मछली पकड़ना और फोटोग्राफ़ी


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कोलाहलपुर में केवट नहीं हैं। उनके पास नावें नहीं हैं। धन्धा भी मछली पकड़ने का नहीं है उनका। अधिकांश मजदूरी करते हैं, खेतिहर हैं या बुनकर। सवेरे गंगा किनारे वे शौच, दातुन और स्नान के लिये आते हैं। नहाने के बाद कुछ धर्मपारायण हनुमान जी या शिवजी के मन्दिर जाते हैं तो पास ही में करार पर हैं।


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वहां घाट पर चित्र खींचने के लिये बस कुछ ही प्रकार के दृष्य होते हैं। विविधता के लिये मैं करार पर उखमज से लिपटे पेड़ों और झाड़ियों के चक्कर लगाता हूं। उखमज (पतंगे) बहुत ही ज्यादा हैं गंगा किनारे। उनको पकड़ने के लिये मकड़ियां जाला लगाती हैं। जालों में फंसे उखमज और उनके मृत शरीर अनेकानेक आकृतियां बनाते हैं। सवेरे की रोशनी में उनके पास घूमने का एक अलग तिलस्म है।


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मैं आज उनके आगे बढ़ गया। गंगा किनारे एक नाव थी। उसपर तीन आकृतियां नजर आ रही थीं। पहले लगा कि वे बालू का अवैध उत्खनन करने वाले होंगे। पर जब लगा कि उस प्रकार के लोग नहीं हैं नाव पर तो मैं नजदीक चला गया।

तीन जवान मछेरे थे उनपर। जाल समेट रहे थे। उन्होने बताया कि करीब एक घण्टा हो गया उन्हे पर कोई मछली हाथ नहीं लगी। सो अब वे जगह बदल रहे हैं। नाव किनारे एक खूंटे से बांध रखी थी उन्होने। खोल कर आगे बढ़ने लगे। उनके जितने चित्र खींच सकता था, उतने मैने खींचे। कुछ ज्यादा ही खींचे।


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पास के बरैनी घाट के हैं वे मल्लाह। नाव पर जो सामान नजर आ रहा था, उसके हिसाब से बहुत तैयारी के साथ थे वे मछली पकड़ने को।


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एक अन्य व्यक्ति साइकल से आया था। हाथ में मछली पकड़ने के लिये बन्सी/डण्डी। एक जार में कुछ मछलियां और पकड़ी मछलियां रखने के लिये एक पॉलीप्रॉपिलीन का बोरा था। बताया कि कटका के पास के किसी गांव से है वह।

कांटा फंसा कर वह बैठा मछली मारने को। मैं भी पास में बैठना चाहता था कैमरा ले कर। पकड़ी मछली का चित्र लेने की प्रतीक्षा में। करार पर दूब गीली थी ओस से। मैने बैठने को उससे बोरा मांगा। काफी उहापोह दिखाया उसने पर अन्तत दिया नहीं। मैने गीली दूब पर बैठ कर इन्तजार करने का निर्णय किया।

लगभग 10 मिनट बैठा रहा मैं। मछली उसके कांटे में अटकी पर शायद उतना नहीं कि वह खींच सके। मेरा धैर्य उसके धैर्य से काफी कमजोर प्रमाणित हुआ। उकता कर मैं उठ आया।

फोटो खींचने का लालच मुझ बिना लहसुन-प्याज का शाकाहारी भोजन करने वाले को मछली पकड़ने की प्रतीक्षा करा रहा था। कुछ अजीब सी बात है।

खैर, आगे भी कोई मछेरा मिलेगा। आगे भी मछली पकड़े जाने की प्रतीक्षा करूंगा। तब शायद वह पर्याप्त परिचित होगा और बैठने के लिये मुझे अपना बोरा भी दे दे।

आगे की ब्लॉग पोस्टों की प्रतीक्षा कीजिये बन्धुवर।
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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

4 thoughts on “मछली पकड़ना और फोटोग्राफ़ी

  1. नमस्कार ज्ञानदत्त जी। नव वर्ष की शुभकामनाएँ। आपके लिखे का जवाब नहीं।

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