अर्शिया

अर्शिया की वेब-साइट का बैनर हेडिंग।

अर्शिया एक “माल यातायात का पूर्ण समाधान” देने वाली कम्पनी है। इसके वेब साइट पर लिखा है कि यह सप्लाई-चेन की जटिलता को सरल बनाती है। विश्व में कहीं से भी आयात निर्यात, भारत में फ्री-ट्रेड वेयरहाउसिंग जोन, रेल यातायात नेटवर्क और ग्राहक के कार्यस्थल से सामान लाने ले जाने की सुविधायें प्रदान करती है यह कम्पनी।

खुर्जा में आर्शिया का हरा भरा परिसर।

हाल ही में इस कम्पनी ने खुर्जा में अपना एक टर्मिनल प्रारम्भ किया है। खुर्जा मेरे उत्तर-मध्य रेलवे का एक स्टेशन है। यह दिल्ली से लगभग ८० किलोमीटर पर है और उत्तरी राजधानी क्षेत्र के अन्तर्गत आता है। यह भविष्य में आने जा रहे पूर्वी और पश्चिमी डेडीकेटेड-फ्रेट कॉरीडोर के संगम के समीप है। निश्चय ही आर्शिया ने इस क्षेत्र के हो रहे और होने वाले लॉजिस्टिक विकास में अपना निवेश किया है। उनकी मानें तो डेढ़ हजार करोड़ का निवेश!

खुर्जा में इस कम्पनी के टर्मिनल में चार-पांच कण्टेनर लदी मालगाड़ियां डील करने की सुविधा बनाई गयी है। इसमें छ लाइनें हैं और पचास एकड़ में यह रेल टर्मिनल है। इसी रेल टर्मिनल से जुड़ा १३० एकड़ में इनलैण्ड कण्टेनर डीपो (जिसमें कस्टम क्लियरेंस की सभी सुविधायें होंगी) और १३५ एकड़ में फ्री-ट्रेड वेयरहाउसिंग जोन है। ये सभी सुविधायें (लगभग) तैयार हैं।

अर्शिया की खुर्जा की रेलवे साइडिंग में रेल वैगनों पर कण्टेनर लादने-उतारने के लिये आर.टी.जी (रेल ट्रान्सपोर्ट गेण्ट्री)।

चूंकि रेल सुविधायें रेलवे से तालमेल कर चलने वाली हैं, मैने पिछले सप्ताह वहां का एक दौरा किया – अपनी आखों से देखने के लिये कि वहां तैयारी कैसी है और सुविधायें किस स्तर की हैं।

और देखने पर मैने पाया कि बहुत ही भव्य लगता है यह पूरा परिसर। सभी सुविधायें बनाते समय कोई कंजूसी नहीं की गयी लगती। अभी चूंकि सुविधाओं का दोहन १०-१५% से ज्यादा नहीं हुआ है, तो सफाई का स्तर बहुत अच्छा पाया वहां मैने। आगे देखना होगा कि जब पूरी क्षमता से यह टर्मिनल काम करेगा, तब व्यवस्था ऐसी ही रहती है या चरमराती है।

मैने कम्पनी के प्रतिनिधियों से चर्चा करते समय अपना रेल अधिकारी का मुखौटा ही सामने रखा था; एक ब्लॉगर का नहीं। और किसी भी समय यह नहीं कहा था कि उनके बारे में ब्लॉग पर भी लिख सकता हूं। अत: यह उचित नहीं होगा कि मैं कुछ विस्तार से लिखूं/प्रस्तुत करूं।

आर्शिया के इस रेल टर्मिनल को देख बतौर ब्लॉगर तो मैं प्रसन्न था। पर बतौर उत्तर-मध्य रेलवे के माल यातायात प्रबंधक; मेरी अपेक्षा है कि इस परिसर से मुझे प्रतिदिन दो से तीन रेक का लदान मिलेगा। अर्थात महीने में लगभग लाख-सवा लाख टन का प्रारम्भिक माल लदान।

