कल सवेरे मैं साइकिल पर घूमने निकला। नेशनल हाईवे 19 की सर्विस लेन पर महराजगंज से बाबूसराय के बीच मुझे कोई प्रवासी आता नजर नहीं आया। अन्यथा, हर सौ मीटर गुजरने पर कोई न कोई पैदल चलता नजर आता था। पैदल न हो तो कोई न कोई ट्रक या साइकिल गुजरती थी प्रवासी व्यक्ति(व्यक्तियों) के साथ। मैं शिवाला से भी गुजरा। उस समय वहां कोई नहीं था, सिवाय मोहित के डॉबरमैन कुकुर बड्डी के। फोन मिलाया तो मोहित ने बताया वह आधा घण्टा बाद आने वाल था।

दस बजे सवेरे शिवाला पर श्रमिकों के लिये चलते भण्डारे पर उपस्थित मोहित से फोन पर बात हुई तो पता चला कि श्रमिक गुजर ही नहीं रहे थे हाईवे पर।
मोहित ने भोजन बनवा लिया था, पर खाने वाले सड़क पर थे ही नहीं। लगा कि मुख्यमंत्री, उत्तरप्रदेश का अपने प्रशासन को दिया कड़ा आदेश कारगर हो गया। उसके हिसाब से मैंने कल पोस्ट में लिखा भी था।
दस बजे मोहित ने बताया – “भोजन बन गया है। तैयारी है, पर आज कोई प्रवासी श्रमिक दिख नहीं रहे हैं। आज देख लेते हैं, अगर भीड़ पर प्रशासन ने चेक लगाया है तो कल से यह कार्यक्रम बंद कर देंगे।”
मोहित के कहने के अनुसार कल मैं शिवाला पर गया नहीं। सोचा कि जब वहांं पथिक ही नहीं हैं तो वहां जाने – देखने को कुछ खास बचता नहीं। वैसे भी, दिन में गर्मी और उमस बहुत थी। घर के बाहर निकलने का मन नहीं हो रहा था।
शाम को फिर शिवाला से फोन पर फीडबैक लिया। तब सुशील मिश्र ने बताया कि कोरोनापलायन के पथिक आये थे, और पर्याप्त संख्या में थे। करीब 700 लोगों ने भोजन किया। पहले के दो दिनों की अपेक्षा यह संख्या कुछ कम थी। पर इतनी कम भी नहीं थी जिससे लगे कि प्रशासन ने बहुत प्रभावी तरीके से प्रवासी श्रमिकों पर ध्यान दिया है और उनका अपने संसाधनों से आना रुका है।

सुशील ने एक श्रमिक से कैलाश बिंद जी की बातचीत का एक वीडियो प्रेषित किया। इस वीडियो में श्रमिक का कहना है कि प्रशासन पुलिस ने रास्ते में कहीं पूछा या रोका नहीं। अपने हिसाब से ही चलता चला आ रहा है वह और उसका परिवार। कुल मिलाकर प्रशासन ने प्रभावी ढंग से वह नहीं किया जो मुख्य मंत्री जी का आदेश था।
लगता है राज्य प्रशासन प्रवासियों के लिये भोजन-पानी-स्क्रीनिंग-यातायात से साधन उपलब्ध कराने में पूरी तरह सफल नहीं रही। भदोही तो वैसे भी छोटा सा जिला है। यहां तो आती भीड़ का शतप्रतिशत इंतजाम सम्भव नहीं है। यह इंतजाम प्रदेश के सीमा वाले जिलों को करना था। निश्चय ही, वे कर नहीं पाये।
पूर्वांचल में प्रवासी आये हैं बड़ी संख्या में साइकिल/ऑटो/ट्रकों से। उनके साथ आया है वायरस भी, बिना टिकट। यहां गांव में भी संक्रमण के मामले परिचित लोगों में सुनाई पड़ने लगे हैं। इस बढ़ी हलचल पर नियमित ब्लॉग लेखन है – गांवकाचिठ्ठा https://gyandutt.com/category/villagediary/ |
सुशील ने बताया कि सब साधनों से लोग आये गये – पैदल, साइकिल, कार/चारपहिया वाहन और ट्रक – सभी से। ट्रकों में अच्छी खासी संख्या में लोग थे। ट्रक के छोटे स्पेस में ठुंसे लोग – अर्थात कोरोना वायरस के संक्रमण की आदर्श जगहें। 😦
कुल मिला कर सवेरे साइकिल भ्रमण के दौरान, हालात बदलने की जो खुशी हो रही थी, शाम तक गायब हो गयी। अगर प्रशासन लोगों की स्क्रीनिंग नहीं करता और पैदल/साइकिल/ट्रक की अमानवीय यात्रा पर लगाम नहीं लगाता तो पथिकों के साथ कोरोना भी बिना टिकट यात्रा करेगा। कर ही रहा है।
The Indian Express के एक लेख के अनुसार बिहार के कोरोना टेस्टिंग के आंकड़े कहते हैं कि आने वाले प्रवासियों में 7.5 प्रतिशत कोरोनाग्रस्त हैं। उस आधार पर शिवाला के भण्डारे में अगर 1000 लोग नित्य भोजन करते हैं तो उसमें 75 लोग कोरोना के लाक्षणिक या अलाक्षणिक मरीज होंगे ही। 😦

