वे आधा दर्जन बच्चे थे। सवेरे ट्यूशन पढ़ने आते हैं पास के प्राइमरी स्कूल में। सातवीं में पढ़ते हैं। लगता है ग्राम प्रधान ने सवेरे एक घण्टे के लिये स्कूल का परिसर मास्साब को ट्यूशन लेने के लिये स्वीकृत कर दिया है।
आज मासाब शायद लेट हो गये थे। बच्चे बाहर खड़े इंतजार कर रहे थे। उनमें से कुछ मेरी बगिया के फूल निहारने चले आये। लड़कियों में सौंदर्य बोध शायद ज्यादा था। वे पहले गेट खोल कर घुसीं। मेरी पत्नीजी को लगा कि कोई फूल तोड़ने वाली न हों। रामसेवक जी बगीचे की देखभाल सप्ताह में एक दिन करते हैं, बाकी सारी देखभाल वे ही करती हैं। वे अपनी फूल, पत्तियों, पौधों के बारे में बहुत पजेसिव हैं। इसलिये वे बाहर निकल कर उनसे पूछने लगीं कि उनके गेट के अंदर आने का ध्येय क्या है?

बच्चों ने सुंदर लगने वाली वाटिका की अपने शब्दों में प्रशंसा की और यह बताया कि स्कूल न खुला होने के कारण सड़क पर इंतजार न कर वे यह देखने चले आये। रोज बाहर से देखते थे, आज पास आ कर देखने लगे।
उन्होने ही बताया कि उन्नीस बच्चे आते हैं ट्यूशन के लिये। सभी आसपास के गांवों के हैं। मास्साब हर एक से डेढ़ सौ रुपया महीना लेते हैं। सातवीं कक्षा में पढ़ते हैं। मास्साब अंग्रेजी और गणित पढ़ाते हैं।
मैंने उनकी अंग्रेजी की किताब देखी। किताब क्या, कुंजी जैसी किताब थी। हिंदी अनुवाद के माध्यम से उसमें अंग्रेजी का व्याकरण और वाक्य निर्माण सिखाया गया था। अंग्रेजी उच्चारण को भी हिंदी में लिख कर बताया गया था। भाषा सीखने का यह तरीका शायद बहुत अच्छा न हो, पर यही तरीका पूरी हिंदी पट्टी में चलता है। पहले भी स्पैलिंग याद करने के लिये बालक ‘Knowledge’ के हिज्जे ‘कनऊ लद गये’ के नेमॉनिक्स (mnemonic) से रटते थे, आज भी अंग्रेजी उसी प्रकार से सीखते होंगे।
वे मेरी बगिया देख रहे थे और मैं सोच रहा था कि इनमें से पांच साथ मेधावी बच्चों को एक घण्टा दे कर मैं अंग्रेजी-गणित-विज्ञान के इनपुट्स दे सकता हूं। बिना पैसा लिये और बीच में पत्नीजी शायद उन्हें एक कप चाय-बिस्कुट भी दे सकें।
मास्साब सवेरे सात से आठ बजे तक एक घण्टा दे कर तीन हजार रुपया महीना कमाते होंगे। अभिभावक भी डेढ़ सौ महीना दे कर बच्चे को शेक्सपीयर या रामानुजम तो बनाने के सपने तो देखते नहीं होंगे; उन्हे अपेक्षा होगी कि स्कूल में जो पढ़ाई के नाम पर नौटंकी होती है, उसकी कुछ भरपायी यहां हो सके।
लेकिन, शायद तुम कुछ बेहतर तरीके से पढ़ा सको जीडी। और कुछ नहीं, तो बच्चों में ‘उत्कृष्टता’ के सपने तो अंकुरित कर ही सकते हो। … मैंने ऐसा सोचा, पर कोई निर्णय न ले पाया! अपने को किसी बंधन में बांधने का मन नहीं होता।

आनलाइन व्यवस्था से शिक्षा पद्धति माडुलर हो जायेगी। विद्यालय जाना अनिवार्य न होगा और विद्यालय के मास्टर से पढ़ना भी। एकल विद्यालय का सिद्धान्त बुरा नहीं है। आप ५ चयनित विद्यार्थियों को सप्ताह का एक घंटा दे सकते हैं, प्रारम्भिक स्तर पर। आवश्यकता और आपूर्ति के तत्व विकसित होते रहेंगे।
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Correct decision sir
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