लेकिन अब कम्पनी वालों का कहना है कि आने वाले श्राद्ध-पक्ष के कारण लदान की कारवाई १५ अक्तूबर से पहले नहीं हो पायेगी! :-(

बतौर एक ब्लॉगर, अपना यह सोचना अवश्य व्यक्त करूंगा कि जिस स्तर पर आर्शिया ने निवेश किया है और जैसा भव्य इन्फ्रास्ट्रक्चर कायम किया है उन्होने; उससे लगता है कि इस कम्पनी को भारत की उभरती आर्थिक ताकत और भविष्य में आनेवाले पूर्वी-पश्चिमी डेडीकेटेड फ्रेट कॉरीडोर के संगम पर खुर्जा में होने का बहुत भरोसा है।

लगता है, उन्होने भारत के भविष्य पर निवेश का दाव चला है। यह रिस्की हो सकता है; पर आकर्षित तो करता ही है!

[आशा करता हूं कि अगली बार अगर मैं वहां गया तो बतौर रेल अफसर ही नहीं, बतौर एक ब्लॉगर भी जाऊंगा। और वे कम्पनी वाले एक ब्लॉगर को देख असहज नहीं होंगे – स्वागत करेंगे!]

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

10 thoughts on “अर्शिया

  1. आर्शिया के बारे में जान कर अच्छा लगा कि अपने काम को ुत्तम तरीके से करने में इनका विश्वास है । कोई बात नही पांडेजी श्राध्द शुरु हुए हैं तो खतम भी होंगे और फिर नवरात्रि के साथ साथ लदान भी बढेगी ।

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  2. लौगिस्टिक्स के क्षेत्र में हमने भी एक कंपनी को वित्तीय सहायता प्रदान की थी.. हालाँकि वह रेल नहीं, सड़क मार्ग से माल-यातायात का पूर्ण समाधान प्रदान करने वाली कंपनी थी तथा भंडारण की सुविधा भी उपलब्ध करवाती है. उनकी स्वचालित सुविधा देखने का अवसर मिला था. कम्प्यूटरीकृत व्यवस्था के अंतर्गत स्वतः खाली स्थान का पता लगना और माल की निकासी आदि की व्यवस्था देखकर आश्चर्यचकित रह गया था.
    आज अर्शिया जैसी कंपनी के विषय में आपसे सुनकर, मैं उसकी भव्यता का अनुमान लगा सकता हूँ!! ऐसे विषय भी ब्लॉग-पोस्ट की विषयवस्तु हो सकते हैं, यह आपसे ही सीखा है!!

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    1. अजय एस मित्तल इसके ग्रुप चेयरमैन हैं।
      ज्यादा मुझे नहीं मालुम और जिज्ञासा भी न थी!

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  3. बढ़िया लेख, सुंदर चित्र !
    इत्तेफाक है आज ही आपके ब्लॉग पर अर्शिया के बारे में पढ़ा जिससे भ्रम हुआ कि रेल तरक्की की तरफ है और अखबार में मिली ये खबर जिससे भ्रम टूटा “रेलवे छोटे स्टेशनों पर पार्सल कार्यालयों को ताला लगाकर कर्मियों को दूसरे विभागों में शिफ्ट करने की तैयारी में ” आश्चर्य का विषय है की तेज़ी से बढता हुआ रेलवे लॉजिस्टिक कारोबार जर्जर होते हुए रेलवे नेटवर्क से तालमेल कैसे बिठाता होगा, उस स्तिथि में, जब पैसेंजर / एक्सप्रेस गाड़ियों को निकालने के चक्कर में माल गाड़ियों को जहाँ तहां घंटों के हिसाब से खड़ा कर दिया जाता है.

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    1. हां, रेलवे को अपनी प्राथमिकतायें पुन: परिभाषित करनी चाहियें। फुटकर पार्सल तो वास्तव में सड़क यातायात की चीज है। वहीं जाना चाहिये। या फिर उसको इकठ्ठा कर रेक चलने चाहियें। पर गम्भीरता से माल यातायात और सवारी यातायात के चुनाव पर सोचना है।

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