
श्री कन्हैयालाल पाण्डेय।
वे कुछ समय पहले तक रेलवे मेँ अतिरिक्त सदस्य (वाणिज्य) थे। अब रेलवे से सेवा निवृति ले कर यहां गोरखपुर में रेल दावा ट्रिब्यूनल में सदस्य (तकनीकी) बने हैं।
कल वे मेरे चेम्बर में पधारे।
उनकी ख्याति जितनी रेलवे में है, उससे कहीं ज्यादा फिल्म संगीत के अध्ययन के क्षेत्र में है। इसके अलावा उन्होने हिन्दी साहित्य में भी प्रयोग किये हैं। उनकी कई पुस्तकें कविता, सटायर और लघु कथा के विषय में हैं।
हिन्दी फिल्में, फिल्म संगीत, हिन्दी साहित्य – कविता, सटायर और लघु कथायें – ये सभी ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें मेरी जानकारी न के बराबर है। अत: उनसे मैं अपनी ओर से बहुत कुछ नहीं पूछ पाया। श्री पाण्डेय ने जो बताया, वह ब्लॉगर-धर्मिता के साथ प्रस्तुत कर रहा हूं।
श्री कन्हैयालाल पाण्डेय के पास डेढ़ लाख से अधिक गीतों के ऑडियो/वीडियो और 2-2 हजार हिन्दी-अंग्रेजी फिल्मों का संकलन है। “यह रखने के लिये बड़ा घर चाहिये। तभी मैं बड़े घर की इच्छा करता हूं। अन्यथा व्यक्तिगत आवश्यकता अधिक नहीं है।” – श्री पाण्डेय ने बताया।
स्कूली शिक्षा में संगीत उनका एक विषय था। अत: बीज तो वहीं से पड़ा था संगीत के बारे में। शास्त्रीय संगीत का गहन ज्ञान कालान्तर में उन्होने स्व. ठाकुर सुकदेव बहादुर सिंह जी से अर्जित किया। गीतों के संकलन का चस्का लगा तो उनके पीछे रागों की मैलोडी (माधुर्य?) जानने की भी जिज्ञासा बनी। बड़ोदा में बतौर मण्डल-रेल-प्रबन्धक और उसके बाद जबलपुर में पशिम-मध्य रेलवे के मुख्य परिचालन प्रबन्धक होने के समय फिल्मी गीतों के अध्ययन की उनकी इच्छा बलवती हो गयी।
अपने पास लाख से अधिक गीतों के कलेक्शन में उन्होने हिन्दी फिल्मों के 65 हजार गाने पाये जो सबसे पहले की फिल्म आलम आरा (सन1931) से ले कर आधुनिक समय की हैदर (सन 2014) फिल्म तक में हैं। इन 65 हजार गीतों में से वैविध्य के आधार पर उन्होने 4600 फिल्मों के 15 हजार चुने। जबलपुर में उन्होने संगीत में पारंगत लोगों की एक टीम बनाई। वह रोज शाम दो घण्टे पहले इन चुने गीतों को बजाती थी, उनके बीच चर्चा करती थी कि उसमें कौन राग का प्रारम्भ है और गाने के दौरान वही राग रहता है या अन्य राग भी उसमें आते हैं। इस चर्चा के आधार पर विस्तृत नोट्स बनाये गये।

लगभग 5000 रागों (तथ्यानुसार 4840) में से मैलोडी के आधार पर लगभग 500 राग उन्होने चुने थे, जिनके अवयव उन्होने फिल्मी गीतों में तलाशे। लगभग 170 रागों की उपस्थिति उन्होने गीतों में दर्ज की। यह पाया कि आरम्भिक दौर (30 से 60 के दशकों की फिल्मों में) उन्हे एक राग पर आर्धारित गीत बहुतायत में मिले। कालान्तर में रागों का मिश्रण होने लगा। गीत एक राग से प्रारम्भ होता और उसके प्रवाह में अन्य राग मिलते। आजकल के गीतों में तो राग बड़े जिग-जैग चलते हैं। उनके अध्ययन में यह बात पूरी तथ्यात्मकता से सामने आयी है।
