एपिलेप्सी-रोधी दवायें मुझे कुछ साल तक लेनी होंगी। अर्थात लगभग दो-तीन साल की ब्लॉगिंग इस घटना की छाया में होगी!

धन्यवाद, मेरे वैर्चुअल और क्वासी-वर्चुअल जगत के मित्रों!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

62 thoughts on “एपिलेप्सी-रोधी दवाओं के साथ वापसी

  1. मन प्रसन्न हुआ आपकी वापसी पर. जल्द पूर्ण स्वस्थ हो जाईये. शुभकामनाएँ.

    Like

  2. आपकी हिम्मत प्रेरणादायक है , हो सके तो किसी होमिओपैथ मित्र से भी सलाह करें ! सादर शुभकामनायें !

    Like

  3. पांडेय जी, आप के स्वास्थ्य के बारे में इस पोस्ट के माध्यम से जान कर चिंता हुई। लेकिन इत्मीनान इस बात का बहुत है कि कारण पता लग चुका है और सब कुछ नार्मेल्सी की तरफ़ तेज़ी से लौट रहा है। परमात्मा से आप के सदैव सकुशल रह कर हिंदी जगत की सेवा करने की प्रार्थना है। अब देखिये आप जैसे लोग जो कभी मांस वांस को नहीं लेते, इस तकलीफ़ से बच नहीं पाए —- पता नहीं, यह प्रदूषण हमें कहां ले जायेगा। बहरहाल, अपना ध्यान रखिये —-यह अच्छा है आप आजकल आराम कर रहे हैं —ज़रूरी है। ढेरों शुभकामनाएं।

    Like

  4. वाह! बहुत खूब! अब फ़िर जमकर लिखिये-टिपियाइये।हम यहां भी आपसे सीनियर हैं! करीब पन्द्रह साल एन्टीएपिलिप्सी दवा खाकर फ़ाइनली इससे तीन-चार साल पहले निजात पायें हैं। आपको कमनींद की परेशानी थी अब दवाओं से नींद आने लगेगी। दवा नियमित खाइये। मस्त रहिये।

    Like

  5. न्यूरोसिस्टीसर्कोसिस का पता तो स्कैनिंग से चल ही जाता है. यदि निदान पक्का हो तो इलाज अवश्य ही प्रभावी होगा.एपिलेप्सी की दवाओं से आपका पीछा छूटना मुश्किल है. शरीर इनका आदी हो जाता है. ये सभी न्यूरोट्रान्स्मीटर्स को प्रभावित करते हैं इसलिए इनसे कई अनचाहे बदलावों को भी झेलना पड़ सकता है.बाकी, मुझे नहीं पता यदि किसी और ने कभी इन हालातों में अपनी पोस्ट लिखी हो. अब आपको स्वयं को बहुत सी चीज़ों से या तो विरत रहना होगा या संतुलन बनाकर चलना होगा. आप नहीं चाहेंगे तो परिवार वाले कर ही देंगे. हमारी शुभकामनायें आपके साथ हैं.

    Like

Leave a reply to संजीव द्विवेदी Cancel reply

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started