प्लास्टिक फेरीवालोंं के समूह

कई समूह इस इलाके में प्लास्टिक की डेली-यूज की सस्ती वस्तुओं को बेचने के लगे हैं। वे मोबाइल, ऑनलाइन और मोटर साइकिल तथा हाईवे जैसी सुविधाओं का सही सही दोहन कर ग्रामीण जनता को सुविधा भी दे रहे हैं और अपना पेट भी पाल रहे हैं।

कन्हैयालाल को मैंने कटका पड़ाव के शिवाला पर खोजा था। उसके समूह में बाईस फेरीवाले थे जो प्लास्टिक के सामान साइकिल या मोटरसाइकिल पर ले कर गांव गांव बेचा करते हैं।

कन्हैयालाल और फेरीवालों का डेरा

उनपर ब्लॉग पोस्ट लिखने के बाद उनके समूह पर और जानकारी लेने के लिये दो दिन बाद मैं फिर उनके डेरा पर गया। पर कन्हैयालाल वहां नहीं मिले। जो और लोग थे, उनमें से एक देवेंद्र ने बताया कि यहां कुछ बिक्री कम हो रही थी, तो समूह ने तय किया कि पांच सात दिन का सामान मोटरसाइकिलों पर लाद कर कुछ लोग रात में सीधी (मध्यप्रदेश) के लिये चले जायें। सात लोग, जिनके पास मोटर साइकिल थी, वे इस यात्रा पर निकल गये। चूंकि कन्हैयालाल के पास मोटर साइकिल थी, वे भी उस ग्रुप में थे जो सीधी गया है।

अर्थात, ये फेरीवाले अपने को मार्केट कण्डीशन में ढाल कर त्वरित निर्णय भी लेते हैं और उसपर अमल भी फट्टाक से कर लेते हैं।

देवेंद्र (बीच में) ने बताया कि यहां कुछ बिक्री कम हो रही थी, तो समूह ने तय किया कि पांच सात दिन का सामान मोटरसाइकिलों पर लाद कर कुछ लोग रात में सीधी (मध्यप्रदेश) के लिये चले जायें।

देवेंद्र से उनकी कार्यप्रणाली के बारे में और भी बात हुई। यह बिजनेस मॉडल उनका ईजाद किया हुआ नहीं है। वहीं एक किशोर वय का लगता युवक भी था, उसने बताया कि उसके पिताजी यह काम करते थे। वही अपने कानपुर के इलाके के लोगों को ऑर्गेनाइज करते थे। वही बनारस से सामान मंगवाते थे और फेरी का काम चलता था। करीब पचास साल का उसके पिताजी का फेरी का इतिहास है। अब पिताजी वृद्ध हो गये हैं तो वे गांव पर ही रहते हैं। उनका काम अब वह नवयुवक सम्भालता है।

ऐसा भी नहीं है कि काम उसके पिताजी ने ईजाद किया। उनसे पहले बंगाली लोग इसी इलाके में काम करते रहे हैं। आज भी करते हैं। उसके पिताजी ने उसी बंगाली समूह से सीखा था यह।

शाम के समय मेरी बिटिया ने एक फेरीवाले को घर में बुलाया। मोलभाव कर एक दो सामान खरीदा। उससे मैंने बातचीत की। “तुम कटका पड़ाव पर रहने वालों में से हो?”

मुझे यह स्पष्ट हो गया कि इस तरह के कई समूह इस इलाके में प्लास्टिक की डेली-यूज की सस्ती वस्तुओं को बेचने के लगे हैं।

उसने कहा कि नहीं, वह औराई के पास डेरा लगाये एक समूह से है। उसके समूह में 15 लोग हैं। लोग घटते बढ़ते रहते हैं। अपना मूल स्थान उसने गोरखपुर बताया।

मैंने गोरखपुर के स्थान के बारे में बात की तो वह बोला – गोरखपुर के पास कुशीनगर। कुशीनगर के बारे में पूछने पर वह अंतत: पडरौना के पास किसी गांव का निकला। समूह के बाकी लोग भी पडरौना के ही हैं। उनका ग्रुप लीडर प्रतापगढ़ और बनारस से सामान मंगवाता है। ग्रुप लीडर खुद फेरी नहीं लगाता। उसका काम केवल इस व्यवसाय को ऑर्गेनाइज करना है। अपना नाम उसने बताया – रमेश।

आखिर फ्लिपकार्ट और अमेजन वाले गांवदेहात में पसर कर वही तो कर रहे हैं। वे भी सरकारी टेक्सेशन तंत्र को बाईपास कर लेते हैं, वे भी सस्ता सामान दूर दराज के गांवों में पंहुचा रहे हैं। आखिर हैं तो वे भी ग्लोरीफाइड फेरीवाले ही!

मुझे यह स्पष्ट हो गया कि इस तरह के कई समूह इस इलाके में प्लास्टिक की डेली-यूज की सस्ती वस्तुओं को बेचने के लगे हैं। वे मोबाइल, ऑनलाइन और मोटर साइकिल तथा हाईवे जैसी सुविधाओं का सही सही दोहन कर ग्रामीण जनता को सुविधा भी दे रहे हैं और अपना पेट भी पाल रहे हैं।

रमेश फेरीवाला। पडरौना, उत्तर प्रदेश से है। औराई में फेरीवालों के समूह में रहता है।

व्यवसाय का यह मॉडल तकनीकी और ग्रामीण जरूरत का सटीक फ्यूजन है। इसी मॉडल को और आगे ले जाने, और कई प्रकार की जरूरतों को पूरा करने की पहल की सम्भावनायें बनती हैं। इससे महानगरों की ओर बगटुट भागने वालों की प्रवृत्ति भी कम हो सकेगी। आखिर फ्लिपकार्ट और अमेजन वाले गांवदेहात में पसर कर वही तो कर रहे हैं। वे भी सरकारी टेक्सेशन तंत्र को बाईपास कर लेते हैं, वे भी सस्ता सामान दूर दराज के गांवों में पंहुचा रहे हैं। आखिर हैं तो वे भी ग्लोरीफाइड फेरीवाले ही!

शाम हो गयी थी। छ बज रहे थे। रमेश ने बताया कि अब वह लौट जायेगा। सूरज ढलते ढलते अपने डेरा पर पंहुच जायेगा। गांवदेहात में सारा काम – चाहे फेरी का भी – सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच ही होता है। जैसे सांझ होते ही पंछी अपने पेड़ पर लौटते हैं, वैसे ही फेरीवाले भी अपने डेरा पर पंहुच जाते हैं। प्रकृति और गांव में बहुत समानतायें हैं। :-)


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

3 thoughts on “प्लास्टिक फेरीवालोंं के समूह

  1. वाह, मन आनन्द से भर गया। इतनी flexibility रही भारतीय युवाओं में तो आप मान कर चलिये कि वे सबकी बैण्ड बजा देंगे। मैं तो सोचता था कि हम स्वभावतः आलसी हैं, कन्हैयालाल का समूह अपवाद लग रहा है।

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