कुण्डम से जबलपुर – वृहन्नलाओं का आशीष पाये प्रेमसागर

वृहन्नलाओं के समूह में चार लोग थे। सबसे उम्रदराज व्यक्ति प्रेमसागर के सिर पर हाथ रख आशीष दे रहा था, अपने पूरे समूह की ओर से। भारतीय समाज में उनके आशीर्वाद का बहुत महत्व है। नया बच्चा जन्मता है या किसी का विवाह होता है तो हिंजड़े गुणगान कर आशीष दें; वह शुभ माना जाता है। प्रेमसागर को अपनी यात्रा के पुनीत ध्येय के कारण वह आशीर्वाद बिन मांगे बड़ी सरलता से सहर्ष मिल गया।

मैंने सवेरे साढ़े पांच बजे फोन किया प्रेमसागर को। सोचा था कि वे इस समय निकलने वाले होंगे अपनी पदयात्रा पर। पर उन्होने कहा – “भईया सवेरे साढ़े चार बजे निकल लिये हैं। आज लम्बा चलना है और जितना सवेरे खींच लें उतना बेहतर है। दिन में गर्मी बहुत हो जाती है और चलना सवेरे चलने से चार गुना भारी पड़ने लगता है। अब सवेरे 11-12 बजे तक 25 किमी चल लेंगे। उसके बाद आराम करेंगे और तब तक वन विभाग वाले यादव जी आ कर सामान भी ले जायेंगे। कांवर हल्की हो जायेगी। आगे जबलपुर की यात्रा सुगम हो जायेगी।”

चलने की धुन में रमे हैं प्रेम सागर।

उसके बाद आठ बजे फोन आया उनका – “भईया, पैर की तकलीफ बढ़ गयी है। रास्ते में बार बार मैं जांघ में पाउडर लगा रहा था। मैडीकल दुकान खोज रहा था कोई दर्द की दवाई के लिये। कुछ लोगों ने बताया – ऐसे दवाई लेने की बजाय आगे गांव में एक डाक्टर साहब रहते हैं; उन्हें दिखाओ। वे बहुत भले इंसान हैं। अगर वे मिट्टी भी उठा कर दे देंगे तो आपका सारा रोग दूर हो जायेगा।”

“एक किमी आगे डाक्टर साहब का घर था। वहीं आया हूं। भले डाक्टर साहब हैं। दवाई भी दिये हैं और चाय भी पिलाये हैं। आप जरा उनसे बात कर लीजिये।”

डाक्टर साहब से मैंने बात की। मैंने उन्हे कहा – “डाक्टर साहब आप जो कर रहे हैं, बहुत ही पुण्य का कार्य है। ये सज्जन द्वादश ज्योतिर्लिंग की पदयात्रा पर हैं। और यह संयोग ही है कि इनको महादेव ने आपके यहां भेज दिया है, निदान-उपचार के लिये।”

डाक्टर साहब ने कहा कि फिक्र न करें; आगे 24 किलोमीटर जबलपुर है और उसके आगे भी लम्बी यात्रा है इनकी। भगवान, ऊपर वाले सब सही करवायेंगे इनकी यात्रा! जब मन में आ जाती है तब ऊपर वाला अपने से सब व्यवस्था करता है।

डाक्टर परिहार और प्रेमसागर

डाक्टर साहब वास्तव में बहुत भले इंसान थे, डाक्टर से ज्यादा। उन्होने प्रेमसागर को पैरासेटामॉल का एक पत्ता, जख्म सूखने के लिये गोलियां और लगाने के लिये क्रीम/मलहम दिया। कोई पैसे नहीं लिये। उनको चाय, बिस्कुट और मठरी खिलाया अलग से। सवेरे सवेरे प्रेमसागर चाय की दुकान तलाशते हैं; आज अजनबी डाक्टर साहब से मिलवा दिया जिन्होने उनको चाय और दवा दोनो ही सप्रेम दी। आप अगर किसी महत-ध्येय के लिये निकल लिये होते हैं तो सारी प्रकृति, सारी दैवी शक्तियां अपने अपने प्रकार से आपकी सहायता में लग जाती हैं। एक अनजान से गांव पडरिया के डाक्टर परिहार इसी में एक कड़ी प्रमाणित हुये।

पड़रिया गांव के डाक्टर परिहार ने प्रेम सागर को दवाई दी और चायपान भी कराया। एक अंचलीय गांव में यह सत्कार और यह इलाज! हर हर महादेव!

जब प्रेमसागर डाक्टर परिहार के यहां इलाज करा रहे और चाय पी रहे थे; तभी वहां वीरेंद्र यादव जी पंहुचे। वीरेंद्र जबलपुर के वनविभाग की पर्यटन नर्सरी के कर्मी हैं। उनका गांव पीछे रह गया था। करीब पांच किलोमीटर पहले। वीरेंद्र जी अपने गांव में थे और वहीं से प्रेमसागर का सामान ले कर जबलपुर निकलने वाले थे। उन्होने सोचा था कि कुण्डम से प्रेमसागर छ बजे के आसपास निकलेंगे, पर वे तो साढ़े चार बजे ही निकल कर उनके गांव से आगे बढ़ आये थे। वीरेंद्र जी ने पड़रिया में सामान लिया। दवा लगा कर और गोलियां खा कर प्रेमसागर भी रवाना हुये। अब उनके साथ केवल हल्की कांवर थी। यादव जी भी रास्ते में उनके साथ आगे पीछे आते रहे और उनका ख्याल रखते रहे।

प्रेमसागर और वीरेंद्र यादव

लगभग बारह बजे फिर एक फोन आया प्रेम सागर का। मुझे आशंका हुई कि कहीं उनकी जांघ का दर्द फिर तो नहीं बढ़ गया। पर इसबार उनकी आवाज में एक अलग तरह की उत्तेजना थी – “भईया कुछ हिंजड़ा लोग मिले हैं चाय की दुकान पर। मेरी यात्रा के बारे में जानने पर मुझे आशीर्वाद दे रहे हैं। हिंजड़ा लोगों का आशीर्वाद बहुत मायने रखता है! आप अगर ठीक समझें तो उनके साथ एक चित्र आपके पास भेज दूं?”

