तीन तालियों पर मेरी पत्नीजी के विचार

सुटकहवा (पतला दुबला) तो बाकी दो हैवीवेट वालों को सम्भालने में ही हैरान परेशान दिखता है। है वो पढ़ा लिखा। चण्ट भी है। दोनो बाकी लोगों के दबाव में नहीं दिखता। पर उसका रोल जैसा है, उसके हिसाब से उसे बैलेंस बनाना पड़ता है।

[तीन ताल; आज तक रेडियो का एक साप्ताहिक पॉडकास्ट है। जिसने पिछले शनिवार को अपने पचास एपीसोड पूरे किये हैं। स्पोटीफाई पर यह पॉडकास्ट ‘कॉमेडी’ वर्ग में रखा गया है। कहा नहीं जा सकता कि यह वर्गीकरण तीन ताल वालों ने खुद किया है या यह उनके साथ मजाक किया गया है। इस पॉडकास्ट के बारे में तीन तालियों का सावधान करने का कथ्य है – ये पॉडकास्ट सबके लिए नहीं है। जो घर फूंके आपना, सो चले हमारे साथ। यानी वही लोग सुनें जिनका आहत होने का पैरामीटर ज़रा ऊंचा हो।]

अपनी टीआरपी के चक्कर में, या जो भी चक्कर रहा हो; इंजीनियरों को गरिया कर मेरी पत्नीजी की निगाह में अपनी स्टॉक वैल्यू धड़ाम से गिरा लिये थे पाणिनि पण्डित। “ये दाढ़ी-झोंटा बढ़ा कर अपने को ढेर विद्वान समझते हैं। ज्यादा बतियाने से कोई विद्वान थोड़े ही हो जाता है। थोड़ा बहुत कार्ल मार्क्स पढ़ के आदमी पगला जाता है और दूसरे को लण्ठ समझने का घमण्ड पाल लेता है।” – यह उनकी प्रतिक्रिया थी तीन ताल का नीचे वाला एपीसोड सुन कर।

पर पिछले एपीसोड में अपनी शेयर वैल्यू में वी ‘V’ शेप रिकवरी की पाणिनि आनंद ने। पहले तो तीन तालियों ने अपने पचासवें “श्रवण जयंती” एपीसोड के उपलक्ष में अलग अलग जगहों के लोगों को भी जूम पर जोड़ा। अहमदाबाद, बनारस, जम्मू कश्मीर और लंदन के श्रोता उसमें थे। कायदे से बनारस से मात्र चालीस किलोमीटर पर मैं हूं और इतनी पास पास का मनई लेने की बजाय कोई बिहार-झारखण्ड का होता तो बेहतर रहता जुगराफिये के हिसाब से; पर उन्होने एक भदोहिये को ही जोड़ लिया। किसी ‘विद्वान’ की बजाय “भदोहिया भुच्च” को। एक तो उन्होने मुझे जोड़ा अपनी जूम रिकार्डिंग में, दूसरे मुझे जामवंत की उपाधि दी (वैसे एक रीछ का प्रोफाइल चित्र बहुत फोटोजेनिक नहीं लगता, पर चलेगा। जामवंत का चरित्र भाजपा के मार्गदर्शक मण्डल की तरह निरीह टाइप नहीं है। वो एक्टिव पार्टीसिपेण्ट हैं लंका-विजय अभियान के!) – इन दोनो बातों से श्रीमती रीता पाण्डेय की रुचि तीन ताल में फिर से जग गयी। एपीसोड यह रहा –

दोपहर में रीता जी हेड फोन लगाये आंख मूंदे बिस्तर पर बहुत देर से लेटी थीं। मैंने कहा – नींद में हो या जाग रही हो। हेड फोन तो उतार दो।

