हिसार में कानग्रेस की जमानत जब्त होली है। चार सीटों के चुनाव में जीरो बटा सन्नाटा ही रहा है उसके लिये। टेलीवीजन पर जितना भी फौंकें, पुलपुली जरूर कांप रही होगी। ऐसे में शीतकालीन सत्र में मजबूत लोकपाल ले आये तो मेरे घर के आस पास के इनफार्मल सेक्टर का क्या होगा?
रविवार को मैं बाल कटाने गया था। शंकर ने बाल ठीक ठाक काटे। पर उसे देख मेरे मन में यह विचार आया था कि यह लोकल कांस्टेबल को सौ-पचास भले देता हो, टेक्स-फेक्स के नाम पर भूंजी भांग भी नहीं देता होगा।
बाल कटाने के बाद मैं और मेरे बॉडीगार्ड (मेरा लड़का, जिसे मेरी पत्नीजी मेरा स्वास्थ्य नरम होने के चलते साथ में चिपका देती हैं) मुरारी की दुकान पर चाय पीने गये। मुझे लगता है कि दशकों बाद किसी सड़क के किनारे बैठ कर चाय पी होगी। चाय बढ़िया बनी थी – कहें तो बहुत ही बढ़िया। पर यह तो जरूर है कि मुरारी और उसकी दुकान पर काम करने वाले कोई टेक्स-फेक्स, वैट-शैट नहीं भरते होंगे। चाय की कोई रसीद भी नहीं दी उन्होने मुझे।
मेरे घर से निकलते ही खड़ंजे का फुटपाथ छेंक कर नक्कू ने अपनी गायें-भैंसें पाल रखी हैं। सवेरे सवेरे लोग इंतजार में दीखते हैं कि सामने दुहवा कर दूध ले जायें। तुरत फुरत बिक जाता है दूध। इस पूरे व्यवसाय में महीने का पच्चीस-पचास हजार का शुद्ध लाभ और एक लाख से ज्यादा का मासिक टर्न-ओवर होगा। सब बिना किसी कागज पत्तर के।
एक सख्त लोकपाल बिल पास हो गया और वाकई सख्त लोकपाल/लोकायुक्त मशीनरी की स्थापना हो गई तो इन नाई, चाय की दुकान वाले, फुटपाथ पर डेयरी चलाने वाले, गंगा के कछार में मछली पकड़ने वाले/सब्जी उगाने वाले — ये सब के सब धराये जायेंगे शिवकुटी के किसी सख्त और खब्ती लोकपाल द्वारा। ये सब अनौपचारिक अर्थशास्त्र के क्षेत्र के लोग भ्रष्ट कहायेंगे।
मुझे तो टेंशन हो रहा है जी।
हमें तो आपका मुहल्ला बढि़या लग रहा है जी…. ताजा दूध, चाय की दुकान और गंगाजी
कर ढांचे में बहुत सी असमानताएं और अनियमितताएं नजर आती हैं…. जिन पर देने लायक कुछ नहीं वे भी टैक्स भरे जा रहे हैं और जो मुनाफा काट रहे हैं उन पर किसी की नजर नहीं…
बहुत सारी टैक्स वसूली तो ठेके पे गुण्डा तत्वों को सरकार ही देती है…
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अगर कभी जोश आया और समय मिला तो इस शिवकुटी पर एक किताब लिखूंगा। मुझे मालुम है कि वह बिकेगी नहीं, लिहाजा ब्लॉग पर बतौर ई-बुक फ्री बांटूंगा!
कर के मामले में तो गड़बड़झाला लगता है। समझ आ जाये तो घणे पईसे कमाये जा सकते है! 🙂
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वही वारूणी जो थी सागर मथकर निकली अब हाला,
रंभा की संतान जगत में कहलाती ‘साकीबाला’,
देव अदेव जिसे ले आए, संत महंत मिटा देंगे!
