ट्यूशन पढ़ने वाले बच्चे


मास्साब सवेरे सात से आठ बजे तक एक घण्टा दे कर तीन हजार रुपया महीना कमाते होंगे। अभिभावक भी डेढ़ सौ महीना दे कर बच्चे को शेक्सपीयर/रामानुजम बनाने की नहीं स्कूल की भरपायी की आशा रखते होंगे।

हेमेन्द्र सक्सेना जी के संस्मरण – पुराने इलाहाबाद की यादें (भाग 3)


सन 1948 का समय… राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं और लालच ने कुटिलता का वातावरण बना दिया था और औसत दर्जे की सोच ने उत्कृष्टता को कोहनिया कर अपना स्थान बनाना प्रारम्भ कर दिया था।