दोपहर में रीता जी हेड फोन लगाये आंख मूंदे बिस्तर पर बहुत देर से लेटी थीं।

उन्होने उत्तर दिया – सो नहीं रही हूं। सुन रही हूं, तीन ताल वालों को।

पाणिनि आनंद। दो-दो अंगूठी पहने तांत्रिक टाइप बाबा लगते हैं।

तब मुझे लगा कि पाणिनि अपनी साख रिस्टोर कर पाने में सफल रहे हैं। पाणिनि पण्डित पर ताजा टिप्पणी थी उनकी – “नहीं, गड़बड़ नहीं है बंदा। धाराप्रवाह बोलते हैं, अच्छा बोलते हैं। बलबलाते नहीं। भड़भड़िया नहीं हैं। विचारों से सहमत होना, न होना अलग बात है।… अब इतना बोलते हैं तो कहीं कहीं फिसलना हो ही सकता है। पिन चुभोने के लिये इंजीनियर्स को निशाने पर लिया था, वह क्लियर दिखता है। बाकी, टीआरपी वाला चक्कर भी हो सकता है।” कुल मिला कर पाणिनि के बारे में विचार में वी शेप रिकवरी।

मैंने पूछा – बाकी दो लोगों (तीनतालियों) के बारे में क्या विचार है?

कुलदीप मिश्र। तीन ताल के सूत्रधार।

“सुटकहवा (पतला दुबला) तो बाकी दो हैवीवेट वालों को सम्भालने में ही हैरान परेशान दिखता है। है वो पढ़ा लिखा। चण्ट भी है। दोनो बाकी लोगों के दबाव में नहीं दिखता। पर उसका रोल जैसा है, उसके हिसाब से उसे बैलेंस बनाना पड़ता है। उतना खुल कर नहीं खेल पाता।”

“और कमलेश किशोर सिंह?”

“उनके बारे में तो सोच बनाने के लिये कुछ और सुनना पड़ेगा। नब्बे परसेण्ट तो पाणनियई हथिया लेते हैं। उनको ध्यान से सुनें तब ओपीनियन बनायें।” – उन्होने उत्तर दिया।

कमलेश किशोर सिंह। आजतक रेडियो के महंत।

कमलेश किशोर महंत हैं। उन्हे पाणिनि को नब्बे परसेण्ट से पचहत्तर परसेण्ट के कोटा पर सिमटने को कहना चाहिये। खाली हुये पंद्रह परसेण्ट में अपना आभा मण्डल बनाना चाहिये – यह मेरा नहीं, मेरी पत्नीजी का आशय है! :lol:

(तीनों तीन तालियों के चित्र जूम के स्क्रीन शॉट हैं।)


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

9 thoughts on “तीन तालियों पर मेरी पत्नीजी के विचार

  1. ट्विटर पर कुलदीप मिश्र

    हँस हँसकर लोट पोट हो गया.
    @aajtakradio पर हमारे पॉडकास्ट ‘तीन ताल’ ने 50 एपिसोड पूरे कर लिए हैं. इस पर हमारे अभिभावक श्रोता ज्ञानदत्त जी ने क्या मज़ेदार ब्लॉग लिखा है.

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  2. ट्विटर पर बेबाक बात
    ये जो इन्होंने नए शब्द ‘सुटकहवा’ का निर्माण किया है वह वाकई लाजवाब है। और इस कठिन शब्द को मोबाइल में टाइप करना और अधिक सराहनीय है ।

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  3. ट्विटर पर अर्पणा चंदेल
    वाह ! जबरदस्त. बड़ा मज़ा आया ज्ञान दत्त जी का ब्लॉग पढ़कर.
    आपकी श्रीमती जी की ऑब्जर्वेशन के क्या कहने.

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  4. रोचक बतकही।

    मैं आपका सम्मान करता हूँ वरना कहना तो यह चाहता था कि रीता भाभी के फोटो बिना उनको बताए (यथा सम्भव खराब करने की मंशा के साथ)फोटो खींचने में आपको महारत हासिल है। यह अलग बात कि उसमें भीआपको सफलता नहीं मिलती। 😊

    Liked by 1 person

    1. हाहाहा! मैं भी आपका बहुत सम्मान करता हूँ! वर्ना…. यह तरीका बढ़िया है बनारसी लोगों का. कभी यहां आइए तो आपका खूब सम्मान करने का मौका मिले. 😁

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