
मेरे सामने ताज बनजारा होटल के डिनर की टेबल पर पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे के मुख्य मालभाड़ा यातायात प्रबन्धक श्री एन.के.. सचान बैठे थे। श्री सचान पिछले साल भर से अधिक हुआ, गुवाहाटी में रह रहे हैं।
हम या तो यूंही इधर उधर की बात कर सकते थे, या रेल विषयक दिन की बात चीत का कोई हल्का रूप जारी रख सकते थे। अचानक उन्होने कहा कि हम लोग यह गलत सोचते हैं कि पूर्वोत्तर में नौकरी करना खतरनाक है। और मुझे बतौर एक ब्लॉगर लगा कि सचान वह कह रहे हैं जो मीडिया के फैलाये प्रपंच से अलग चीज है।
मैने उन्हे और आगे टटोला तो उनका कहना था कि अगर वहां उल्फा आतंकवादियों के बम का खतरा है तो उससे (बम की संस्कृति से) ज्यादा खतरा तो पूर्वान्चल या बिहार में है। उससे कहीं ज्यादा खतरा तो नक्सली बहुल क्षेत्र में है। असम और पूर्वोत्तर के बारे में एक मिथक मीडिया ने पाल पोस रखा है।
श्री सचान का कहना था कि दूसरी बात है कि भारत के अन्य भागों के प्रति पूर्वसीमांत के लोगों के मन में नफरत की बात जो बताई जाती है, वह भी एक मिथक ही है। उन्होने पाया है कि दक्षिण के छात्र आईआईटी गुवाहाटी बेहतर मानते हैं बनिस्पत लखनऊ के, क्योंकि वहां उनके साथ अटपटा व्यवहार उत्तर की बजाय कम है! असमिया इस तरह डिसक्रिमिनेशन करता ही नहीं!
मैं समझता हूं कि कुछ लोगों का सोचना श्री सचान की सोच से अलग होगा, जरूर। पर श्री सचान की सोच को नकारा नहीं जा सकता एक एबरेशन मान कर! वे लखनऊ के रहने वाले हैं और अधिकतर वे उत्तरप्रदेश और बिहार में नौकरी में रहे हैं।
क्या हम लोगों के मन में एक गलत ईमेज़ जो पूर्वोत्तर की बनाई गयी है, उसे बदलने की जरूरत नहीं है?
Nice
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आज ये करीब दो साल पहले.. मै याहू के हिन्दुज्म के रूम मे था.. तभी रक्षित सुमन नाम के एक व्यक्ति जो कि भारत सरकार मे त्रिपुरा मे अधिकरी थे, से चैट प्रारम्भ कि बात बढ़ी परिचय हुआ और पता चला कि वे त्रिपुरा से है….बात होती गई.. तो पता चला कि वो छुट्टी के लिये जम्मू जाने वाले है.. उन्होने मुझे फोन किया कि मेरी ट्रेन इलाहाबाद से गुजरेगी क्या मिलोगे.. मै ने कहा जरूर..जब तक ब्लागगिंग और नेट पर ज्यादा सक्रिय था तो इलाहाबाद जक्ंशन मेरा फेवरेट मीट प्लेस हुआ करता था.. अक्सर ब्लागरों और दोस्तो से मिलना हो जाता था।
मूरी ट्रेन आई मै मिलने गया… उनके साथ उनकी धर्मपत्नी और दो बच्चे थे 15-20 की मुलाकात मे उन्होने त्रिपुरा के लिये आमंत्रित किया उनके मिलने के पूर्व जब मै वेट कर रहा था तो मै उनको कुछ देना… प्लेटफार्म एक पर विवेकानंद साहित्य के काउन्टर से बढि़या कोई स्थान नही हो सकता था जहाँ से मै कुछ खरीदत….मुझे विवेकानंद समग्र बहुत पंसद आया और उसे उन्हे भेंट की……. बहुत दिनो से अपने लिये विवेकानंद समग्र खरीदना चाहता था पर आज तक न खरीद पाया.. पर जल्दी खरीदूँगा।
अब आपकी तबीयत अब कैसी है?
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ठीक है बन्धु! तबियत अब सामान्य है।
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आपका यह पोस्ट पढ़ कर मुझे वह दिन याद आ गया जब आय. ई. एस. में चयन के बाद मेरे बड़े भी को उधमपुर की पोस्टिंग मिली |
जब मेरे एक मित्र को याह पता चला तो वह बोला की कुछ जुगाड़ लगा कर कहीं और पोस्टिंग क्यूँ नही ले लेते, उधमपुर में तो ख़तरा है |
उस समय मैंने उसे उत्तर दिया की यदि हम एक भारतवासी की रूप में १५ अगस्त अथवा २६ जनुअरी को यह कहते हैं की कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है तो यह हमारा दायित्व है की उसे अन्य अंगों की तरह व्यवहार करें |
यदि वह भारत में तो वहाँ काम करने के लिए लोग इम्पोर्ट नहीं कर सकते |
बिलकुल सत्य है की इस प्रकार के विषयों पर मीडिया की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है जो भारतीय मीडिया भली तरह से नहीं निभा पाती |
http://digbhramit.wordpress.com/
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अरे बन्धुवर, आपके ब्लॉग पर अज्ञेय विषयक पोस्ट देखी और मन प्रसन्न हो गया!
इसके पहले एक बार अज्ञेय को रेडियो पर बोलते सुना था और वह आवाज अभी भी मन में है। आज आपने सब ताजा कर दिया!
बहुत धन्यवाद जी! आपके ब्लॉग की फीड मैने संजो ली है!
आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।
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असम के विषय में लगभग सभी के विचार सकारात्मक हैं, विशेषकर काजल कुमार जी के अधिक तथ्यपरक भी। ऎसा लगता है कि मॆढ़ा बना दिये जानें के ड़र से कुछ लोग स्वयं और अधिकांश शादी-शुदा असम जानें से ड़रते रहे हैं। इसीलिए असम से आत्मीय समबन्ध अधिकांश देश-वासी नहीं बना पाये। असम का प्राकृतिक सौंदर्य मन को बांधता है। हाँ कतिपय क्षेत्र आतंक ग्रस्त हैं। सांवरमल सांगानेरिया की भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित पुस्तक ‘ब्रह्मपुत्र के किनारे किनारे’ यद्यपि यात्रा वृतांत है किन्तु औपन्यासिक शैली मे रची-बसी कृति अत्यंत ज्ञान वर्धक है। इतिहास परंपरा और परिवर्तन से गुजरे असम का अद्भुद चित्रण है। कामरूप के स्त्री राज्य और तांत्रिक संसार के तिलिस्म को उकेरती एक अन्य कृति ‘छिन्नमस्ता’ भी ज्ञानपीठ से प्रकाशित है, इंदिरा गोस्वामी की यह क्रुति भी पठनीय है किन्तु पहले वाली पुस्तक पहले। जो यायावरी के अभ्यस्त हैं उन्हें कैसे भी करके त्रिपुरा भी जाना चाहिये राष्ट्र के अंतिम छोर पर बसे इस राज्य में समस्याऎ तो हैं लेकिन राष्ट्रीयता और अस्मिता के लिए यह जरूरी होगा।
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बहुत सधी और सटीक टिप्पणी सुमंत जी। आपने पढ़ने के लिये पुस्तकें सुझाई हैं। उसके लिये धन्यवाद!
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