यह अलग तरह की उत्तेजना ही रही होगी; अन्यथा ढेरों चित्र वे रास्ते में लेते हैं और शाम को एक साथ मुझे भेजते हैं। हिंजड़ों का आशीर्वाद उन्हें तुरंत किसी से बोलने बताने वाला अनुभव लगा होगा। और उन्हें मैं ही सुपात्र नजर आया शेयर करने के लिये! :-)

मैंने चित्र देखा। वृहन्नलाओं के समूह में चार लोग थे। सबसे उम्रदराज व्यक्ति प्रेमसागर के सिर पर हाथ रख आशीष दे रहा था, अपने पूरे समूह की ओर से।

भारतीय समाज में उनके आशीर्वाद का बहुत महत्व है। नया बच्चा जन्मता है या किसी का विवाह होता है तो हिंजड़े गुणगान कर आशीष दें; वह अत्यंत शुभ माना जाता है। वे दान लेने के बाद उसी में से कुछ अन्न निकाल कर देते हैं और उस अन्न को लोग अपने घर में हर जगह छींट देते हैं – जिससे उनका आशीर्वाद घर के सब स्थानों को पवित्र कर दे। प्रेमसागर को अपनी यात्रा के पुनीत ध्येय के कारण वह आशीर्वाद बिन मांगे बड़ी सरलता से सहर्ष मिल गया। उन लोगों ने आशीर्वाद के रूप में सिर पर हाथ रखा और उनको एक रुपया का सिक्का भी दिया। इससे बड़ा और क्या हो सकता है?! वह सिक्का उन्हें सदा साथ रखना चाहिये!

मैंने चित्र देखा। वृहन्नलाओं के समूह में सबसे उम्रदराज व्यक्ति प्रेमसागर के सिर पर हाथ रख आशीष दे रहा है, अपने पूरे समूह की ओर से।

आगे बरगी राइट-बैंक केनाल मिली। बहुत ही सुंदर चित्र आया है। साफ पानी, सीधी बनी नहर। वेगड़ जी ने लिखा है कि भविष्य में नर्मदा परिक्रमा का स्वरूप ही बदल जायेगा जब इतने बांध नर्मदा का सौंदर्य बिगाड़ देंगे और कितनी जगहें तो लुप्त हो जायेंगी कितने गांव मिट जायेंगे। वह हुआ होगा, और वह त्रासद है। पर यह नहर भी अपने आप में सुंदर है। मानव कृति प्रकृति से टक्कर लेती!

आगे बरगी राइट-बैंक केनाल मिली। बहुत ही सुंदर चित्र आया है। साफ पानी, सीधी बनी नहर।

उसके पास कहीं टूरिस्ट स्पॉट है। उसके बाद शहरी इलाका प्रारम्भ हुआ। खमरिया का ऑर्डीनेंस डिपो था, जिसके सामने एक डी-कमीशण्ड टैंक रखा था शो पीस के रूप में।

आज कुल मिला कर 50+ किमी चले प्रेम सागर करीब बारह – तेरह घण्टे लगे यात्रा में। रास्ते में उन्हें जांघ के घाव के कारण पीड़ा भी हुई और चाल भी कम हो गयी। जब वे लगभग पंहुच ही गये थे तो रास्ते में एक बुजुर्ग चाचा जी ने जबरी उन्हे रोका और चाय पिलाने पर ही जाने दिया। प्रेम सागर की कांवर यात्रा से रास्ते में बहुत से लोग कौतूहल, श्रद्धा, स्नेह और आदर से भरे मिलते हैं। वे अपने अपने तरीके से उसे व्यक्त करते हैं। प्रेम सागर सरलता से उसे स्वीकार करते रहे होंगे पहले भी, अब वे मुझे बताना/शेयर करना भी प्रारम्भ कर दिये हैं। मैंने देखा कि वे अपना एक ट्विटर अकाउण्ट बना कर मेरा आशीर्वाद भी मांग रहे थे –

शिव जी उत्तरोत्तर उनका मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं। बस वे अपनी सरलता क्षण भर को भी न त्यागें और अहंकार को कभी मन में घुसने न दें।

हर हर महादेव!

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

4 thoughts on “कुण्डम से जबलपुर – वृहन्नलाओं का आशीष पाये प्रेमसागर

    1. बहुत अच्छा लगा मुझे भी कल की घटनाओं पर प्रेम सागर को लगभग लाईव सुनते हुए. सही में – nature conspires to help you realise your dreams…

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  1. क्या पता 2 साल की यात्रा पूरी होने तक प्रेमसागर जी को ट्विटर पर ब्लू टिक ही मिल जाए। 😂

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