बड़वाह

31 अक्तूबर 21 रात्रि –

ॐकारेश्वर से बड़वाह पंहुचने में ज्यादा समय नहीं लगा और तब प्रेमसागर को बताया गया कि यहीं रुकना है। “पहले पता होता तो कल ॐकारेश्वर में जल चढ़ाने के बाद कल ही यहां पंहुच गया होता।” – प्रेमसागर ने मुझे बताया। यह चूक इसी कारण से हुई कि आपकी यात्रा कोई और नियोजित कर रहा है और आपका उससे सम्प्रेषण भी बराबर नहीं होता। पर इसे चूक भी कहा जाये या नहीं? प्रेमसागर तेज रफ्तार से कांवर यात्रा कर रहे हैं और उन्हें कुछ समय अपनी अनवाइण्डिंग के लिये व्यतीत करना चाहिये। आज वह अवसर मिल गया। यह अलग बात है कि बड़वाह के पहले उन्हे लूट लिया गया था, पर बड़वाह रुकने और आराम करने के लिये अच्छी जगह है।

बड़वाह भ्रमण के दौरान एक ब्लाइण्ड टर्न का चित्र प्रेमसागर ने भेजा।

वैसे वह लूट वाला हादसा कोई क्षति नहीं पंहुचाया प्रेमसागर को, सिवाय मानसिक कष्ट के। पर उस कष्ट को कमतर कैसे आंका जा सकता है? मैं होता तो शायद यात्रा (कम से कम अस्थायी रूप से) स्थगित या खत्म कर देता। प्रेमसागर को यात्रा नियोजन में भले ही कम अंक दिये जायें, उनके संकल्प और ध्येय पर अडिग रहने में तो ए++ ग्रेड मिलेगी!

प्रेमसागर के पैरों में चक्र है। सो अनवाइण्डिंग के दौरान भी बड़वाह के कई दर्शनीय स्थानों को देख आये। नर्मदा किनारे बसा बड़वाह एक नगरपालिका है, गांव नहीं। उसके आसपास चोरल और एक दो अन्य नदियां नक्शे में दिखती हैं। कई पौराणिक स्थल हैं इस नगरपालिका सीमा में और आसपास। कई चित्र प्रेमसागर ने बड़वाह भ्रमण के मेरे पास भेजे हैं।

इस ब्लॉग के पाठक शैलेंद्र पण्डित इसी स्थान के हैं। वे अपना दु:ख व्यक्त करते हैं कि प्रेमसागर उनके पैत्रिक घर के पास से गुजर रहे हैं, और वे उनका स्वागत नहीं कर सकते।

शैलेंद्र पण्डित (दांये) अपने माता पिता (अशोक और शीला पण्डित), पत्नी प्रिया और बेटी ग्रीषा के साथ। वैष्णो देवी यात्रा के दौरान लिया चित्र।

शैलेंद्र से मुझे इस यात्रा विवरण लिखने में बहुत सहायता मिली है। उनके महत्वपूर्ण इनपुट्स थे नर्मदा के हरसुद बांध बनने के बाद के स्वरूप पर। उनका प्रयोग मैं नहीं कर पाया। मैंने प्रेमसागर को यह कहा है कि बांध बन जाने के बाद नर्मदा के जलराशि में आये परिवर्तन को यात्रा में मिलने वाले चालीस साल से ज्यादा उम्र के लोगों से पूछें। हो सकता है जैसे गंगा आज अत्यधिक दोहन के कारण आईसीयू में हैं, नर्मदा भी अपना सौंदर्य खो चुकी हों, या खो रही हों।…. शैलेंद्र और उन जैसे कई लोग हैं जिनके योगदान को मुझे स्वीकार करना चाहिये। वह मैं समय समय पर याद करने और लिखने का प्रयास करूंगा।

प्रेमसागर के बड़वाह भ्रमण के चित्रों में दो नाम मुख्य रूप से स्पष्ट होते हैं – च्यवन ऋषि और महोदरी माता। च्यवन ऋषि को ले कर एक कथा एक बड़े से पट्ट पर लिखी है, जिसका चित्र प्रेमसागर ने भेजा –

