“हवन कौन कराता है? बाहर से किसी पण्डित को बुलाते हैं?”
“नहीं। बस्ती के ही जानकार पुराने लोग करा लेते हैं। पहले मेरे बब्बा जानकार थे। अब कोई बचा नहीं। अब तो लोग सिर्फ जैकारा भर लगाना जानते हैं।”
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सामग्री (Content) तो राजा कतई नहीं है!
नेट पर हमारी उपस्थिति तो बनी। ब्लॉग के क्लिक्स बढ़ते गये। रोज आंकड़े देख कर हम प्रमुदित होते थे, पर उससे पैसा कमाने का मॉडल गूगल का बन रहा था!
#200शब्द – कैलाश दुबे
मुझे यह लगा कि यूंही, कैलश जी के पास जाया और बैठा जा सकता है। धर्म और अर्थ को सरलता के मधु में जिस कुशलता से उन्होने साधा है, वह अभूतपूर्व है।
पहले का ग्रामीण रहन सहन और प्रसन्नता
लोग सामान्यत: कहते हैं कि पहले गरीबी थी, पैसा कम था, मेहनत ज्यादा करनी पड़ती थी, पर लोग ज्यादा सुखी थे। आपस में मेलजोल ज्यादा था। हंसी-खुशी ज्यादा थी। ईर्ष्या द्वेष कम था।
कुछ बच्चों के पुराने चित्र
कुल मिला कर लड़कियों की जिंदगी ढर्रे पर चल निकली है। वे घर संभालने लगी हैं। खेतों में कटाई के काम में जाने लगी हैं। लड़के अभी बगड्डा घूम रहे हैं, पर कुछ ही साल बाद मजदूरी, बेलदारी, मिस्त्रियाना काम में लग जायेंगे।
प्री-वेडिंग शूट! तेजी से बदल रहा है समाज
प्री-वेडिंग शूट हमारे लिये बिल्कुल नयी बात थी। लड़का लड़की बिल्कुल फिल्म शूटिंग के अंदाज में विभिन्न सीन में भिन्न भिन्न पोज और पोशाकों में स्क्रीन पर आ रहे थे।