
कन्नन मेरे साथ चेन्नै में मेरे गाइड और सहायक दिये गये थे।
छब्बीस और सताईस अक्तूबर को भारतीय रेलवे के सभी १६ जोनल रेलवे के चीफ माल यातायात प्रबंधकों की बैठक थी। उस बैठक के लिये उत्तर-मध्य रेलवे का मैं प्रतिनिधि था। मेरे स्थानीय सहायक थे श्री कन्नन।
दक्षिण में भाषा की समस्या होती है उत्तरभारतीय के लिये। वह समस्या विकटतम होती है तमिळनाडु में। श्री कन्नन यद्यपि हिन्दी में पर्याप्त “छटपट” नहीं थे। पर मेरा और मेरी पत्नीजी का काम सरलता से चल गया।
कन्नन तेरुनलवेलि जिले के मूल निवासी थे पर बहुत अर्से से चेन्नै के पास चेंगलपेट में अपनी जमीन ले कर घर बना कर रह रहे हैं। रोज वहीं से दक्षिण रेलवे मुख्यालय में वैगन मूवमेण्ट इन्स्पेक्टर की नौकरी करने आते हैं। वे फ्रेट इन्फॉर्मेशन सिस्टम में वैगन के आंकड़ों का रखरखाव का काम देखते हैं। उनकी रेलवे पर कितने वैगन हैं। कितने नये आ रहे हैं, कितने कण्डेम हो कर निकाले जाने हैं वैगन मास्टर में – ये सब उनके कार्य क्षेत्र में आता है।
जब मीटिंग सत्ताईस अक्तूबर को समाप्त हो गयी तो दोपहर तीन बजे के बाद हमारे पास चार पांच घण्टे बचे जिसमें आसपास देखा जा सके। उसमें मैने चेन्नै से पचास-साठ किलोमीटर दूर मामल्लपुरम् (महाबलीपुरम्) जाना चुना। उस यात्रा के बारे में मैं पहले ही लिख चुका हूं।
वहां के रास्ते में मैने यूं ही कन्नन से पूछ लिया – आप किसके समर्थक हैं? कलईग्नार करुणानिधि के या जे जयललिता के? डीएमके के या अन्ना डीएमके के?
कन्नन का बहुत स्पष्ट उत्तर था – सार, आई डोण्ट हैव फेथ इन ऐनी ऑफ देम। दे आर आल द सेम। (सर मुझे उनमें से किसी पर भी भरोसा नहीं है। वे सब एक जैसे हैं।) कन्नन जैसा राजनैतिक मोहभंग इस समय अनेकानेक भारतीय महसूस कर रहे हैं।
उन्होने सोचा कि उनका उत्तर शायद काफी ब्लण्ट था। “सॉरी सार, अगर आपको ठीक न लगा हो।”
मैने कहा – नहीं, इसमें खराब लगने की क्या बात है। बहुत से भारतीय ऐसा सोच रहे हैं।
कन्नन स्वयम् प्रारम्भ हो गये:
सर, मैं अपने काम से काम रखता हूं। अढ़तालीस किलोमीटर दूर से दफ्तर आता हूं और कभी दफ्तर आने में कोताही नहीं की। समय से पहले दफ्तर आने के लिये एक घण्टा पहले घर से निकलता हूं। छुट्टी नहीं करता। मेरी ज्यादा तर कैजुअल लीव लैप्स होती हैं।
– सर, मैने अपनी शादी में सौ रुपया दहेज भी नहीं लिया। इसके बहुत खिलाफ हूं। शादी के बाद मेरे दो लड़के हुये। उसके बाद मैने दो लड़कियां गोद ली हैं। सर, आजकल लोग जन्म लेते ही या जन्म लेते ही या जन्म के पहले ही लड़कियों को मार रहे हैं। मैने सोचा उस सोच का विरोध करने का इससे बेहतर तरीका नहीं हो सकता कि लड़कियां गोद ली जायें।
मैं कन्नन के कहने से गद्गद् हो गया। हम महानता के बड़े बड़े रोल मॉडल ढूंढ़ते हैं। यहां एक रेलवे के निरीक्षक हैं जो शानदार रोल माडल हैं। उस क्षण से कन्नन के प्रति मेरा पैराडाइम बदल गया!
