संदीप कुमार को एक व्यवसाय और, उससे ज्यादा, आत्मविश्वास चाहिये #गांवकाचिठ्ठा

कोरोना संक्रमण भदोही मेंं प्रतिदिन 6 प्रतिशत से अधिक की दर से बढ़ रहा है। संदीप कुमार का काम रोज तीस किलोमीटर साइकिल चला कर डेढ़ सौ ग्रामीण घरों में अखबार बांटना है। जिन गांवों में उसका जाना होता है वे कोरोना वायरस की पकड़ में आते जा रहे हैं। संदीप के काम के खतरे हैं और उसको इनका एहसास भी है। वह मुंह पर एक गमछा लपेटे रहता है। कहीं बहुत ज्यादा रुकता नहीं। सवेरे साढ़े तीन बजे उठता है। पांच बजे महराजगंज कस्बे की अखबार एजेंसी से अखबार ले कर दस बजे तक अखबार बांटने का काम खत्म कर पाता है।

संदीप कुमार, अखबार वाला नौजवान ।

सवेरे का समय उसके लिए गहन गतिविधि का होता है। पर उसके बाद दिन भर कोई विशेष काम नहीं।

दिन में कोई और काम क्यों नहीं करते ?

संदीप का कहना है कि और कुछ करने की कई बार सोची, पर कुछ बन नहीं पाया। ज्यादा बड़ा काम करने के लिए बड़ी पूंजी चाहिए, उसका इंतजाम नहीं है। इसके अलावा जो काम वह सोचता है, उसमें कोई न कोई अड़चन, कोई न कोई दिक्कत बताने वाले बहुत मिल जाते हैं। कुछ समझ नहीं आता।

उसने छोटे पैमाने पर मुर्गी पालन की सोची, और काफी कुछ विचार किया। पर तब तक बगल के एक परिवार ने कहीं बड़े पैमाने पर मुर्गी पालन का फार्म बना लिया। बकरी पालन की सोच रहा है संदीप, पर उसमें भी बड़ी अड़चनें हैं। बकरियों को चराना कठिन काम है। पालने वाले दिन में दो बार उन्हें पानी के स्रोत पर ले जाते हैं। गडरिये का काम आसान नहीं।

उसकी आँखे कमजोर हैं। एक आंख में माइनस दस और दूसरी में माइनस छह का चश्मा लगता है। किसी भी नौकरी में वह बाधा है।

नौकरी में दिक्कत है, व्यवसाय के लिए पूँजी की किल्लत है। संदीप के यह बताने में निराशा झलकती है। पर मेरा आकलन है कि उसमें आत्मविश्वास की कमी है। उसको प्रोत्साहित करने वाले नहीं मिलते उसके परिवेश में। गांव इस मामले में शहर की बजाय अधिक क्रूर है। वह उद्यमिता पनपने नहीं देता या वैसी प्रवृत्ति का उपहास करता है।

मैं उससे कहता हूँ कि अखबार बांटने के काम में वह 5 हजार महीना कमाता है, वह बहुत से अकर्मण्य लोगों से बहुत बेहतर है। इसका उसे गर्व होना चाहिए। इसके अलावा कोई और काम की खोज उसे बेहतर संकल्प के साथ करनी चाहिए। मैं उसे साहस देता हूं कि पूंजी के लिए अगर लोन लेना हो तो कुछ सीमा तक के लोन के लिए बैंक को अंडर टेकिंग भी मैं करने को तैयार हूँ। पर उसे पुख्ता बिजनेस प्लान बनाना और उसके मार्केट का आकलन तो करना ही होगा।

बहुत से लोग बहुत सी हतोत्साहित करने वाली बातेँ करेंगे। उनमें से अधिकांश वे होंगे जिन्होंने खुद अपनी जिंदगी में घास ही खोदी है। इसलिए उनकी सुनने की बजाय संदीप को उन लोगों की सुननी चाहिए जो उसे सपोर्ट करें।

संदीप को घर में बिठा कर बात की मैंने।

संदीप को यह मैं इत्मीनान से घर में बिठा कर कहता हूँ। उसे अच्छी लगती है मेरी बात। वह कहता भी है कि इस तरह से साहस बढ़ाने वाली बात किसी ने की नहीं। अब वह नए सिरे से काम के बारे में सोचेगा।

मैं जानता हूं कि मैं केवल इस तरह जोश दिलाने के अलावा कुछ और नहीं कर सकता। उसके साथ सरकारी दफ्तरों के चक्कर नहीं लगा सकता। आर्थिक सहायता भी एक सीमा तक ही कर सकता हूं। पर किसी में एक चुटकी आत्मविश्वास भरने की भी अपनी एक अहमियत है, वह मैं कर सकता हूं।

संदीप हथियाडीह का रहने वाला है। यह गांव यहां से चार किलोमीटर दूर है। शायद साइकिल भ्रमण में वहां से गुज़रा हूँ। आसपास के गांवों में कई नौजवान होंगे संदीप जैसे। उन्हें कोई जोश दिलाने वाला चाहिए। अपनी बढ़ती उम्र में परनिंदा और दोषदर्शन की बजाय यही करो जीडी! यह तो कर ही सकते हो।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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