यह अध्ययन उन्होने लगभग 3600 पृष्ठों में द्विभाषी रूप में (अंग्रेजी और हिन्दी में ) समेटा है। इसको सात खण्डों में “हिन्दी सिने-संगीत रागोपीडिया” के रूप में स्टार पब्लिकेशंस, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित किया जा रहा है।
अध्ययन से –
पन्द्रह हजार गीतों के अध्ययन के अनुसार हिन्दी फिल्मों में सबसे लोकप्रिय राग हैं – पहाड़ी ( 3710 गीतों में पाया गया), खमाज (2970), नट भैरवी (2210), काफी (2100), भैरवी (1670), पीलू (900), मांझ खमाज (818), यमन+यमन कल्याण (174 + 305),किरवानी (783), बिलावल (672), झिंझोटी(606), चारुकेशी (402), 9 विभिन्न प्रकार के मल्हार (236), 5 विभिन्न प्रकार के सारंग (337), भैरव, असावरी, गावती, कलावती, बागीश्री, मालगुंजी, गारा, धानी, भीमपलासी, बिहाग, मारू बिहाग, दरबारी, मालकौंस, शिवरंजिनी इत्यादि।
श्री कन्हैयालाल पाण्डेय को उनके इस अध्ययन के आधार पर विभिन्न शास्त्रीय संगीत से सम्बद्ध विश्वविद्यालयों में प्रेजेण्टेशन के लिये बुलाया जा रहा है। अब तक वे 28-29 प्रेजेण्टेशन कर चुके हैं। सात शोधार्थी इस सामग्री के आधार पर पी.एच.डी. करने के लिये विभिन्न विश्वविद्यालयों में एनरोल भी हो चुके हैं। श्री पाण्डेय को पुणे में (नाना पाटेकर द्वारा) और बेलगाम में सम्मानित भी किया जा चुका है। इस शोध के माध्यम से उनकी फिल्मी संगीत की हस्तियों – रवि, आनन्द जी और खय्याम आदि से निकटता भी बनी है उनकी और इन फिल्मी संगीत की हस्तियों से गहन चचायें भी हुई हैं संगीत के अध्ययन पर।

जैसा मैने कहा – न मैं विस्तृत कुछ पूछ पाया और न उसे विधिवत नोट कर पाया। पर जितना श्री पाण्डेय को सुना, उससे यह विचार घर कर गया कि अपने में रेलवे के कार्य के इतर हुनर अवश्य निखारना चाहिये। उससे यश प्राप्ति तो होती ही है; रेलवे के काम के अतिरिक्त पहचान भी बनती है और नौकरी के बाद समय काटने का वैक्यूम नहीं झेलना पडता।
लगभग पौना घण्टे की उनसे मुलाकात में बहुत प्रभावित हुआ मै। वे गोरखपुर में रहेंगे – अत: श्री कन्हैयालाल पाण्डेय जी से आगे मिलना तो होता ही रहेगा। उनके सानिध्य में शायद कभी मुझमें भी संगीत के प्रति रुचि बने।
शायद!
और हा अगली बार इनके फ़िल्म संगीत से जुडी कोई जानकारी प्रस्तुत करे तो इनके कुछ प्रिय गीत अवश्य डाले थोड़ी इन गीतों के विस्तृत चर्चा के साथ। मै अक्सर फिल्म संगीत से जुड़े लेख लिखता रहता हूँ। सो पान्डेयजी को अगर संभव हो तो ये लेख जरूर दिखाये! हो सकता हो इनके कुछ काम आ जाये!
http://indowaves.wordpress.com/2014/10/09/the-compositions-of-lesser-heard-indian-music-directors/
LikeLike
ये जानना मजेदार रहता कि अगर राग जिग जैग रूप से उपस्थित है तो इसके मायने क्या निकलते है? ये ठूंसा हुआ होता है या फिर किसी सोच के तहत जिग जैग होता है!!
LikeLike