जात हई, कछार। जात हई गंगामाई!

जात हई, कछार। जात हई गंगामाई।

जा रहा हूं कछार। जा रहा हूं गंगामाई!

आज स्थानान्तरण पर जाने के पहले अन्तिम दिन था सवेरे गंगा किनारे जाने का। रात में निकलूंगा चौरी चौरा एक्स्प्रेस से गोरखपुर के लिये। अकेला ही सैर पर गया था – पत्नीजी घर के काम में व्यस्त थीं।

DSC_0060कछार वैसे ही मिला, स्नेह से। गंगा माई ज्यादा बोलती नहीं हैं। उन्हे सुनने के लिये कान लगाने पड़ते हैं। धीरे धीरे बह रही थीं। सूर्य चटक उगे थे। साफ सुबह। ज्यादा सर्दी नहीं। हल्की बयार। स्नानार्थी कम थे। नावें भी कम। कोई धारा में नहीं – किनारे बंधी थीं। कल्लू की मड़ई के पीछे सूर्योदय भव्य था। कोई था नहीं मड़ई में।IMG-1392686520916-V

मैने गंगाजी और कछार के कुछ चित्र लिये। कछार ने एक छोटे मोथा के पौधे का भी सूर्योदय में चित्र लेने को कहा। वह भी लिया। वनस्पति धीरे धीरे बढ़ रही है। जब झाड़ियां बन जायेंगी, तब उनका चित्र लेने जाने कौन आयेगा यहां! शायद कभी कभी मेरी पत्नीजी घूमें उनके बीच। DSC_0062

वहां अपना भी अन्तिम चित्र लेना चाहता था। पत्नीजी नहीं थीं, सो सेल्फी (Selfie) ही लेना पड़ा।Feb14.0976

वापसी जल्दी ही की। आज घर में काफी काम निपटाने हैं इलाहाबाद से प्रस्थान पूर्व। बार बार मुड़ मुड़ कर गंगाजी और सूर्योदय देखता रहा। आखिरी बार आंखों में जितना भर सकूं, उतना समेटने के लिये!

करार पर दिखा दूर बैठा जवाहिर। उसके पास जाने के लिये नाले और कचरे को पार करना पड़ा। कऊड़ा जला रहा था, अकेले। एक हाथ में मुखारी थी। पास में बीड़ी का बंडल और माचिस। शॉल नया और अच्छा था उसके पास। उसे बताया कि अब यहां से तबादले पर जा रहा हूं। पता नहीं, उसने किस भाव से लिया मेरा कहना। जवाहिर ज्यादा कहता नहीं।Feb14.0977

अपनी चौकी पर पण्डा थे। उन्हे भी बताया यहां से जाने के बारे में। उन्होने कन्सर्न जताया कि मेरा परिवार अकेले रहेगा यहां। इस जगह के अन्य लोगों को आगे पण्डाजी बता ही देंगे मेरे जाने के बारे में! Feb14.0980

मलिन अपनी जगह बैठी नहीं थी कोटेश्वर महादेव के फर्श पर। उसका सामान रखा था। उसी का चित्र ले लिया याद के लिये।Feb14.0981

भगवान कोटेश्वर महादेव और हनुमान जी को प्रणाम करते हुये घर लौटा।

बहुत लम्बा समय गंगामाई और कछार की गोद में बीता। भूल नहीं सकता। अब तो वह मेरे मन-शरीर-प्राण का अंग है।

जा रहा हूं कछार, जा रहा हूं गंगा माई। पर जाना कहां? अन्तत तो आपकी ही गोदी में ही रहना, जीना है। इस दुनियां से जाना भी आपकी गोदी से होगा!Feb14.0974

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

19 thoughts on “जात हई, कछार। जात हई गंगामाई!

  1. गंगा मैया सबकी मैया। इनके सानिध्य में रहने का सौभाग्य आपको मिला और आपके चिट्ठों के माध्यम से हमको। नई जगह नये पात्र लेकर आयेगी आपके जीवन में और चिट्ठों में भी। अंत का क्या है वह तो आयेगा ही पर अभी से क्यूं सोचें उसके बारे में।

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  2. माँ गंगा के प्रति ऐसी चित्रमय अभिव्यक्ति विमुग्ध करती है । आपकी श्रद्धा को नमन ।

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  3. शायद स्थानांतरण से तुरंत पहले की पोस्ट होने के कारण पोस्ट तो इमोशनल है ही, चित्र भी अभी तक के सबसे खूबसूरत चित्रों में से लगे।
    लौटकर जब आयेंगे, तब मिलान करेंगे कि क्या कुछ बद्ला है और क्या पहले जैसा ही है।

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  4. सर, आपने तो बहुत भावुक कर दिया इस पोस्ट से। गंगा जी के किनारी आपके साथ एक बार टहलने का सौभाग्य मिला है। आदरणीया रीता जी तो थीं ही,रचना भी साथ थी। सालों से लगातार आप इस कछार में सांसे लेते रहे हैं। समझ सकता हूँ इसे छोड़ना कितना कष्टप्रद होगा।

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  5. ऐसी विदाई.. मन भारी हो गया पढकर… लगा जैसे दूर कहीं से आवाज़ आ रही है “वहाँ कौन है तेरा/मुसाफिर जाएगा कहाँ/ दम ले ले घड़ी भर/ ये छैयाँ पाएगा कहाँ”… इसे मध्यानतर ही मान लेते हैं… परिवार यहीं है, तो गंगा मैया, कछार और उन तमाम लोगों से मिलना बना रहेगा!! अंतराल भले हो! इसलिए Good Bye नहीं.. Au Revoir गंगा माई!!

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