विक्रमपुर में कटका स्टेशन के पास गंदे पानी की गड़ही में कुछ बच्चे जमा थे। मुझे लगा मछली मार रहे होंगे। पास जा कर देखा तो पानी में भीगे गठ्ठर नजारआये। यह जमा नहीं कि इतनी जरा सी गड़ही में गठ्ठर भर मछली निकल आये।
बच्चों से पूछा – गठरी में क्या है?
एक ने जवाब दिया – बेलपत्र। बनारस ले जायेंगे।
आगे पता चला कि बच्चे गाँव के ही हैं। उनके परिवार के मर्द – भाई और पिता दक्षिण में गंगापार के मिर्जापुर के जंगलों से तोड कर लाते हैं यह बेलपत्र। लगभग रोजाना। सवेरे वे बच्चे गड़ही के पानी में गीला कर रहे हैं गठ्ठर। उसके बाद उनकी माँ यह ले कर बनारस जाएगी। गदौलिया में बाबा विश्वनाथ मंदिर के पास बेलपत्ता की सट्टी लगती है। वहां बेच कर वो वापस लौटती है। बनारस बस से जाती है या ट्रेन से। दोनों साधन हैं विक्रमपुर में।
शानदार माडल है यह पारिवारिक मेहनत और बिजनेस का।
यह माडल कई परिवार काम में लाते हैं व्यवसाय के लिए।
तब तक उन बच्चों की माँ भी आ गयी। मेरे पूछने पर गठ्ठर उठाते समय उसने बताया कि 2-3सौ मिल जाते हैं इस में। मुझे लगा कि इससे कुछ ज्यादा ही मिलते होंगे।
चलते चलते मैंने बच्चों को गठ्ठर के पास खड़ा कर एक चित्र लिया।
वापस आते समय गड़ही के पानी के बारे में सोच रहा था कि बाबा विश्वनाथ इस गड़ही के पानी से भीगा एक बेलपत्ता भी चबा लें तो हैजा हो जाए उन्हें! शर्तिया!
जय बाबा विश्वनाथ!!! जय भोलेनाथ।
Pariwarik business ka sunder chitr, photos se usaki shobha badh gaee.
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So Pandeyji. Welcome to RRClub. I think now we can talk through your blog.
Best wishes,
Rajiv Mehta
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जी हां!
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namaste sir, i have always loved your hindi blogs and you are the real master. Such a beautiful balance of all the components of communication in this media.
subject, text and picture and the punch line: garahi ko paani aur baba vishwanath ko cholera!!!
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बहुत बहुत धन्यवाद जी!
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