छठ्ठन जी मिलने आये। उनकी पतोहू ग्राम-प्रधान बनी है। वह तो इसलिये कि सीट अनुसूचित महिला के लिये थी।
अत: डी-फेक्टो प्रधान छठ्ठन जी ही हैं। वे रेलवे में गेटमैन थे। कुछ समय पहले उन्होने वीआरएस ले लिया और उनकी जगह पर उनके छोटे बेटे को नौकरी मिल गयी। वे भी (रिटायर्ड) रेलवे मैंन हैं और उनका लड़का भी रेलवे में है; इसलिये उनसे लगाव सा है। मैं आशा भी करता हूं कि उनमें रेलवे के अनुशासित जीवन का कुछ प्रभाव होगा ही। वे खुद बताते हैं कि गेटमैन की ड्यूटी करते हुये उनको सड़क यातायात वालों की खरीखोटी सुनने का अनुभव है और वे जानते हैं कि नम्रता से ही काम निकलता है, अकड़ से नहीं।
प्रधानी के काम-धाम और कोरोना तथा गांव की स्वास्थ्य सजगता पर हमने चर्चा की। उनमें भी लीक से हट कर कुछ करने का जज्बा दिखा। उनके लोग गांव का डाटा-बैंक तैयार करने लगे हैं। रजिस्टर बना लिया है। लोगों के किस प्रकार के काम किये जाने हैं, या किये जा सकते हैं, उसके बारे में वे अपना ध्यान देने लगे हैं।

मैंने उनको इस प्रकार की गतिविधियों में सक्रिय सहयोग देने की बात उनसे बार बार कही। स्वास्थ्य विभाग वालों से सम्पर्क करने, जिला या ब्लॉक प्रशासन या रेलवे से सम्पर्क करने की जरूरत में मेरे सहयोग की आवश्यकता पड़े, तो वह भी मैं करने को तैयार हूं। अपना कम्यूटर-प्रिण्टर उनकी सहायता के लिये उपलब्ध करा सकता हूं। कोई चिठ्ठी ड्राफ्ट करनी हो, वह भी कर सकता हूं। मैं सिर्फ यह चाहता हूं कि वे और उनकी टीम वाले वास्तव में गांव की जनता की भलाई के लिये काम करें। छठ्ठन जी के साथ उनका पोता भी साथ था। उस लड़के की अम्मा जीती हैं प्रधानी का चुनाव। जो कुछ हम लोगों ने कहा-सुना, उसका उस बालक पर भी कुछ प्रभाव पड़ा ही होगा।
छठ्ठन जी के जाने के बाद पत्नीजी ने मुझसे कहा – बहुत ज्यादा प्रवचन देते हो। अब वह तुम्हारे कोई कर्मचारी तो हैं नहीं। जबरी इतना करने का एजेण्डा बताने लगते हो। इतना भी न कहा करो कि अगला आपसे कन्नी काटने लगे! आगे कभी मिलने से भी कतराये।
बहरहाल, छठ्ठन जी से सम्पर्क हुआ है। अगले पांच साल में; उनके द्वारा और उनके साथ जो कुछ मेरे मस्तिष्क में गांव को ले कर चला करता है; उसमें से दस प्रतिशत भी जमीनी हकीकत बन पाया तो धन्य होने जैसी बात होगी!
प्रधान पति तो सुना था, उनके हस्ताक्षरित कई कागज़ भी आर सी टी के कार्यकाल में देखे, पर प्रधान ससुर पहली बार सुनने/पढ़ने का मौका मिला। लेकिन आपने सही कहा रेलवे के अनुशासन के संस्कार का असर पड़ेगा ही. सही दिशा,दशा बदलने के लिए पहला कदम होती है. — ए के श्रीवास्तव
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छठ्ठन जी गाँव के प्रति गम्भीर दिख रहे हैं। रागदरबारी की राह न चली जाये यह गम्भीरता, यह दायित्व तो आपका बनता ही है।
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देखते हैं, रागदरबारियत में सब चूस लेने का गुण होता है. उससे बचने का प्रयास सफ़ल होगा या नहीं, समय बतायेगा.
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