दण्डीस्वामी डा. विद्यानन्द सरस्वती – गुन्नीलाल पाण्डेय के गुरु जी – से मुलाकात

कल अगियाबीर का गंगातट देखने के बाद हम (राजन भाई और मैं) गुन्नीलाल पाण्डेय जी के घर पंहुचे। गुन्नी रिटायर्ड स्कूल अध्यापक हैं। सम्भवत: प्राइमरी स्कूल से। मेरी ही उम्र के होंगे। एक आध साल बड़े। गांव के हिसाब से उनकी रुचियाँ परिष्कृत हैं। बड़ा साफ सुथरा घर। तरतीब से लगाई गयी वनस्पति। चुन कर लाये गये गमले। एक गाय। पास ही में उनके खेत। पिता के अकेले लड़के और गुन्नीलाल का भी एक ही लड़का (संजय)। गुन्नी की तरह गुणी। नवोदय विद्यालय में अंग्रेजी का अध्यापक। संजय के भी एक लड़का और एक लड़की है। छोटा और सम्पन्न परिवार। एक ही घर में चार पीढ़ियाँ – गुन्नी के नब्बे वर्षीय पिताजी, गुन्नी दम्पति, संजय दम्पति और संजय के बच्चे – बहुत समरसता के साथ रहते हैं।

गुन्नीलाल जी से मिलने के बाद स्वभावत: उनसे मैत्री हो गयी है। अत: जब भी राजन भाई मुझसे उनके यहां चलने के लिये कहते हैं, मन में अटकाव महसूस नहीं होता। अन्यथा, सवेरे सैर के समय मैं मात्र प्रकृति/परिवेश दर्शन करना चाहता हूं; किसी के घर नहीं जाना चाहता।

गुन्नीलाल जी के द्वार पर स्वामीजी के प्रवचन के लिये बना मंच

गुन्नी के घर कल दृष्य बदला हुआ था। पता चला कि उनके गुरु जी आये हुये हैं पिछले चार दिन से। उनके लिये उनके दरवाजे पर एक मंच बना कर व्यासपीठ बनाया गया है। उसपर बैठ वे प्रवचन करते हैं। प्रवचन पिछले दिन लगभग सम्पन्न हो गया है। उस दिन समापन होना है कथा-कार्यक्रम का – दोपहर में।

गुन्नीलाल जी ने बताया कि गुरु जी गृहस्थ नहीं हैं। साधू भी सामान्य नहीं दण्डी स्वामी। दण्डीस्वामी अर्थात आदिशंकर की परम्परा वाले अद्वैतवादी साधू। दण्ड ग्रहण करने का अभिप्राय यह है कि वे ब्राह्मण रहे होंगे दीक्षा लेने के पहले।

मुमुक्षु आश्रम (वाराणसी) गये थे गुन्नीलाल। शायद एक गुरु की खोज में। “अब इतनी उम्र हो गयी है कि धर्म का जो पक्ष उपेक्षित रहा जीवन में, उसको केन्द्र में लाने के लिये कुछ करना था, इसलिये मैं वहां गया” – गुन्नीलाल बताते हैं। मुमुक्षु आश्रम में ही डा. विद्यानन्द सरस्वती जी से मुलाकात हुई उनकी। बातचीत कर सरस्वती जी को गुन्नीलाल जी ने कहा कि मन से उन्होने उन्हे अपना गुरु मान लिया है, अत: अपनी सुविधानुसार दीक्षा देने का कष्ट करे।

साल भर हुआ है गुन्नीलाल का दीक्षा ग्रहण किये हुये।

गुन्नी अपने को धन्य मानते हैं – उनके गुरु ब्राह्मण हैं, उसमें भी गृहस्थ नहीं, साधू और साधू में भी दण्डीस्वामी। अपने गुरु जी से उन्होने हमें मिलवाया भी। उनका बिस्तर एक तख्त पर था। उसी पर बैठे थे वे। पीछे उनका दण्ड दीवार के साथ खड़ा किया गया था।

मैने स्वामीजी से पूछा – यह दण्ड का क्या विधान है। क्या औपचारिकता?

