पण्डित छन्नू लाल मिश्र

उद्घाटन के लिये सजी मण्डुआडीह-जबलपुर एक्स्प्रेस
उद्घाटन के लिये सजी मण्डुआडीह-जबलपुर एक्स्प्रेस

शुक्रवार को आदेश हुआ कि मंडुआडीह (वाराणसी) से नयी चलने वाली 15117/15118 मंडुआडीह-जबलपुर एक्स्प्रेस के उद्घाटन के अवसर पर पूर्वोत्तर रेलवे के चार विभागाध्यक्षों को उपस्थित रहना है। चार थे – निर्माण संगठन के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी श्री ओंकार सिंह, प्रमुख-मुख्य अभियन्ता श्री एच के अग्रवाल, मुख्य वाणिज्य प्रबन्धक श्री अशोक लाठे और मैं। कोहरे और सर्दी का मौसम – उसमें बनारस तक चक्कर लगाना मुझे तो नहीं रुचा; और अधिकारियों को भी शायद ही रुचा हो। कोहरे के मौसम में नयी गाड़ी इण्ट्रोड्यूज़ करना मानो मलमास में शादी करना है। पर सरकार ये सब नहीं मानती। दूसरे कोहरा तो सिर्फ तराई पूर्वोत्तर में ही फैला है। विन्ध्याचल के उसपार तो मौसम साफ़ है। सतना के आगे तो यह गाड़ी कोहरे को चीर कर आगे बढ़ जायेगी।

रेल की नौकरी में वर्षा और कोहरे का समय मेरे लिये भयंकर दुस्वप्न रहा है। नजरिया बदलेगा – जब रेल यातायात की जिम्मेदारियों का सलीब कांधे से हट जायेगा। हटने में ज्यादा समय नहीं है!

खैर, हम, श्री लाठे, मैं और हमारे साथ दो अन्य अधिकारी चौरीचौरा एक्स्प्रेस से रवाना हुये गोरखपुर से। रात साढ़े दस बजे चलती है ट्रेन गोरखपुर से। उस दिन उसकी जोड़ी की ट्रेन लेट आई थी, तो कुछ लेट ही रवाना हुई। रास्ते में कोहरे में लेट होती गयी। लगभग तीन घण्टे लेट पंहुची शनिवार की सुबह वाराणसी। समारोह साढ़े इग्यारह बजे नियत था, इसलिये कोई हबड़ धबड़ नहीं थी। मेरे साथ चल रहे श्री लाठे कैरिज में सूर्यनमस्कार और अनेक प्रकार के बाबारामदेवियाटिक प्राणायाम कर रहे थे – इत्मीनान से। बाद में उन्होने इन आसन-प्राणायाम के लाभ भी बताये मुझे।

ट्रेन उद्घाटन के लिये सजाया मंच।
ट्रेन उद्घाटन के लिये सजाया मंच।

इत्मीनान से हम लोग तैयार हुये और लगभग 11 बजे पंहुच गये मंडुआडीह स्टेशन। स्टेशन के इलाहाबाद छोर पर मंच बना था। ट्रेन फूलों के बन्दनवार से सजी प्लेटफार्म पर लगी हुई थी। चार्ट डिब्बों पर पेस्ट थे और सरसरी निगाह डालने पर लगता था कि आधे से ज्यादा सीटें भरी हुई थीं अडवान्स रिजर्वेशन से। कुछ लोग इसे साप्ताहिक की बजाय रोजाना की गाड़ी बनाने की बात कहते दिखे प्लेटफार्म पर। पूर्वांचल बहुत बड़ा डिमाण्डक है सवारी रेल गाड़ियों का। यद्यपि कुछ समय से टिकट बिक्री में अपेक्षाकृत वृद्धि नहीं हो रही; पर उससे न तो जनता की नयी गाड़ियों की मांग करने में कमी आ रही है न नेताओं द्वारा उस प्रवृत्ति को हवा देने में। यात्रियों की संख्या के आधार पर कई गाड़ियां खत्म कर देनी चाहियें और कई रूट जहां वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में बेहतर सड़क मार्ग के विकल्प है‍, सेवाओं को तर्कसंगत बनाया जाना चाहिये। जीरो-बेस टाइम-टेबलिंग। पर उसके लिये चाहिये दृढ़ संकल्प। आने वाले समय में वह हो – शायद न भी हो।