कन्नन ने हमें मामल्लपुरम दिखाया – पूरे मनोयोग से एक एक स्थान। समुद्र किनारे मैं जाने को उत्सुक नहीं था। पर वे बड़े आग्रह से हमें वहां ले कर गये। समुद्र की लहरों में हिलाया। मामल्लपुरम के समुद्र की लहरों में खड़े होने और सीशोर मन्दिर देखने का आनन्द कन्नन की बदौलत मिला, जो अन्यथा मैं न लेता/ ले पाता।
हमने मामल्लपुरम में कन्नन से विदा ली। मैं उनसे गले मिला। एक छोटी सी भेंट का आदानप्रदान किया। और पूरी चैन्ने वापसी में उनके प्रति मन में एक अहोभाव बना रहा।
कन्नन जी को नहीं भूलूंगा मैं!
Factually CFTM Sir is very great and kind enough to appreciate the nothing like me. I did none except my duty. It is my opportunity to serve for the great one CFTM Sir. For that First I thanks to my lord and second to CFTM’s family. I will never forget in my lifetime about CFTM Sir. Thanks to every one who are all appreciated me.
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Kannan I liked you for your stand on dowry and your adopting girls even though you had sons. Such ideals are not seen in this ‘practical’ society.
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कन्ननजी के व्यक्तित्व ने निश्चय ही हमें भी प्रभावित किया है, चेन्नई जाना हुआ तो निश्चय ही उनसे भेंट करेंगे।
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It seems, Shri Kannan is just a NORMAL person among majority of ABNORMAL people of present times. Anywhere I go, I keep coming across to people like him at regular intervals. There are innumerable like him there. Everyone of them is making positive changes in society in their respective field of interest,understanding & capacity. Good to read about him. Thanks to you for introducing him.
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Yes, He is Normal. The majority are sick.
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यह तो वाकई एक बहुत बेहतर तरीका है. और ऐसे लोग होंगे भी कितने. अँगुलियों पर गिनने लायक. नमन है श्रीमान कन्नन को.
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कन्ननजी के बारे में और उनकी मानसिकता जान कर अच्छा लगा।
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मैं भी नहीं भूलूँगा उनको!
बहुत सुन्दर पोस्ट है ये. बहुत ही सुन्दर.
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एक बार विरोध का यह तरीका मैंने भी अपनाने का विचार किया था। जब मिष्टी (मेरी पुत्री) के होने से पहले मैंने सोचा दूसरी बार भी बेटा हुआ तो बेटी गोद लूंगा, लेकिन ईश्वर ने मेरी सुनी और बेटी का गर्वीला पिता बनाया है। अभी काफी उम्र बाकी है। कभी मौका मिला तो यह विरोध दर्ज कराने का प्रयास करूंगा।
निश्चय ही कन्नन एक रोल मॉडल है…
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कन्नन जी के बारे में जानकार अच्छा लगना ही था. आज मैं भी चेन्नई में ही हूँ और कल निकल भागना है अन्यथा उनसे भी मुलाकात हो जाती.
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कन्नन वास्तव में कर्मठ सिपाही लगे.
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कन्नन का आज फोन आया कि हम लोग मामल्लपुरम देख कर निकल गये, आज वहां समुद्र काफी रफ हो गया है। तूफान आ रहा है!
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हमारी बिटिया को भी कल सुबह हैदराबाद से आना है, कोई सरकारी व भरोसेमंद तरीका नहीं है जानने का कि कल फ़लां वक्त कैसा मौसम होगा वहां. हम आज भी, अपने ही देश के मौसम की जानकारी यहां वहां ढूंढते रहते हैं, अंधेरे में पैर मारते से 😦
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कन्नन जी को हम भी नहीं भूलेंगे।
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