स्वामी जी ने बताया कि आदि शंकर स्वयम शिव के अवतार थे, ऐसा कहा जाता है। समाज शैव-वैष्णव में विभक्त था। ऊपर से बौद्ध धर्म की बड़ी चुनौती थी। आदिशंकर को अवश्य लगा होगा सनातन समाज को एकीकृत करना आवश्यक है। दण्द नारायण का प्रतीक है। “दण्ड मात्रेण गृहीत्वा, नर नारायण भवति। (दण्ड धारण करने से नर नारायण हो जाता है)।” दण्ड धारण कर आदिशंकर ने शैव और वैष्णव समाज को एकीकृत कर दिया था।

अपने दण्ड के बारे मे‍ उन्होने बताया कि यह एक पहाड़ी बांस से बना है। उत्तम कोटि का होता है वह बांस। कोई छिद्र नहीं होते उसमें।

गुन्नीलाल पाण्डेय के गुरु डा. विद्यानन्द सरस्वती, दण्डीस्वामी जी। उनके बिस्तर के पीछे उनका दण्ड है दीवार के सहारे।

स्वामीजी ने आदिशंकर के शास्त्रार्थ – वाया कुमारिल्ल भट्ट, मण्डन मिश्र और उनकी पत्नी उभया भारती से शास्त्रार्थ – की कथा हमें विस्तार से सुनाई। यह भी बताया कि उभया भारती के साथ शास्त्रार्थ की तैयारी के लिये उन्होने एक राजा के शव/शरीर मे‍ं प्रवेश कर एक महीना गुजारा था और कामसूत्र-भाष्य की भी रचना की थी।

आदिशंकर ने कामसूत्र नामक ग्रन्थ की भी रचना की थी – यह मुझे पहले नहीं मालुम था। स्वामी जी ने  बताया कि वाराणसी की अमुक दुकान से मुझे आदिशंकर के आदिशंकर भाष्य, दिग्विजय सूत्र भाष्य और कामसूत्र भाष्य मिल सकते हैं। अनुवाद सहित।

विकीपेडिया पर ये भाष्य नही‍ लिखे है‍। सम्भवत विकिपेडिया को संशोधित करने की आवश्यकता हो। पर वह संशोधन मेरे जैसा शंकर के ग्रन्थों से अपरिचित व्यक्ति तो नहीं ही कर सकता। खैर, मेरी रुचि यह जानने में है कि शंकर जैसा अद्वैती आचार्य ने कामसूत्र में उस एक मास की राजा के शरीर में रह कर जान-परख कर क्या लिखा। पर मात्र 32 वर्ष की अवस्था मे‍ं इस संसार को इतना सब कुछ देने वाले आदिशंकर के लिये एक माह में काम की व्यापक अनुभूति कर लेना कठिन नहीं रहा होगा।

आपको ज्ञात है कि आदिशंकर ने कामसूत्र (या कामसूत्र भाष्य) नामक ग्रन्थ की भी रचना की थी?

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

2 thoughts on “दण्डीस्वामी डा. विद्यानन्द सरस्वती – गुन्नीलाल पाण्डेय के गुरु जी – से मुलाकात

  1. ईश्वर ने ओजस्वी लेखनी के स्वरूप जो आशीर्वाद आपको प्रदान किया है उसमें डुबकी लगाने का आनंद आप स्वयं तो ले ही रहे हैं, हमें भी बांट रहे हैं …साधुवाद आपका!
    स्वामीजी से मिलकर आध्यात्मिक गोतों के फलस्वरूप कुछ मोती और मिलेंगे… लेकिन कहानी की लघुता ने निराश कर दिया…!
    काश कुछ और पढ़ने को मिलता!

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