धंधुका से आगे प्रेमसागर, वागड़ में

28 नवम्बर 21, रात्रि –

प्रेमसागर ने तीन दिन आराम किया धंधुका रेलवे स्टेशन के रेस्ट हाउस में। उन्होने कोरोना का टीका लिया और डाक्टर से परामर्श भी। डाक्टर ने उनकी सामान्य दशा ठीक ही पाई। तटवर्ती हवाओं की गर्मी और उमस से शरीर का जल कम हुआ था और प्रेमसागर ने पर्याप्त पानी पिया नहीं था। उन्हे पानी खूब पीने और दिये गये घोल को पीने के लिये निर्देश मिले। कुछ और दवाईयां भी दीं। इसके अलावा कीवी खाने को कहा – करीब 10-15 दिन तक। प्रेमसागर ने बताया कि बहुत मंहगा फल है – सत्तर रुपये का एक। फल वाले ने उन्हें साठ में दिया। वे खा रहे हैं।

कीवी खाने को कहा – करीब 10-15 दिन तक। प्रेमसागर ने बताया कि बहुत मंहगा फल है – सत्तर रुपये का एक। फल वाले ने उन्हें साठ में दिया। वे खा रहे हैं।

धंधुका में कुछ लोग प्रेमसागर से कौतूहल वश मिलने आये थे। अधेड़ और वृद्धावस्था की ओर अग्रसर लोग। सवेरे वे धंधुका स्टेशन के आसपास घूमने आते होंगे तो उन्हें प्रेमसागर के बारे में पता चला। उनमें से कुछ नौकरी करते हैं या नौकरी से रिटायर हैं। कोई किसान भी हैं। लोगों में प्रेमसागर जिज्ञासा का विषय तो हैं ही, धर्म आर्धारित श्रद्धा का विषय हों या न हों।

धंधुका में ये अधेड़ और वृद्ध लोग प्रेमसागर से मिलने आये थे।

रेलवे स्टेशन पर स्टेशन अधीक्षक साहब छुट्टी पर चले गये – उनकी रिश्तेदारी में कोई शादी का अवसर था। दूसरे मास्टर साहब ने प्रेमसागर को वह भाव नहीं दिया, पर नियत समय तक वे धंधुका में रहे जरूर। कल शाम उन्होने बताया कि वे फतेहपुर (जहां से मोटर साइकिल पर बैठ कर वे धंधुका आये थे) सवेरे जा कर वहीं से अपनी कांवर यात्रा जारी रखेंगे। आज वही किया।

कल रात पास के चाय वाले से बात की थी; वह भला आदमी सवेरे साढ़े चार बजे इनको मोटर्साइकिल पर बिठा फतेहपुर छोड़ने को तैयार हो गया था। आज सवेरे उसी के साथ नियत स्थान पर पंहुच कर वहां से यात्रा प्रारम्भ की।

सवेरे रास्ते में दिखा यह जैन स्थल। बहुत से स्थान हैं इस इलाके में जैन समाज के। पर वहां प्रेमसागर को ठहरने की सुविधा नहीं है। वे लोग ठहरने का चार्ज करते हैं।

सवेरे सात-आठ बजे जब मुझसे बात की प्रेमसागर ने तो वे फतेहपुर से धंधुका पार कर साढ़े तीन किलोमीटर आगे चल रहे थे। दोपहर तक वे किसी मंदिर में पंहुच कर रात के विश्राम का जुगाड़ बना चुके थे। उस मंदिर में कोई प्रवचन चल रहा था। कमरे में रुकने का विधिवत इंतजाम था। नक्शे में पास ही में भादर नदी दिखती है पर प्रेमसागर को वह दिखी नहीं। धंधुका -राणपुर मार्ग पर वह लगभग समांतर चल रही नदी है। मैं उसे ट्रेस करता हूं तो वह खम्भात की खाड़ी में जाती दीखती है। नक्शे में पाट चौड़ा है। नदी ठीकठाक होनी चाहिये।

इस मंदिर में रुके प्रेमसागर वागड़ में।

नक्शे में ही कोई ‘सुरधन दादा नू मंदिर’ दिखता है। जगह का नाम नजर आता है वागड़ (Vagad)। शायद वहीं रुके हों प्रेमसागर। पर वे मंदिर का नाम “रामदेव बापा” बताते हैं। मध्यम आकार का मंदिर है। प्रेमसागर ने बताया कि उन्हे रास्ते में आता देख पांच सात लोग सड़क पर आ कर उन्हें मंदिर में ले गये और उनका नाश्ता-पानी से सत्कार भी किया। उनके बारे में जान कर यात्रा के विषय में अश्चर्य व्यक्त कर रहे थे वे।

प्रेम कहते हैं कि वे अपनी कांवर हल्की कर लेंगे। कुछ कपड़े आदि कम करेंगे। किसी सुपात्र को दे देंगे। कांवर का वजन आधा कर चलते में सहूलियत रहेगी। वैसे भी यह धंधुका-राणपुर मार्ग ठीक ठाक है और आज गर्मी भी ज्यादा नहीं थी, इसलिये वे काफी चल पाये। रास्ते में एक बदाम के वृक्ष का चित्र भी लिया प्रेमसागर ने। बताया कि इस इलाके में बहुत से बदाम के वृक्ष हैं। बदाम यहां सस्ता मिलता है। दो सौ से पांच सौ रुपये किलो तक। वे एक दो किलो बदाम खरीद कर अपनी पोटली में रख लेंगे। मैंने उन्हे सुझाया कि सवेरे भीगे छिलका उतारे आठ दस बदाम खाया करें।

