सड़क के किनारे दो कमरे वाली आइस्क्रीम फैक्ट्री में सवेरे सवेरे बहुत गहमागहमी थी. आइस्क्रीम के ठेले – साइकिल ठेले ले कर फेरी वाले निकल रहे थे. फैक्ट्री के कर्मचारी आईस्क्रीम की बार पैक करने में लगे थे.

मोटे तौर पर देखने पर लगता था कि इस दो कमरे के उद्यम से 10फेरी वालों और चार पांच फैक्ट्री कर्मियों को रोजगार मिला हुआ है. लगभग 14-15 लोग 10-12 हजार महीना कमाई कर ले रहे हैं इससे.
सफाई और हाईजीन के नॉर्म का कड़ाई से पालन तो नहीं होता होगा और पालन कराने की सरकारी मशीनरी ढीली ढ़ाली होगी. पर मुख्य बात है गांव के स्तर पर 14-15 लोगों को रोजगार. पता नहीं राहुल गांधी जब 72 हजार बाँटेंगे तो इन पंद्रह लोगों का नंबर लगेगा या नहीं. पर उन्हे मेरे सवालों के जवाब देने का समय नहीं था. व्यस्त थे अपने अपने काम में. मुझे जरा जोर दे कर कहना पड़ा कि भईया पूछ रहा हूँ तो जवाब तो दो.
तब उन्होने आईस्क्रीम बनाने की विधि बताई. एक फेरी वाले ने बताया कि 15 किलोमीटर चलता है गांव गांव आईस्क्रीम बेचने के लिए. दस किलोमीटर के इलाके में यह फैक्ट्री बच्चों को आईस्क्रीम मुहैया कराती है और शादी व्याह आदि में आईस्क्रीम – कुल्फी आदि सप्लाई करती है.

लगता नहीं था कि बहुत पूंजी लगी होगी. पर गहमागहमी देख कर यह जरूर स्पष्ट था कि बिजनेस रोआरिंग हैं.
जहां रोजगार का स्यापा कर रहा है विपक्ष, 15 लोगों के डीसेंट रोजगार का यह मॉडल दर्ज कर लिया जाए. 😆
Gyan Dutt Pandey Sir, very nice article, thanks for sharing your experience.
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