
रघुनाथ पांड़े जी नब्बे से ऊपर के हैं। पर सभी इन्द्रियां, सभी फ़ेकल्टीज़ चाक चौबन्द। थोड़ा ऊंचा सुनते हैं पर फ़िर भी उनसे सम्प्रेषण में तकलीफ़ नहीं है। ऐसा प्रतीत नहीं होता कि उन्हे अतीत या वर्तमान की मेमोरी में कोई लटपटाहट हो। जैसा उनका स्वास्थ है उन्हे सरलता से सौ पार करना चाहिये।सरल जीवन। अपनी जवानी में व्यायाम और वजन उठाने का शौक रहा है उन्हे। बताते हैं कि गांव में अहिरों की बारात आती थी तो मनोविनोद के लिये वेट लिफ़्टिंग का कार्यक्रम होता था। वे ही बुलाये जाते थे गांव का प्रतिनिधित्व करने को। तीन मन (40 सेर वाला मन) वजन उठा लेते थे वे। अपने जमाने में साइकिल भी खूब चलाये हैं। शौकिया नहीं – काम से। एक बार बनारस भी गये हैं साइकिल से।
उनका गांव है अगियाबीर। उनके घर से अगियाबीर का टीला सामने दीखता है। वह टीला जहां खुदाई में 3300 साल पुरानी सभ्यता पाई गयी है। मध्य गंगा घाटी सभ्यता का एक महत्वपूर्ण शहर रहा है अगियाबीर। वे प्राचीन इतिहास-प्रागैतिहास की बात करते हैं, अगियाबीर के। “यह जो टीले के पास से रास्ता है, यही हुआ करता था प्राचीन काल में। तब, जब जीटी रोड नहीं था। गंगा किनारे किनारे रास्ता गया था। नार-खोह को डांकता।”
खड़ी बोली में नहीं, भोजपुरी/अवधी में बात करते हैं रघुनाथ जी। उनकी वाणी इतनी स्पष्ट है कि मुझे समझने में कोई दिक्कत नहीं हुई।

उनके लड़के – गुन्नीलाल पांड़े ने अपने घर आमन्त्रित किया था मुझे और राजन भाई को। राजन भाई उनके स्कूल के सहपाठी रहे हैं। बड़े ही आत्मीय और मेहमाननवाजी करने वाले हैं गुन्नी पांड़े। वहीं गुन्नीलाल जी के पुत्र संजय भी मिले। गुन्नीलाल पास के मिडिल स्कूल के अध्यापक पद से रिटायर हुये और संजय डेहरी में नवोदय विद्यालय में पढ़ाते हैं। आर्थिक रूप से (ग्रामीण परिवेश में) ठोस है यह परिवार। रघुनाथ-गुन्नी-संजय और संजय का पुत्र/पुत्री। चार पीढ़ियां रह रही हैं वहां। गांव के एक आदर्श घर की अगर कल्पना आप करें तो वह रघुनाथ पांड़े जी के घर सरीखा होगा।
मैं गुन्नीलाल जी से पूछता हूं – यह सड़क जो अगियाबीर-कमहरिया-केवटाबीर आदि गांवों को जोड़ती है, पहले भी थी? उन्होने बताया कि पहले तो मात्र पगड़ण्डी भर थी। बैलगाड़ी भी नहीं आ-जा सकती थी। पैदल या साइकल से आया जाया जा सकता था। लोग अपनी लड़कियों की शादी यहां करने में झिझकते थे। पर सन 1986 की चकबन्दी के बाद सड़क के लिये जमीन निकली। सड़क बनने पर बहुत अन्तर आया लोगों के जीवन स्तर में। अभी भी हाट-बाजार के लिये 4-5 किलोमीटर जाना पड़ता है पर अब उतना जाना आना अखरता नहीं। रघुनाथ पांड़े कहते हैं कि मिर्जापुर और भदोही जिले की रस्साकस्सी में अगियाबीर और द्वारिकापुर के बीच नाले पर पुल नहीं बन पाया है। देर सबेर बन जायेगा तो सहूलियत और बढ़ जायेगी। गुन्नीलाल जी इस इलाके की लचर नेतागिरी का भी हाथ मानते हैं विकास न होने में। “फूलन देवी जैसे को सांसद बनायेंगे तो क्या होगा?”
गुन्नीलाल जी के यहां चाय बहुत बढ़िया बनती है। तीन-चार बार गया हूं उनके यहां और हर बार एक विशिष्ट स्वाद मिला है। उनकी पतोहू या पत्नी – जो बनाती हों, अच्छा बनाती हैं। गांव के माहौल में अमूमन चाय टरकाऊ मिलती है। ऐसा गुन्नीलाल जी के यहां नहीं है। उनके घर में पेड़-पौधों, घर की बनावट, साफ़-सफ़ाई और समग्र व्यवस्था में एक सुरुचि दीखती है। वैसा सामान्यत: गंवई घरों में दिखता नहीं।

पहले बार जब मिला तो हमारे बीच औपचारिकता थी। मैं रेलवे का (रिटायर्ड) अफसर था। दूसरी बार उनके पिताजी से और परिचय हुआ। उनको पैलगी भी करने लगा मैं। गुन्नीलाल जी के साथ आत्मीयता से गले भी मिला। अब लगता है राजन भाई के साथ न होने पर भी उनके घर जाने पर अटपटा नहीं लगेगा।
बढिया है ! चाय पीने आयेंगे कभी इनके यहां ! 🙂
LikeLike
raghunath pandey ji ke baare me padh kar atyant harsh huaa
LikeLiked by 1 person
शुभकामनाएं ।
LikeLike