पॉडकास्टिंग मेरा नया जुनून है। लगभग 66 की उम्र में, जब लोगों की आवाज में खनक गायब होने लगती है, तब मुझे आवाज के प्रयोग की सूझ रही है! और जैसे ब्लॉग के लिये अपने आसपास के लोग, विषय, दृष्य लताशने की प्रवृत्ति थी, अब पॉडकास्ट के लिये भी वही तलाश हो रही है। वह सब की तलाश जिसमें ध्वनि हो और मोबाइल फोन के ध्वनि-रिकार्डर की जद में वह आ सके।

जब मैंने पॉडकास्टिंग में इनपुट्स देने के लिये सुपात्र तलाशने प्रारम्भ किये तो डा. रविशंकर की याद हो आयी। रिटायरमेण्ट के बाद यहां गांव में अगियाबीर पुरातत्व प्रॉजेक्ट चलते समय बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के डा. रविशंकर जी से परिचय हुआ था।
मुझे ज्ञात था कि भदोही के पुरातत्व सर्वेक्षण पर उनसे बेहतर व्यक्ति कोई नहीं है। उनकी थीसिस इसी विषय पर है और मैंने वह थीसिस देखी है। वह तब जब वह अप्रूव भी नहीं हुई थी और वे उस समय रिसर्च स्कॉलर थे। खैर, उनकी थीसिस देख कर कोई संशय ही नहीं था कि निकट भविष्य में वे डाक्टरेट की सनद प्राप्त कर लेंगे। कालांतर में वे डा. रविशंकर हो गये। अभी वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में पुरातत्व के पोस्ट डॉक्टरल फैलो हैं। उनकी थीसिस नायाब है और उसके पब्लिश होने का इंतजार कर रहा हूं मैं।
पॉडकास्ट के लिये मैंने उनसे सम्पर्क किया और उनसे उनके भदोही के पुरातत्व पर कथ्य रिकार्ड करने की इच्छा जताई। डा. रविशंकर बिना कोई न नुकुर किये तैयार हो गये और वह पॉडकास्ट आपके समक्ष उपलब्ध है।
मेरे ब्लॉग के बधुओं ने; जिन्होने पुरानी पोस्टें पढ़ी हैं, वे इस पॉडकास्ट की सामग्री से बहुत कुछ परिचित होंगे। मेरी अप्रेल 2018 की पोस्ट भदोही की आर्कियॉलॉजी के तत्वशोधक रविशंकर में उनके इस विषय में विचार उपलब्ध हैं। पर पॉडकास्ट का अपना अलग शऊर है, अपना अलग आनंद। आप उस पॉडकास्ट को सुनने का कष्ट करें। उम्मीद है यह अच्छा ही होगा। डा. रविशंकर ने उसमें बड़े पैशन से बोला है – वे आर्कियालॉजी ओढ़ते बिछाते हैं। अगर कमी होगी तो वह नौसिखिया सूत्रधार की ही होगी। मेरी होगी। आप सुनें –
मानसिक हलचल पर पॉडकास्ट प्रस्तुत करने का सिलसिला प्रारम्भ हुआ है तो दूर तक जायेगा। अनगढ़, खुरदरे प्रयोग होंगे। एक सामान्य से मोबाइल से रिकार्ड होगा पॉडकास्ट। बहुत मिनिमल एडिटिंग और उसमें सूत्रधार की सधी नहीं, लटपटाती आवाज; जिसमें प्रवाह नहीं शब्द को तलाशता एक रिटायर्ड आदमी होगा। बस उसके पास समय खाली समय होगा और परनिंदा या दोष दर्शन से बचने के लिये कुछ नया करने का मंद मंद उत्साह।
जीडी ब्लॉगर से पॉडकास्टर बन ही जायेगा। बिना किसी टीम, बिना नेटवर्किंग, बिना किसी फॉलोवर ब्रिगेड के। 😆
बस चरैवेति, चरैवेति! कीप मूविंग जीडी! बाज की असली उड़ान बाकी है! 🙂
भदोही के इतिहास को प्रागैतिहासिक काल तक खींच ले जाने वाले तथ्यशोधक और
सत्यशोधक डॉ रविशंकर से आपकी ब्लॉग पोस्ट के जरिये एक अरसा पहले मिल चुका था
। आपका पॉडकास्ट और यह नवीन पोस्ट उसे पुन: स्मृति के केन्द्र में ले आए ।
डॉ रविशंकर तो खैर युवा हैं सो उनका उत्साह और उनका अपने विषय पुरातत्व के
प्रति पैशन सर्वथा स्वाभाविक है । मुझे तो 66 वर्षीय वानप्रस्थी की ऊर्जा और
उत्साह चकित भी करता है और प्रेरणा का स्रोत भी बनता है।
अपनी सक्रियता से आप चरैवेति-चरैवेति के मंत्र को सार्थकता प्रदान कर रहे
हैं। आपकी सक्रियता संक्रामक हो !
On Sun, 25 Jul, 2021, 11:01 AM मानसिक हलचल : ज्ञानदत्त पाण्डेय का ब्लॉग, wrote:
> Gyan Dutt Pandey posted: ” पॉडकास्टिंग मेरा नया जुनून है। लगभग 66 की उम्र
> में, जब लोगों की आवाज में खनक गायब होने लगती है, तब मुझे आवाज के प्रयोग की
> सूझ रही है! और जैसे ब्लॉग के लिये अपने आसपास के लोग, विषय, दृष्य लताशने की
> प्रवृत्ति थी, अब पॉडकास्ट के लिये भी वही तलाश हो रही है। ”
>
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जय हो, प्रियंकर जी! आशा है आप सकुशल और आनंद से होंगे!
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आपका पाडकास्ट पहले ही सुन चुका था, ब्लाग की प्रतीक्षा कर रहा था। पुरातत्व के बारे में रविशंकरजी का उत्साह प्रशंसनीय है।
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