चिठ्ठाजगत का मोबाइल संस्करण


mobile internetचिठ्ठाजगत अब अपने मोबाइल संस्करण में ही दीखता है। मैं अपना वर्डप्रेस का ब्लॉग पन्जीकृत कराना चाहता था, पर विधि स्पष्ट नहीं हो सकी मोबाइल वाली उनकी साइट पर।

फीड एग्रेगेटर का मोबाइल संस्करण एक दूरदर्शी कदम लगता है। ब्लॉगस्पाट और वर्डप्रेस के ब्लॉग मोबाइल संस्करण में उपलब्ध है‍। आगे ब्लॉग लोग मोबाइल पर ही पढ़ें/टिप्पणी करेंगे।

एक अध्ययन [१] के अनुसार अभी ७६% उपभोक्ता इण्टरनेट का प्रयोग मात्र पर्सनल कम्प्यूटर से, १४% पीसी और मोबाइल दोनो से और  केवल १०% सिर्फ मोबाइल से करते है‍। यह दशा सन् २०१५ तक में बदल कर क्रमश: २१%, ३८% और ४१% होने जा रही है।  अर्थात ७८% लोग मोबाइल के प्रयोग से इण्टरनेट देखेंगे। और वर्तमान संख्या से पांच गुना हो जायेंगे इण्टरनेट उपभोक्ता भारत में! अभी ७% लोग इण्टरनेट का प्रयोग कर रहे हैं, पांच साल बाद ३५% हो जायेंगे। 

मेरे ब्लॉग का मोबाइल संस्करण  (http://mobile.gyanduttpandey.wordpress.com/) मोबाइल पर पर्याप्त पठनीयता से दिखता है और उसपर टिप्पणी आदान-प्रदान भी सरलता से हो सकता है। यह मैं लोवर-एण्ड (सस्ते, २-३ हजार रुपये वाले) मोबाइल पर देख कर कह रहा हूं। बेहतर मोबाइल और सस्ते दाम पर जल्दी जल्दी बाजार में आते जा रहे हैं। इसी भय से मैं नया मोबाइल नहीं ले रहा – थोड़ा और इन्तजार करें तो शायद और बेहतर, और सस्ता मिल जाये! Smile

Chitthajagatकुल मिला कर यह तय है कि ब्लॉग पढ़ने (और शायद पोस्ट लिखने के लिये भी) अगले साल के प्रारम्भ तक मैं मोबाइल का प्रयोग करने लगूंगा। चिठ्ठाजगत अगर वह अवस्था ध्यान में रख कर अपना सॉफ्टवेयर बना रहा है तो दूरदर्शिता है। पर फिलहाल कुछ एक चीजें जैसे पंजीकरण का पन्ना और हर आठ या चौबीस घण्टे के आंकड़े आदि सामान्य वेब पेज पर उपलब्ध हों तो सहूलियत रहे।

यह जरूर है कि फीड एग्रेगेटर की सुविधा बिन पैसे लेने और लगे हाथ उसे गरियाने की जो परम्परा हिन्दी ब्लॉगजगत में है, वैसा चिरकुटत्व शायद ही कहीं और दिखे! Smile


[१]यह देखिये McKinsey Quarterly का आकलन कि सन २०१५ में कितने प्रतिशत इण्टरनेट उपभोक्ता मोबाइल पर देखेंगे इण्टरनेट:

McKinsey Exhibit - Mozilla Firefox


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

33 thoughts on “चिठ्ठाजगत का मोबाइल संस्करण

  1. इसी चक्कर में मैं पिछले दो सालों से नया मोबाइल नहीं ले पाया. एक ठो गैलेक्सी टैब पर मन ठुंका तो जेब की ठुकाई होते होते बची.. अब तो सोच लिया है कि जब कीमत आधी रह जायेगी तब लेंगे… लेकिन अब यह कहीं कोलीशन वाला चक्कर न हो जाये… कि आमने सामने से आने वाली ट्रेनों के मध्य कोलीशन होने पर भी सिद्धान्तत: कुछ तो दूरी रह ही जाती है.. इसलिये अगले हाफ में खरीद ही लिया जायेगा…

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  2. पता नहीं आगे क्या होगा? पर मोबाइल के छोटे स्क्रीन और छोटी कुंजी पटल पर ये सब टाइप करना मुझे नहीं सुहाता है।
    और एक तरफ़ लोग घर में एल सी डी टीवी आदि के नाम पर बड़े स्क्रीन लगा रहे हैं दूसरी तरफ़ …. मोबाइल के स्क्रीन पर इंटर्नेट ….?
    मुझे नहीं लगता।
    … और चिट्ठाजगत भी क्या कर रहा है सब सस्पेंस जैसा लगता है। एक तरफ़ तो नए चिट्ठों की सूचना मेल में आ रही है, दूसरी तरफ़ साइट खुलता ही नहीं।

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    1. 21% लोग पीसी पर ही इण्टरनेट देखने वाले रहेंगे। आपका साथ देने वाले कम नहीं होंगे।
      चिठ्ठाजगत शायद अभी इवाल्व कर रहा है, सो बताने की दशा में नहीं होगा!

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  3. कुंवारा वाली बात मस्त है.
    बाकी नोकिया एन ७२ पर भी चौकोर डब्बे दिखते थे तो मैंने एक पूरी रात के बाद सुबह तक हिंदी फॉण्ट चला तो दिया था पर मेमोरी खराब हो जाने के बाद फिर बंद हो गया दिखाना. पर चल तो जाता है… किसी साईट पर फॉण्ट मिले थे. ठीक याद नहीं. टाइप तो नहीं हो पाता था पर दिख जाता था.

