उठो; चलो भाई!

बीमार ज्ञानदत्त का लेटेठाले स्केच।
बीमार ज्ञानदत्त का लेटेठाले स्केच।

अनूप शुक्ला जब भी बतियाते हैं (आजकल कम ही बतियाते हैं, सुना है बड़े अफसर जो हो गये हैं) तो कहते हैं नरमदामाई के साइकल-वेगड़ बनना चाहते हैं। अमृतलाल वेगड़ जी ने नर्मदा की पैदल परिक्रमा कर तीन अनूठी पुस्तकें – सौन्दर्य की नदी नर्मदा, अमृतस्य नर्मदा और तीरे तीरे नर्मदा लिखी हैं। साइकल-वेगड़ जी भी (नर्मदा की साइकल परिक्रमा कर) ट्रेवलॉग की ट्रिलॉजी लिखें, शुभकामना।

अभी यहां अस्पताल में, जब हाथ में इण्ट्रावेनस इन्जेक्शन की ड्रिप्स लग रही हैं और एण्टीबायोटिक अन्दर घुसाये जा रहे हैं; मैं यात्रा की सोच रहा हूं। यही होता है – जब शरीर बन्धन में होता है तो मन उन्मुक्तता की सोचता है।

मैं रेल की नौकरी वाला, ट्रेने चलवाना जिसका पेशा हो और जिसे और किसी चीज से खास लेना देना न हो, उसके लिये यात्रा – ट्रेवल ही सब कुछ होना चाहिये। पर मेरे पास ट्रेवल ही नहीं है। या ट्रेवल के नाम पर शिवकुटी का गंगाजी का फाफामऊ के पुल से निषादघाट तक का वह क्षेत्र है, जहां से कच्ची शराब का बनना सेफ दूरी से देखा जा सके। मेरे कथन को एक ट्रेवलर का कथन नहीं माना जा सकता।

इस लिये, जब मैं यह अपनी स्कैपबुक में दर्ज करता हूं – एक औसत से कुछ अधिक बुद्धि का इन्सान, जिसे लोगों से द्वेष न हो, जो आत्मकेन्द्रित न हो, जो सामान्य तरीके से मानवता की भलाई की सोचता हो, जो यात्रा कर देखता, परखता, लोगों से इण्टरेक्ट करता और अपनी ऑब्जर्वेशन रिकॉर्ड करता हो; वह मानव इतिहास में आसानी से जगह पा सकता है – तो मैं अपनी सोच ईमानदारी से प्रस्तुत करता हूं। पर उस सोच की सत्यता के बारे में बहुत आश्वस्त नहीं होता। ऐसे बहुत से लोग हैं जो इस सोच के अनुसार हैं – गुरु नानक, जीसस क्राइस्ट या बुद्ध जैसे भी।

पर मैं साइकल-वेगड़ या रेल-वेगड़ बन कर भी आत्म संतुष्ट हो जाऊंगा।

शैलेश पाण्डेय ने पूर्वोत्तर की यात्रा ज्वाइन करने का न्योता दिया है – मोटर साइकल पर। सुकुल ने साइकल पर नर्मदा यात्रा का। मुझे मालुम है इनमें से दोनों पर मैं नहीं निकलने वाला। … पर ये न्योते, ये सोच और ये आग्रह यह बताते हैं कि एक आध ठीक ठाक ट्रेवलॉग अपने हिस्से भी भगवान ने लकीरों में लिख रखा है। निकलना चाहिये।

उठो; चलो भाई!

(यह पोस्ट कल १२ जनवरी को पब्लिश होगी। तब तक शायद डाक्टर विनीत अग्रवाल, यहां रेलवे के मुख्य फीजीशियन मुझे अस्पताल से छुट्टी देने का निर्णय कर लें।)

Advertisement

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

37 thoughts on “उठो; चलो भाई!

आपकी टिप्पणी के लिये खांचा:

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

%d bloggers like this: