डायरी, घास, निठल्ला मन, राखी और यादोत्सव

आज क्या लिखें। आज तो रक्षाबंधन है। ब्लॉग के पढ़वैय्या तो होंगे नहीं। पर लिखना तो खुद के लिये होता है। तुलसीदास दे गये हैं एक शब्द – स्वांत: सुखाय। वही कुछ। और यह ब्लॉग भी क्या है? डायरी का रूपांतरण भर तो है। आगे कभी कोई बालक मेरे बारे में जानना चाहेगा, तो ब्लॉग खंगाल लेगा।

नियमित डायरी लेखन अभी शुरू ही किया है, करीब चार महीने पहले। विचार यह है कि लॉन्ग हैण्ड में लिखने से हैण्डराइटिंग कुछ सुधर जाये। कुछ यह भी पढ़ा कि रोजनामचा लिखने से व्यक्तित्व तराशने के भी फायदे होते हैं। छियसठ के समीप आती उम्र में भी व्यक्तित्व तराशने का ऑब्सेशन? कुछ ज्यादा ही नहीं सठिया रहे हो जीडी। जो बनना था, सो बन लिये। अभी भी सोचे चले जाते हो – इस बाज की असली उड़ान बाकी है! 😆

रोजनामचे का एक पन्ना। लिखना इसलिये शुरू किया है कि हैण्डराइटिंग सुधर जाये, इसी बहाने।

कल तीन ताल वालों ने जिक्र किया मेरे ब्लॉग पोस्ट का। अच्छा लगा। शहरी लोगों में अभी भी प्रासंगिक बना हूं, यह जान कर अभिव्यक्ति के इस माध्यम को अपनाये रहने का मन होता है। कुलदीप मिश्र जी ने मेरे इस उम्र में सीखने की जीजीविषा कायम रहने की बात कही। वह सुन कर लगा कि यह वास्तव में अभी मेरे पर्सोना से गयी नहीं है। पाणिनि पण्डित जी कहे कि मेरी हिंदी सफेद है, और फिर भी मैं उसे चमकाने की फिक्र में दुबराता जा रहा हूं। … वह कुछ वैसा ही है कि पाणिनि जी बावजूद अपनी मधुर आवाज के अपने को दुर्वासा कहते हैं। … यह तीनताल वाला हर एक मनई अपने बारे में कबीरदास की उलटबांसियों में ही बतियाता है। बाकी, बतियाता खूब है। उस पॉडकास्ट को नीचे चिपकाये दे रहा हूं।

तीन ताल का टटका अंक

घर में बहुत सा हिस्सा है, जिसपर चला नहीं जाता। उसमें देखा तो काई जैसा कुछ उग आया है। उसपर चलें तो फिसलन होगी। दूर से उसका चित्र अच्छा लगता है। घर में बेतरतीब उगता खर पतवार बढ़ रहा है। उसे निराने के लिये अभी पैसा खर्च करना जमता नहीं। निराई करने वाली औरतें पांच सात सौ ले जायेंगी। दिन में दो जुआर चाय नाश्ता भी पत्नीजी देंगी उनको और सप्ताह भर में ही घास जस की तस हो जायेगी।

सत्तर रुपये की घास झुलसाने वाली दवाई ले कर आया। उसे दस लीटर पानी में घोल कर स्प्रे करवाया। नया प्रयोग। पर प्रयोग करते ही बादल आये। धूप पटा गयी और बरसे इतना कि दवाई धुल गयी होगी। सब चौपट। उसके अलावा जमीन में पेस्टीसाइड जा कर मृदा को खराब किया होगा, सो अलग। घर दुआर मेण्टेन करना खर्च का काम है और इसमें भी भाग्य-सौभाग्य-दुर्भाग्य का खेला होता है। तुम्हारी लकीरें सही साट नहीं हैं जीडी! ढेर प्रयोग-स्रयोग के फेर में मत पड़ा करो।

घर में मेला लग गया है। मेम साहब के तीन भाई आये हैं। मेरी बिटिया है। उसके ममेरे भाई-बहन। बहुत चांव चांव है। मुझे भी मेरी बहन की आयी राखी मेरी बिटिया ने बांधी। बहन की याद आ रही है। उसके बहाने अपनी माँ-पिताजी की भी याद आ रही है। कोई भी त्यौहार क्या होता है, उम्र बढ़ने के साथ वह अतीत का यादोत्सव होने लगता है।

मुझे भी मेरी बहन की आयी राखी मेरी बिटिया ने बांधी।

घर में मेला लग गया है। मेम साहब के तीन भाई आये हैं। मेरी बिटिया है। उसके ममेरे भाई-बहन। बहुत चांव चांव है। मुझे भी मेरी बहन की आयी राखी मेरी बिटिया ने बांधी। बहन की याद आ रही है। उसके बहाने अपनी माँ-पिताजी की भी याद आ रही है। कोई भी त्यौहार क्या होता है, उम्र बढ़ने के साथ वह अतीत का यादोत्सव होने लगता है।

वैसे नयी पीढ़ी नये तरह के प्रयोग भी कर रही है। बिटिया अपनी बहनों को भी राखी बांध रही हैं। राखी रक्षा का प्रतीक नहीं रहा, वह मैत्री, सौहार्द, हेलमेल और सम्बंधों में भी गोईंया देखने का त्यौहार हो गया है।

बिटिया अपनी बहनों को भी राखी बांध रही हैं।

लोग राखी बंधवा कर, खा-पी कर काम पर निकल लिये हैं। मेरी पत्नीजी के दो भाई लेट आये हैं। चांव चांव मची है। उनके लिये लाई राखी इधर उधर हो गयी है। पत्नीजी बताती हैं कि उनके (दिवंगत) पिताजी कह गये थे कि बेटा राखी का कोई मोल नहीं होता है। इसलिये भाई लोगों ने लिफाफा देने की परम्परा ही नहीं रखी। पर वे हैं खूब प्रसन्न। कई दिनों ने आज के आयोजन की तैयारी कर रही थीं। कमरे के बाहर दालान में निकल कर उन सब की उत्फुल्लता का अनुभव कर आता हूं मैं बीच बीच में।

आज इतना ही। आजका दिन भी बिना लिखे खाली नहीं गया, वह बताने के लिये इतना ही काफी है। जय हो!


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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

7 thoughts on “डायरी, घास, निठल्ला मन, राखी और यादोत्सव

  1. फेसबुक पर दिनेश कुमार शुक्ल जी की टिप्पणी (https://bit.ly/3sDmLg1) –
    महराज ये आत्मावलोकन ही है। बल्कि जो कुछ भी है वह सब आत्मावलोकन ही तो है। बाबा कह गये हैं-
    निज मुख मुकुर, मुकुर निज पानी/गहि न जाय अस अदभुत बानी। अपने ही प्रतिबिंब को छूने के लिए सभी लोग अनथक दौड़ रहे हैं जबकि पता है कि हाथ कुछ नहीं लगना। तो आप लिखते रहिये यही तो है जो है। बाकी कुच्छ नहीं , वह सब तो बस अपना अलभ्य प्रतिबिंब ही है।

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  2. डायरी लिखने की आदत हमें भी डालनी पड़ेगी, लगता है। अतीत का यादोत्सव – सुन्दर प्रयोग है। हम भी ऐसे ही उतर जाते हैं।

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    1. अपने नोट्स रखने पर आगे बहुत लाभ होगा. ओबामा की आटो बायोग्राफी बहुत शानदार बनी है इसलिए कि उनकी विस्तृत नोट्स रखने की आदत थी.

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  3. घर दुआर मेण्टेन करना खर्च का काम है और इसमें भी भाग्य-सौभाग्य-दुर्भाग्य का खेला होता है। तुम्हारी लकीरें सही साट नहीं हैं जीडी! ढेर प्रयोग-स्रयोग के फेर में मत पड़ा करो।

    मन की बात ब्लैक ऐंड व्हाईट में हम सब के समक्ष जरूर है
    पर
    है यह सबके मन की बात…. अंतर इतना कि यह हर किसी के बस का नहीं आपकी तरह इतनी साफगोई से साउदाहरण लिखना…
    आपका ब्लॉग अनुभूति का अनमोल खजाना है
    आपका हार्दिक आभार

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    1. धन्यवाद याद रखने के लिए – कोटा के दिनों की मेरी स्मृतियों को आप ताजा कर देते हैं! 🙏

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