अतिवृष्टि और गांव की क्राइसिस


आज अस्पताल से एक घंटे के लिए अपने घर जा कर आया. गांव में रहता हूं और अतिवृष्टि के कारण गांव बड़ी विपत्ति में है. फसलें (धान के अलावा) नष्ट हो गई हैं. रास्ता झील बन गया है. नयी रेल पटरी के फार्मेशन के ऊपर से घर पंहुचा. और बारिश हुई तो यह लिंक भी कट जाएगा.

पानी बरसना रुक ही नहीं रहा. रास्ते बंद हो गए हैं और गांव कट गए हैं. चित्र पुराना है. पर आज सप्ताह भर बाद हालत और भी खराब हुई है.

गांव में आधा दर्जन लोग प्रधानी का चुनाव लड़ने का ताल ठोंक रहे हैं. आए दिन लोगों को दाल बाटी खिलाते हैं. पर इस क्राइसिस के अवसर पर उनकी आवाज सुनने में नहीं आती. रास्ता खोलने के लिए कोई युक्ति, कोई पहल लेने वाला नहीं है.

आधी शताब्दी पहले गांव वाले खुद खड़े होते थे. कहीं मिट्टी काट कर पानी के लिए रास्ता बनाते थे और कहीं मिट्टी पत्थर अड़ा कर बंधा बना पानी रोकते थे. उपमन्यु भारत में ही पैदा हुआ था. पर अब सब सरकार को कोसने का खेल खेलते हैं… और सरकार पहले भी निकम्मी थी, अब भी है.

प्रधान गांव में सरकारी इंटरफेस बन कर रह गए हैं. गांव की पुरातन मुखिया परम्परा को आगे बढ़ाने वाले नहीं लगते.

और वे अपने इस रोल में गौरव महसूस करते हैं. जनता भी उनके इस रोल को पुष्ट करती है. इस रोल को सामाजिक मान्यता प्राप्त है.

अब तथाकथित पंचायती राज को गांव की लीडरशिप दिखानी चाहिए. लेकिन वैसा करने, वैसी लीडरशिप की संस्कृति ही नहीं बनी.

प्रधान गांव में सरकारी इंटरफेस बन कर रह गए हैं. गांव की पुरातन मुखिया परम्परा को आगे बढ़ाने वाले नहीं लगते. और वे अपने इस रोल में गौरव महसूस करते हैं. जनता भी उनके इस रोल को पुष्ट करती है. इस रोल को सामाजिक मान्यता प्राप्त है. सरकारी महकमों से काम करवा देना ही मुख्य गुण माना जाता है.

खैर, कुछ हल होगा. कहीं पानी पंप कर किसी जगह फ्लश आउट करने की संभावना होगी. और नहीं भी होगी तो कम से कम एक कोशिश तो नजर आएगी.

मैं तो अस्पताल वापस आ कर पिताजी के संक्रमण और और बेड सोर की सोचने लगता हूँ. अस्पताल का वातावरण और पिताजी को अगली फ़ीड दी जाने की चिंता मुझे दबोच लेती है. वैसे भी, मैं अपनी रिटायर्ड जिन्दगी में खलल डाल इस समय कुछ करता – पक्का नहीं कह सकता.

गांव का राजकुमार अस्पताल में मेरे पास आया है. उससे बात कर लगता है कि मौके पर जा कर देखने से शायद पानी निकासी का कोई हल मिल जाए. शायद तात्कालिक आधार पर लोगों को कुछ चंदा देना पड़े. पर चंदा लोग ऐसे काम के लिए देते नहीं. (बकौल उनके) यह काम तो सरकार का है. सरकार को चाहिए मनरेगा में काम कराए… चंदा तो लोग दुर्गापूजा की प्रतिमा स्थापित करने के लिए मांगते और देते हैं. सामुहिकता पंचायती राज में पनपी ही नहीं. वह अब धार्मिक उत्सवों तक में सिमट गई है.

खैर, गांव क्राइसिस का आनंद ले रहा है!


पोस्ट स्क्रिप्ट – अभी अस्पताल में टिल्लू मिले, विभूति नारायण दुबे जी के पुत्र. उन्होंने बताया कि जल निकासी का कुछ इंतजाम किया है उन्होंने. धीरे धीरे पानी ताल में निकल जाएगा. यह तो वास्तव में लीडर शिप वाला काम किया है उन्होंने. अगली प्रधानी के लिए उपयुक्त दावेदार!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

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