बदाम का पेड़

रास्ते में प्रेमसागर खपरैल के मकान और एक जगह मंदिर-मस्जिद के आमने सामने के होने के चित्र भी भेजते हैं। उनसे लगता है कि गांवदेहात का गुजरात अन्य भारत से बहुत अलग नहीं है। एक जगह कपास की खेती का चित्र भी है। जो यहां की जलवायु के अनुकूल फसल होगी।

इन दिनों प्रेमसागर की आगे की यात्रा पर उनसे कई बात बात होती रही है। मैं गणना कर बताता हूं कि अगर वे 15किमी प्रति दिन के हिसाब से चलते रहे तो सोमनाथ, नागेश्वर और महाराष्ट्र के तीन ज्योतिर्लिंग निपटा कर मई-जून के महीने में प्रयाग से केदार की यात्रा सम्पन्न कर सकेंगे। पर प्रेमसागर को खुद भूगोल की बेसिक जानकारी भी नहीं है और यह नहीं लगता कि वे दक्षता से गूगल मैप का प्रयोग भी करना जानते हैं। वे लोगों के कहे पर चल पड़ते हैं। ॐकारेश्वर में एक पण्डित की सलाह पर वे माहेश्वर से गुजरात की ओर चले आये; जबकि इस प्रकार वे (निरर्थक) 400 किमी अतिरिक्त चल रहे हैं। उस चलने में वे अपना स्वास्थ्य भी खराब कर चुके हैं। मैं बहुत तल्खी से उन्हे यह बताता हूं; पर उनपर कोई असर नहीं होता। वे बड़ी सरलता और जड़ता से लोगों पर यकीन कर लेते हैं। लोगों को यात्रा की पूरी समग्र जानकारी नहीं होती और उनकी सलाह पर एक गलत दिशा इस प्रकार का ब्लण्डर करा देती है।

अभी वे गुजरात के बाद राजस्थान के जरीये केदार जाने की बात कर रहे थे। किसी शुभेच्छु ने उन्हे पट्टी पढ़ाई होगी। मैं उन्हे बताता हूं कि जिस यात्रा को वे कर चुके हैं, उसके किसी बिंदु से वे केदार की यात्रा करें तो सबसे कम दूरी प्रयागराज से बनती है। गुजरात के किसी स्थान, उज्जैन या वाराणसी से केदारेश्वर की दूरी प्रयागराज से दूरी से अधिक बनती है। … पर नक्शे को ले कर मेरी गणना का उनके लिये कोई मतलब नहीं। मुझे नहीं लगता कि वे मेरी ब्लॉग पोस्ट भी ध्यान से पढ़ते होंगे। वे केवल यह देखते हैं कि मैंने कितने किलोमीटर की अब तक की उनकी यात्रा जोड़ी है। वे यह सोचते ही नहीं कि यात्रा इस प्रकार से की जाये कि इस लम्बी दुरुह यात्रा में कोई व्यर्थ दूरी न तय करनी पड़े। यात्रा किसी कठपुतली की तरह लोगों के कहे पर नाचना थोड़े ही होना चाहिये। पर प्रेमसागर को मेरा कहा समझ नहीं आता। :-)

आज इतना ही। प्रेमसागर प्रवचन सुन रहे हैं मंदिर में। मुझे जुकाम हो गया है। सवेरे सर्दी हो जाती है। साइकिल भ्रमण में सर्दी लग गयी है। यहीं रुका जाये।

हर हर महादेव!

*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची ***
पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी
(गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) –
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर
2654 किलोमीटर
और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है।
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे।
प्रेमसागर यात्रा किलोमीटर काउण्टर

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

4 thoughts on “धंधुका से आगे प्रेमसागर, वागड़ में

  1. प्रेम से समझाएं उन्हेन कि व्यर्थ न चलें और मंजिल का ध्यान रखें। यात्रा है – यूं ही भटकना थोड़े ही है।,

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  2. सुधीर खत्री फेसबुक पेज पर –
    यात्री और लेखक दोनों को स्वस्थ रखें महादेव, एक सुबह व एक दोपहर में कीवी सेवन से इनको लाभ होगा

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  3. शेखर व्यास फेसबुक पर –
    🙏🏻 प्रेम जी का उल्टा रास्ता जाना थोड़ा उलझन में मुझे भी डाल रहा था ।
    अब उनका स्वास्थ्य अच्छा है ,यह जानकर प्रभु महादेव का आभार 🙏🏻 प्रभु आपको भी पूर्ण स्वास्थ्य लाभ प्रदान करें ।

    श्री सोमनाथ से via rajsthan श्री केदार तो बहुत उलटा है । अभी तो द्वारिका क्षेत्र में श्री नागेश्वर ,फिर महाराष्ट्र और दक्षिण क्षेत्र के ज्योतिर्लिंग भी रहे हैं । वो दर्शन कब करेंगे ?

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