हिन्दी ब्लॉगिंग के बारे में एक जुमला उछला था कि यह खाये-पिये-अघाये लोगों का मनोविनोद है। सुनने में खराब लगता था, पर सच भी लगता था।
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
हिन्दी ब्लॉगिंग के बारे में एक जुमला उछला था कि यह खाये-पिये-अघाये लोगों का मनोविनोद है। सुनने में खराब लगता था, पर सच भी लगता था।