च्यवन गौड़ ब्राह्मण समाज; जो च्यवन ऋषि से अपनी उत्पत्ति मानता होगा; ने यह शोध और सेवा समिति बनाई है। यह समिति महाभारत के वन पर्व की कथा को उधृत करते हुये यह पट्ट लिखती है। महाभारत में व्यास और सूतों के युग के बाद, जब वह ग्रंथ ब्राह्मणों के हाथ लगा तो उसमें ब्राह्मण वर्ग की महिमा बखानते हुये बहुत कुछ जोड़ा गया। ऋषि च्यवन का आख्यान भी उसी युग का प्रभाव हो सकता है। फिलहाल, एक निरीह सी राजकन्या सुकन्या को दीमक की बाम्बी में तपस्या करते ऋषि की आंखे फोड़ देने पर उसके पिता द्वारा ऋषि की सेवा में छोड़ देने का पितृसत्तात्मक समाज का असंवेदनशील कृत्य रुचता नहीं। और फिर ऋषि का युवक के रूप में रूपांतरण मुझे पौराणिक काल की इंसटेण्ट कर्म फल वाली कथाओं जैसा लगता है। उन कथाओं में गलत काम का तुरत नतीजा वाली ढेरों कथायें हैं। वे मुझे बहुत प्रभावित नहीं करतीं, पर हिदू समाज मेधा और श्रद्धा के विभिन्न स्तरों पर आज भी है। बहुत से लोगों को ये कथायें बहुत अपील करती हैं। हम लोग तो इंस्टेण्ट कॉफी और इंस्टेण्ट नूडल्स में ही मगन हो जाते हैं; पौराणिक हिंदुत्व इंस्टेण्ट कर्मफल से अंटा पड़ा है।… मुझे अपने धर्म में गूढ़ तत्व तो मात्र प्रस्थान-त्रय ग्रंथों (उपनिषद, ब्रह्मसूत्र और गीता) में दिखता है जो निचोड़ है। बाकी जो है, उसे हर व्यक्ति को स्वादानुसार लेना चाहिये। च्यवन ऋषि जैसे रहे हों, उनका च्यवनप्राश तो आज डाबर, झाण्डू, बाबा रामदेव आदि अनेकानेक को समृद्ध बना चुका है। भविष्य में च्यवनप्राश का शर्कराहीन वैरियेण्ट भी च्यवन ऋषि का नाम उज्ज्वल किये रहेगा। उनके बड़वाह के तपोस्थल पर एक कुण्ड का चित्र भी प्रेमसागर ने भेजा है, जिसके बारे में किंवदंति है कि उसका जल नेत्र-व्याधियों को हरने में समर्थ है। वह जल इस समय तो साफ नहीं दिखता। कभी उसमें औषधीय तत्व रहे होंगे। या अब भी हों, शैलेन्द्र पण्डित बता सकते हैं।

वन विभाग के रेस्ट हाउस में प्रेमसागर को भगवान जी केवट मिले। वे सेवा निवृत्त हो चुके हैं पर तीन साल से विभागीय सेवा पर ही हैं। पास के दो तीन किलोमीटर दूर गांव के रहने वाले हैं पर अपना सारा समय वन विभाग के रेस्ट हाउस को ही देते हैं। उनकी बहुत उपयोगिता होगी, तभी एक्स्टेंशन पर हैं और विभाग उन्हें छोड़ना नहीं चाहता।

वन विभाग के रेस्ट हाउस में प्रेमसागर को भगवान जी केवट मिले। वे सेवा निवृत्त हो चुके हैं पर तीन साल से विभागीय सेवा पर ही हैं।

ऊफ्फ! मेरा विभाग भी मुझे बहुत उम्दा मानता था। मेरे रिटायरमेण्ट के समय जो प्रशस्तिगायन हुआ था, उसे सच माना जाये तो मुझे आजीवन उसी पद पर बने रखा जाना चाहिये था। पर रिटायरमेण्ट से पहले ही मेरे पद पर बैठने को कई अधिकारी आतुर थे! …. भ्गवान जी केवट के पद से किसी को कोई ईर्ष्या नहीं होगी और उनकी कार्यकुशलता वास्तव में उत्तमोत्तम होगी। मैं उनको शुभकामनायें देता हूं। काहे कि, प्रेमसागर उनके आतिथ्य से गदगद महसूस कर रहे थे।

कल सवेरे प्रेमसागर माहेश्वर की यात्रा पर आगे बढ़ेंगे। उसका विवरण अगली पोस्ट में।

*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची ***
पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी
(गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) –
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर
2654 किलोमीटर
और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है।
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे।
प्रेमसागर यात्रा किलोमीटर काउण्टर

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

6 thoughts on “बड़वाह

  1. कथा की सत्यता च्यवनप्राश के प्रभाव से सिद्ध है। इतना उत्कृष्ट उत्पाद का सृजन करने के लिये दो तीन ऐसी कथायें स्वीकार्य हैं।

    Liked by 1 person

    1. आंख के लिए रामदेव का eye drop दृष्टि भी च्यवन ऋषि को attribute होना चाहिए. काम की चीज़ है. एक बार तो लगता है कि आंख गई. फिर साफ खूब अच्छे से हो जाती है. 😁

      Like

  2. धर्मार्थ काम मोक्षणामुपदेश समन्वितम ।
    पूर्ववृतम कथायुक्तम इतिहासम प्रचच्छते ।। दरअसल हमारा इतिहास उपरोक्त रूप में लिखा गया और अब नए यूरोपियन तरीके से हमने इतिहास पढ़ना सीखा , जिसके कारण अपने ग्रंथो को लेकर भ्रमित रहते है ।

    Liked by 1 person

  3. प्रणाम सर🙏🏻
    वाकई बहुत ही दुःख की बात है कि प्रेमसागर जी की सेवा का सौभाग्य नहीं प्राप्त हुआ। हालांकि यात्रा सुचारू रूप से चलती रहे यही भोलेनाथ से प्रार्थना है। और फिर भोलेनाथ की कृपा तो बरस ही रही उन पर। इतनी लंबी एवं कष्टकर यात्रा का इतने सुगम तरीके से चलना भी कम चमत्कारी नहीं है।

    Liked by 1 person

    1. चलिए लंबी यात्रा है. कहीं न कहीं आपसे मिलना हो सकता है उनका. आपकी शुभकामनाएं उनके साथ हैं, यह महत्वपूर्ण है…

      Liked by 1 person

आपकी टिप्पणी के लिये खांचा:

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started