पण्डित छन्नू लाल मिश्र, अकेले मंच पर।
पण्डित छन्नू लाल मिश्र, अकेले मंच पर।

समारोह स्थल पर सबसे पहले आये मुख्य अतिथि – पद्मभूषण पण्डित छन्नू लाल मिश्र। पण्डित जी वाराणसी सीट से नामांकन भरते समय श्री नरेन्द्र मोदी के प्रस्तावकों में से एक थे। निश्चय ही उनकी उपस्थिति से श्री मोदी के नामान्कन को गरिमा मिली होगी। आज नयी ट्रेन को भी वही गर्व मिलने जा रहा था। सबसे पहले आये तो उन्हे मंच पर बिठा दिया गया – आदर के साथ। लेकिन मंच पर वे अकेले थे और एक ऐसी विभूति को अकेले बैठे देख अजीब सा लगा। कोई छोटा नेता या अफसर भी यूं अकेले बैठा नहीं दीखता सार्वजनिक स्थल पर। कुछ ही देर बाद वाराणसी के महापौर रामगोपाल मौर्य भी आये और मंच पर एक से दो हुये। उसके बाद हम विभागाध्यक्षों को भी मंच पर बैठने का आदेश पूर्ण आग्रह हुआ। मैं पण्डित छन्नू लाल मिश्र जी के पीछे बैठा।

पण्डित छन्नू लाल मिश्र के पीछे बैठा था मैं। वहीं से आगे बैठे उनका चित्र।
पण्डित छन्नू लाल मिश्र के पीछे बैठा था मैं। वहीं से आगे बैठे उनका चित्र।

मंत्री महोदय की इंडिगो की फ्लाइट दिल्ली से देर से रवाना हुयी और उनके समारोह स्थल पर आने में देरी हुई। और समारोह नियत समय से एक घण्टा बाद प्रारम्भ हो पाया।

मंच पर बोलते पण्डित मिश्र।
मंच पर बोलते पण्डित मिश्र।

समारोह बहुत सधी चाल से चला। पण्डित छन्नू लाल मिश्र ने अपने सम्बोधन में रेल विषयक कविता का पाठ किया – कविता जैसी भी थी, पण्डित जी की आवाज तो मन को अन्दर से झंकृत कर देने वाली थी। लगभग उसी समय मेरे मित्र श्री गिरीश सिंह ने ह्वाट्सएप्प पर सन्देश दिया – भईया, हो सके तो पण्डित मिश्र से मिलकर उन्हे हमारा प्रणाम बोलियेगा। गिरीश से पूछना रह गया कि क्या वे उनसे व्यक्तिगत परिचय रखते हैं, पर मैने यह सोच लिया कि समारोह के बाद पण्डित जी से मिलूंगा जरूर।

ट्रेन के प्रस्थान पर शंखनाद करते ये सज्जन।
ट्रेन के प्रस्थान पर शंखनाद करते ये सज्जन।

ट्रेन को पण्डित मिश्र जी ने झण्डी दिखाई। अन्य उपस्थित होगों ने भी दिखाई। इस काम के लिये कई हरी झण्डियाँ उपलब्ध थीं। ट्रेन रवाना होते समय इंजन की हॉर्न की आवाज थी और मंच से एक गेरुआ वस्त्र धारी सज्जन शंखनाद कर रहे थे – क्या बुलन्द आवाज थी शंख की और कितनी देर अनवरत वे बजाते रहे सज्जन। बहुत मजबूत फेफड़े के आदमी होंगे वे। समारोह के बाद वे दिखे नहीं, अन्यथा उनसे उनके बारे में जानने का यत्न करता। वैसे, शंख बजवैय्या काशी में न होंगे तो कहां होंगे!

भाषण देते रेल राज्य मंत्री श्री मनोज सिन्हा।
भाषण देते रेल राज्य मंत्री श्री मनोज सिन्हा।

समारोह के समय गेट पर रोके गये कुछ डीजल कारखाना के कर्मचारी रेलवे के प्राइवेटाइजेशन की आशंका के कारण विरोध में नारे लगा रहे थे। मंत्री महोदय ने अपने भाषण में यह स्पष्ट किया कि रेल के निजीकरण की कोई योजना नहीं है। पर रेलवे को बहुत व्यापक निवेश की आवश्यकता है। यातायात की जरूरतें सात गुना बढ़ी हैं और रेल नेटवर्क दो गुना ही हुआ है। इस लिये, जो विरोध कर रहे हैं, उन्हे कड़ाई से निपटा जायेगा। मंत्री जी ने समारोह के बाद पत्रकारों-प्रतिनिधियों के प्रश्नों के उत्तर भी दिये।


समारोह के बाद मंच से उतर कर मैने पण्डित छन्नू लाल मिश्र जी को चरण छू कर प्रणाम किया और यह कहा भी कि मेरे मित्रवर ने मुझे इसके लिये आदेश दिया है। पण्डित जी मुझसे प्रसन्न लगे। उन्होने आशीर्वाद के लिये अपने जेब से इत्र की एक शीशी निकाल कर मेरे दांये हाथ पर इत्र मला। यह भी कहा कि काफी समय तक – दिन भर से ज्यादा उसकी सुगन्ध रहेगी। उन्होने महामृत्युंजय मंत्र का भी उच्चार किया मुझे आशीर्वाद देते हुये। मुझे इत्र लगाते देख कई और लोगों ने अपने हाथ बढ़ा दिये इत्र लगवाने को। बहुत ही सरल हृदय थे पण्डित जी। उन्होने किसी को भी निराश नहीं किया।