पूर्वांचल में जिस प्रकार से क्वारेण्टाइन में रह रहे हैं लोग, वह मैं आसपास गांव में देखता हूं। वह क्वारेण्टाइन-अनुष्ठान हो रहा है पर आधे मन से हो रहा है। क्वारेण्टाइन में रह रहे लोग साइकिल ले कर आसपास घूम रहे हैं। बाजार तक हो आते हैं। कुछ सक्षम लोग तो न सेल्फ क्वारेण्टाइन हो रहे हैं, न क्वारेण्टाइन केन्द्र में भरती हो रहे हैं।
मेरे घर के बाहर तुलसीपुर प्राइमरी स्कूल में क्वारेण्टाइन सेण्टर है। वहां बम्बई से आया एक परिवार रखा गया था। कहते हैं क्वारेण्टाइन अवधि पूरा करने के पहले परिवार सेण्टर छोड़ कर घर चला गया। उसमें से एक बालक को डायरिया की शिकायत हुई। गांव के झोलाछाप डाक्टर ने इलाज किया और अगले दिन वह मर गया। शायद उसका सेम्पल टेस्टिंग के लिये गया है लैब में। दो दिन में रिपोर्ट आयेगी। अगर वह कोविड पॉजिटिव निकला तो यह पूरा एरिया सील कर दिया जायेगा। चौदह दिन शायद घर में रहना पड़े। वैसा हुआ तो बड़ा अनुभव होगा।
बालक के मरने की खबर ने मन से खुशी को गायब कर दिया। 😦
मेरे घर के बाहर तुलसीपुर प्राइमरी स्कूल में क्वारेण्टाइन सेण्टर है। वहां बम्बई से आया एक परिवार रखा गया था। कहते हैं क्वारेण्टाइन अवधि पूरा करने के पहले परिवार सेण्टर छोड़ कर घर चला गया। उसमें से एक बालक को डायरिया की शिकायत हुई। गांव के झोलाछाप डाक्टर ने इलाज किया और अगले दिन वह मर गया।
पूर्वांचल, बिहार, झारखण्ड में आज कोरोना संक्रमण की गति अगर भारत के 20 मार्च के आकड़ों की तर्ज़ पर हो, जब देश में 4 दिन में कोरोना मामले डबल हो रहे थे, तो मुझे आश्चर्य नहीं होगा। मैंने आसपास के जिलों – प्रयागराज, वाराणसी, मिर्जापुर, जौनपुर, गाजीपुर और भदोही के कोरोना केसों के आंकड़े एक कॉपी में आज से लिखना प्रारम्भ किया है। यह देखना है कि इनमें आगे कोरोना प्रसार किस तेजी से होता है। प्रवासियों का अर्ध अनुशासित आगमन आंकड़े तेजी से बढ़ायेगा।
आज दिन में मेरे वाराणसी में रहने वाले दो साले और उनके परिवार के अन्य सदस्य गांव आये। दिन भर रहे और शाम के समय सामुहिक दाल-बाटी-चोखा के डिनर के बाद वे वापस गये। वे लोग वाराणसी में घर में बंद बंद रहे हैं पिछले दो महीने। आज बहुत दिनों बाद उनका निकलना हुआ। उनसे मिलना अच्छा लगा। पर उनसे घूम फिर कर कोरोना विषयक चर्चा ही होती रही। बाकी सब बात-व्यवहार होल्ड पर चला गया है। चर्चा जो है सो कोरोना की ही है।
अब, परसों शाम तक देखना है कि कोरोना मेरे घर के बाहर दस्तक देता है या नहीं। पड़ोस के गांव के उस बालक की मौत और कोविड19 के पलायन के अनियंत्रित मामले खिन्नता देने वाले हैं। सवेरे की खुशी, शाम तक गायब हो गयी है।
देखें, आगे क्या होता है।
सर आपके और आपके गांव के अन्य सदस्यों द्वारा जो मजदूरों को भोजन खिलाया जा रहा है उसमें छोटी सी आर्थिक सहायता करने की इच्छा है जिससे कुछ न कर पाने की ग्लानि न हो मुझे। मैं हैदराबाद में और हाईवे से बहुत दूर रहता हूं सो खाना नहीं खिला सकता। कृपया कुछ अकाउंट नंबर इत्यादि साझा करें जिससे कि मैं भी कुछ सहयोग कर पाऊं और यह भोजन की व्यवस्था कुछ समय और चलती रहे। धन्यवाद।
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मैं उन लोगों को, जो प्रबंध कर रहे हैं, पूछ कर बताऊँगा आपको।
धन्यवाद।
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