जवाहिरलाल एकाकी है!

scaled_image_1तीन महीने से ऊपर हुआ, जवाहिरलाल और पण्डाजी के बीच कुछ कहा सुनी हो गयी थी। बकौल पण्डा, जवाहिरलाल बीमार रहने लगा है। बीमार और चिड़चिड़ा। मजाक पर भी तुनक जाता है और तुनक कर वह घाट से हट गया। आजकल इधर आता नहीँ पांच सौ कदम दूर रमबगिया के सामने के मैदान मेँ बैठ कर मुखारी करता है।

बीच में एक दो बार दिखा था मुझे जवाहिर। यह कहने पर कि यहीं घाट पर आ कर बैठा करो; वह बोला था – आये से पण्डा क घाट खराब होई जाये। (आने से पण्डा का घाट खराब हो जायेगा)। वह नहीं आया।

बीच में हम नित्य घाट पर घूमने वालों ने आपस में बातचीत की कि एक दिन चल कर जवाहिरलाल को मना कर वापस लाया जाये; पर वह चलना कभी हो नहीं पाया। कभी हम लोग साथ नहीं मिले और कभी जवाहिर नहीं नजर आया। अलबत्ता, जवाहिर के बिना शिवकुटी घाट की रहचह में वह जान नहीं रही। पूरा कुम्भ पर्व बिना जवाहिरलाल के आया और निकल गया।

आज मैने देखा – जवाहिर अकेले रमबगिया के सामने बैठा है। तेज कदमों से उसकी तरफ बढ़ गया मैं। अकेला था, वह, कोई बकरी, कुकुर या सूअर भी नहीँ था। मुखारी कर रहा था और कुछ बड़बड़ाता भी जा रहा था। मानो कल्पना की बकरियों से बात कर रहा हो – जो वह सामान्यत: करता रहता है।

तुम घाट पर आ कर बैठना चालू नहीं किये?

का आई। पण्डा के ठीक न लागे। (क्या आऊं, पण्डा को ठीक नहीं लगेगा।)

नहीं, घाट पण्डा का थोड़े ही है। वहां बैठना शुरू करो। तबियत तो ठीक है न?

तबियत का हाल पूछने पर वह कुछ हरियराया। मुखारी मुंह से निकाल खंखारा और फिर बोला – तबियत ठीक बा। अब काम लगाई लेहे हई। ईंट-गारा क काम। (तबियत ठीक है। अब काम करने लगा हूं। ईंट गारा का काम।)

चलो, अच्छा है। अब कल से वहीं घाट पर आ कर बैठना। … ध्यान से देखने पर लगा कि पिछले कई महीने कठिन गुजरे होंगे उसके। पर अब ठीक लग रहा है।

ठीक बा! (ठीक है)। उसने हामी भरी।

कल से आओगे न?! पक्का?

मेरी मनुहार पर वह बोला – हां, कालि से आउब! (हां, कल से आऊंगा।)

मैं चला आया। कल के लिये यह काम हो गया है कि अगर वह सवेरे घाट पर नहीं आया तो एक बार फिर उसे मनाने जाना होगा। … जवाहिरलाल महत्वपूर्ण है – मेरे ब्लॉग के लिये भी और मेरे लिये भी!

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

12 thoughts on “जवाहिरलाल एकाकी है!

  1. …कई बार, रोज़ एक ही जगह से बस / लोकल ट्रेन पकड़ने वाले लोगों के बीच भी इसी तरह का संबंध स्थापित हो जाता है (चाहे उन्होंने भी आपस में कभी बात भी न की हो)…

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  2. नमस्कार जी , ये रमबगिया क्या जगह है जी , देखने में तो कोई इतिहासिक प्रतीत हो रही है कृपया कुछ रौशनी डालिये …….धन्यवाद ,

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    1. श्री रामदास टण्डन का यह व्यक्तिगत उद्यान था। सौ साल से अधिक पुराना है। गंगा तट पर। कई फिल्मों की शूटिंग यहां हुई है। कहते हैं पुरानी महल फिल्म यहां फिल्माई गयी थी।

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  3. उम्दा है! जवाहिर के उस पण्डा विलेन से भी तो हमें रुबरु कराईए. जरा देखें तो इस दंबग को!

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    1. पण्डाजी विलेन नहीं हैं। लगता है जवाहिर और उनमें किसी हास परिहास की बात पर टिर्र-पिर्र हो गयी थी। उसका निपटारा जरूरी है! :-)

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  4. सही सलाह दिए आप ..
    पंडा से भी बात कर लेते तो जवाहिर लाल को और आराम हो जाता .!
    जवाहिर लाल को शुभकामनायें !.

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