पण्डित छन्नू लाल मिश्र और मैं। उनके बांये हाथ में इत्र की शीशी भी जै जिससे उन्होने इत्र मेरे हाथ पर लगाया।
पण्डित छन्नू लाल मिश्र और मैं। उनके बांये हाथ में इत्र की शीशी भी जै जिससे उन्होने इत्र मेरे हाथ पर लगाया।

मेरे सहकर्मी श्री प्रवीण पाण्डेय ने पण्डित मिश्र के साथ मेरा चित्र भी लिया उस अवसर का। अपने आई-फोन से तुरंत ई-मेल भी कर दिया मुझे।

एक विभूति को प्रणाम करने और आशीर्वाद पाने के वे क्षण मेरे लिये सदैव स्मृति में रहेंगे। पता नहीं, आगे कभी पण्डित जी से मुलाकात होगी या नहीं – मैं न तो गायन विधा में दखल रखता हूं और न मुझे गीत-संगीत की समझ है। पर सरल, महान लोगों की महानता मुझे झंकृत करती है। उसी का परिणाम था कि मैं पण्डित जी से मिल पाया। वही भावना भविष्य में उनसे या उन जैसे लोगों से मिलवायेगी।


मुझे याद आता है आज से लगभग दो दशक पहले का समय। मैं रतलाम में अधिकारी था और उज्जैन से इलाहाबाद की यात्रा कर रहा था अपने घर आने के लिये। फर्स्ट क्लास के 4-बर्थर खण्ड में मैं और मेरा परिवार था और पास के कूपे में कवि श्री शिवम्ंगल सिंह ‘सुमन’ चल रहे थे। उनका भी श्रद्धावश जा कर मैने चरण स्पर्श किया था और मेरे बच्चों ने भी उनके पैर छुये थे। उन्होने भी हम से प्रसन्न हो कर मेरी बिटिया की कॉपी में कविता की दो पंक्तियां लिख कर दी थीं! … वे भी बहुत सरल हृदय व्यक्ति थे।

यूं ही, अचानक जीवन में मिल जाती हैं पण्डित छन्नू लाल मिश्र और श्री शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ जी जैसी विभूतियां और जीवन धन्य हो जाता है।

मैने गिरीश सिंह को फोन कर घटना के बारे में बताया। गिरीश ने बाद में ह्वाट्सएप्प में सन्देश दिया – जय हो! आनन्द आ गया आज तो। ज्ञान भैया ने कमाल कर दिया!

कमाल तो गिरीश के आग्रह ने किया था। अन्यथा मैं शायद पण्डित मिश्र जी से मिलने का विचार भी न करता।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

9 thoughts on “पण्डित छन्नू लाल मिश्र

  1. आनंददायक वृतांत, हार्दिक धन्यवाद |

    Like

  2. हमने तौ बिना विकीपीडिया के आप दौनो लोगन की उमर को अन्जाद लगाय लओ हतो . आप अबै रेलवई सै रिटायर नाईं भये, मतलब अबै साठ लौ नाई पकरे . और हिंदुस्तान में शास्त्रीय गायक कै 65-70 की उमर मैं तो मुश्किलन पद्मश्री को हिल्लो लगत है. मिसिर जी तौ पद्मभूषण हैं . 75 पार हुय्यैं ई हुय्यैं ऐसो मान कै रक्खो हतो . :)

    Like

  3. सन्योग है कि आज गिरिजेश जी ने भी मड़ुआडीह स्टेशन की घटना साझा की और आपने तो तो बस मुग्ध कर दिया… इन विभूतियों से आपके बहाने हमारा भी मिलना हो गया!

    Like

  4. बताऔ आप या उमर में कमीज़ के ऊपर स्वैटर और स्वैटर की ऊपर जैकेट ठांसें हैं और पण्डित जी कै देखौ अठत्तर की उमर में नीले चैक के कुर्ता और सुनहरे पटका में मार झलझलाय रए हैं . सर्दी कहूं आसौपास नाईं फटक सकत . तिलक और कंठीमाला के रबाब की तौ बातै अलग .

    बताऔ एक तौ रेलवई को सरकारी काम और वाके संगै पद्मभूषण पं. छन्नूलाल कै साक्षात प्रणाम . याकै कहत हैं एक पंथ दुय काज . एक तीर सै दुय शिकार . :)

    Like

    1. हा हा! पण्डितजी की उम्र एक बार देखी विकीपेडिया पर कि कहीं अपने से कम उम्र का गोड़ तो नहीं छुआ! संतोष तब हुआ जब उन्हे अपने से 19 साल ज्यादा पाया उम्र में। और यह मलाल भी हुआ कि देखो, कितने टनटनाट हैं मिश्र जी! उनकी उम्र में तो हम लटक जायेंगे!

      Like

Leave a reply to प्रवीण पाण्डेय Cancel reply

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started