किसमें कितना दम खम, इसको खूब समझती मधुशाला।।५६।
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वारुणी वाले भी हैं इस किनारे, उनका जिक्र तो भूल ही गया था! अच्छा है, आपने जिक्र कर दिया। वर्ना यह पुनीत काम समीरलाल जी को करना पड़ जाता शायद! 🙂
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हमें तो कौनो उम्मीद नहीं है. राक्षसों के बाद ही तो भैंसों का नंबर आएगा.
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इतने मंत्री संत्री पटपटा कर जेल जा रहे हैं कि बड़ा अजीब सा लग रहा है। 🙂
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फिर तो जवाहिरलाल भी धराया जायेगा ( रोज सुबह दातून तोड़कर नीम और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के जुर्म 🙂
ए ना चौलबे….आमी भीषण विरोध कोरबे 🙂
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हा हा!
आज जवाहिर ने सर्दी डिक्लेयर कर दी। कऊड़ा बार कर बैठा था। पास में दो और लोग जमा हो गये थे!
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वैसे सड़्क किनारे खड़े होकर या बेंच पर बैठकर चाह पीने का आनंद कुछ और ही होता है, खासकर गुमटी पर। कोई कछु न होने वालो है इनका, कोई लोकपाल आ जाये।
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आगे के दस बीस साल रोचक रहेंगे यह सब देखने में!
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अब इत्ता जुलुम भी नहीं होना चाहिये कि लोकपाल ग़रीबों को भोंकपाल लगने लगे। एक निश्चित आमदनी के आगे कर लगाना ही है तो उसकी शुरूआत सड़क किनारे की चाय की गुमटी के बजाय बड़े फ़ार्महाउस वालों की करमुक्त आमदनी से करी जा सकती है।
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अभी तक जो भी देखा, अपनी पावर को दुरुपयोग करते ही देखा। अत: आशंका तो बनती ही है।
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गंगा की पवित्रता के पहले ही गंगा-किनारे की पवित्रता हो जायेगी।
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देखें आगे क्या होता है!
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🙂
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” इन नाई, चाय की दुकान वाले, फुटपाथ पर डेयरी चलाने वाले, गंगा के कछार में मछली पकड़ने वाले/सब्जी उगाने वाले — ये सब के सब धराये जायेंगे शिवकुटी के किसी सख्त और खब्ती लोकपाल द्वारा। ये सब अनौपचारिक अर्थशास्त्र के क्षेत्र के लोग भ्रष्ट कहायेंगे।”
भारत के बाहर युरोप मे, अमरीका मे और आस्ट्रेलिया मे इन सबको मैने बाकायदा रसीद देते देखा है। वैसे सब्जी जैसी खाद्य सामग्री पर टैक्स कहीं नही है।
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खेती-किसानी तो यहां टेक्स फ्री है। पर वैल्यू एडीशन के नाम पर कौन कब टेक्स के जाल में आ जाये, पता नहीं!
लोक पाल किस छाप की संस्था निकलेगी। कितनी अपेक्षा की जाये, अभी बुझा नहीं रहा! 😆
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gyandutt Pandey ji
Lokpall to ye bana hi rahe the. kintu usme chotte vyapar karne wale fas rahe the. Janlok pall to upar walo ko fasane ke liye jarori hai.
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फंसता छोटा ही है!
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टेंशन मती लीजिये जी। धांस के ब्लागिग करिये। मस्त रहिये। 🙂
आप सड़क के किनारे चाय पिये। अच्छा लगा।
आपका बच्चा अब आपका बाडीगार्ड है यह और और अच्छा लगा। लेकिन आपकी तबियत बिना बाडीगार्ड वाली हो जाये इसके लिये शुभकामनायें।
और लोकपाल आयेगा तो इसी समाज से न जी। काहे को चिंता करते हैं।लोकपाल के भी बीबी-बच्चे-घरपरिवार होगा। वो सब मामला नरम कर लेंगे। चिंता नको। 🙂
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आप कहते हैं तो छोड़ देते हैं चिंता करना। वरना देश के लिये बहुत चिंता करने का मन है! 😆
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