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    1. हिन्दी सेवा के इस जुनून के लिये आपको बधाई! बेचारा मोबाइल शहीद हो गया! :-(

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  4. बेहतर मोबाइल और सस्ते दाम पर जल्दी जल्दी बाजार में आते जा रहे हैं। इसी भय से मैं नया मोबाइल नहीं ले रहा – थोड़ा और इन्तजार करें तो शायद और बेहतर, और सस्ता मिल जाये! Smile.

    अजी हमारा मित्र इसी चक्कर मे कुवारां रह गया, अभी ओर सुंदर लडकी से शादी करूंगा, रोजाना एक से बढ कर एक दिखती, ओर हर बार उस की मां कहती इस से भी सुंदर…. ओर धीरे धीरे समय खिसकता गया, ओर अब मां बेटा दोनो ही इंतजार मे रहते हे कि केसी भी मिले… लेकिन अब कहां? तो जनाब जो बाजार मे हे उसे ले लो अच्छे वाला जब आयेगा तब उस से भी अच्छा फ़िर उस से भी अच्छा…. लेकिन कब तक?

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    1. यह तो बड़ा जबरदस्त उदाहरण दिया आपने कुंवारे रह जाने का भाटिया जी! :)

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      1. ये बात हम छह साल पहले कहे थे जी! देखिये:
        कहते हैं कि जीवनसाथी और मोबाइल में यही समानता है कि लोग सोचते हैं –अगर कुछ दिन और इन्तजार कर लेते तो बेहतर माडल मिल जाता.

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        1. ओह,यह एनॉलाजी बहुत गड्डमड्ड है। कुछ लोग अपने बच्चों का पुराना मोबाइल इस्तेमाल करते हैं! :(

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  5. मेरी तो जिद है मोबाइल से सब कार्य निपटाने की, मीटिंगों में इतना समय मिलता है कि हर माह एक पुस्तक लिखी जा लकती है।

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    1. मतलब मोबाइल न केवल कनेक्टिविटी बढ़ाता है वरन समय का सदुपयोग करने का टूल भी है।
      पर इसके उलट, मैने कई मोबाइलोमेनिया के मरीज भी भी देखे हैं; जबरी फोन में उलझते/बटन दबाते/फोनियाते! :)

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  6. चिट्ठाजगत का ये कदम सराहनीय है। खुशी भी हुई।
    मेरा अनुभव है कि केवल सस्ते फोन ही बेहतर हिन्दी पढने और लिखने की सुविधा दे रहे हैं।
    क्या हिन्दी पढने-लिखने वाले ज्यादा खर्चा करने में असमर्थ हैं???

    प्रणाम

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    1. भाषा का पेनिट्रेशन बढ़ाने के लिये यह बेहतर भी है कि सस्ते फोन में हिन्दी सुविधा हो। गांव में आदमी भी नेट की सुविधा पा लेगा – अपनी भाषा में!

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  7. स्मार्ट लोगों की तरह स्मार्ट फोन भी हिन्दी से परहेज करते है या टूटी फूटी जानते है. यह सबसे बड़ी बाधा है.

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  8. “बेहतर मोबाइल और सस्ते दाम पर जल्दी जल्दी बाजार में आते जा रहे हैं। इसी भय से मैं नया मोबाइल नहीं ले रहा – थोड़ा और इन्तजार करें तो शायद और बेहतर, और सस्ता मिल जाये! ”

    काफी पहले बिल गेट की कही बात याद आ गई जब उसने कहा था कि यदि आप यह सोचकर कंप्यूटर नहीं ख़रीद रहे कि वह और सस्ता व ज़्यादा पॉवरफ़ुल हो जाएगा तो लेंगे, यकीन मानिये …आप कभी कंप्यूटर नहीं ले पाएंगे (क्योंकि ये तो होता ही रहेगा) :)

    आप जब भी मोबाइल बदलें तो बस बड़े स्क्रीन की शर्त र​खिएगा ख़ुद से, बाक़ी चीज़ें तो आम हैं.

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    1. बड़ी स्क्रीन का सही कहा आपने। अभी वाले में स्क्रीन छोटी लगने लग गई है। और यह हिन्दी सपोर्ट नहीं करता, सो अलग।

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      1. सर, अगर यह इंटरनेट सपोर्ट करता है तो आप इस पोस्ट को अवश्य पढ़ें, (ये पोस्ट विंडो-मोबाइल के लिए भी मान्य है) मेरा ख़याल है कि आप हिन्दी साइट तो पढ़ ही सकेंगे http://sahibaat.blogspot.com/2011/02/blog-post.html

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        1. मेरा फोन तो नोकिया एन 70 है और उसमें ओपेरा मिनी हिन्दी के डिब्बे ही दिखाता है! एन 70 तो हिन्दी के लिये लाइलाज मरीज लगता है! :-(

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  9. केवल जानना चाहता था कि यह मोबाइल संस्करण और इसका वेब पता आपने खुद बनाया है …..याकि वर्डप्रेस स्वयं ऐसा करता है ?

    मेरा अनुभव है कि वर्डप्रेस के चिट्ठे स्वयमेव मोबाइल संस्करण ही पहले दिखाते हैं…..मोबाइल पर !

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    1. वर्डप्रेस की अपनी सुविधा है। इसी तरह मोबाइल संस्करण में ब्लॉगस्पॉट भी सुविधा देता है।

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  10. चिट्ठाजगत भरसक प्रयासरत है, देखिये, क्या निकल कर सामने आता है..

    आँकड़े जानना सुखद रहा.

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