सवेरे के सात बज गये थे और मेरा बिस्तर से उठने का कोई मन नहीं था। ऐसा कम ही होता है जब वैसे कोई रुग्णता न हो, तब भी उठने का मन न करे। सामान्यत: मैं तीन से पांच बजे के बीच उठ जाता हूं। सभी खाली बोतलों और जग-लोटों को आरओ के पानी से भर लेता हूं। केतली में पानी गर्म कर चाय बना थर्मस में रख लेता हूं। एक तांबे के लोटे में रखा पानी पी कर नित्य कर्म से निपट लेता हूं। पर आज कुछ नहीं किया। सर्दी में सवेरे के सपने देखने का आनंद लिया। आज सारा काम पत्नीजी ने किया।
बाहर का गेट खोलने भी वे गयीं। दरवाजा खोलते ही उनका कहना था – फलाने के बाप, आज बहुत कोहरा है।
जब बहुत आश्चर्य वाली या नितांत व्यक्तिगत बात करनी होती है तो गांव में आने पर “फलाने की माई और फलाने के बाप” जैसे सम्बोधन निकलते हैं। हम लोग ‘अफसर और मेम साहब’ की सीढ़ियां चढ़ उतर कर अब फलाने की माई और फलाने के बाप के स्तर पर उतर आये हैं। गांव में रहने का असर है। 😆

कोहरा मेरा प्रिय विषय है। जब रेल का अफसर था तो बहुत भय लगता था कोहरे से। बहुत सारी दुर्घटनायें और ट्रेन परिचालन के बहुत से सिरदर्द कोहरे के नाम हैं। पर रेल सेवा से मुक्त होने पर कोहरे का रोमांच बहुत लुभाता है। मैने उठने में और मोबाइल ले कर बाहर जा कोहरा देखने में देरी नहीं की।
और सही में कोहरा घना था। इस सर्दी का सबसे घना कोहरा। इसके पहले दिन भर कोहरे में बीत चुका था। सूरज के दर्शन नहीं हुये थे, पर कोहरे का घनत्व आज ज्यादा था। दृश्यता 10 मीटर से ज्यादा नहीं होगी। बराम्दे/पोर्टिको से 30 कदम दूर गेट नहीं दिख रहा था। मेरी पत्नी जी बाहर निकलते समय मेरा गर्म जैकेट और उसपर अपना शॉल ओढ़े थीं। सिर और कान ढंकने के लिये शॉल सिर पर लिये थीं। कोहरा और वेश – दोनो मिल कर अजब तिलस्म बना रहे थे।

एक घण्टे में ही कोहरा जमीन से चिपका जस का तस था, पर ऊपर सूरज झांकने लगे थे। उसके बाद आधे पौने घण्टे में कोहरा लड़ाई हार गया। कोहरे के हारने से मुझे मायूसी हुई। नाश्ते में मटर की घुघुरी खाने का आनंद कुछ कम हो गया। जितना सर्द मौसम का अहसास हो, उतना बढ़िया लगता है मटर की घुघुरी का नाश्ता।

कोहरा पड़ने से प्रत्यक्ष लाभ हुआ है। गेंहू और सरसों की फसल को पानी मिल गया है। कोहरा इतना टपका है कि बौछार जैसा प्रतीत होता था। पिछले कई महीने बालू और मिट्टी ढोने वाले ट्रेक्टर हवा में गंद मचाये थे। धूल से सारी वनस्पति मटमैली थी। वह अब धुल गयी है। आजकल ट्रेक्टर-आतंक बंद है। बालू और मिट्टी का अवैध खनन जाने क्यों बंद है। भाजपाई मित्र उसका श्रेय योगी आदित्यनाथ को देते पाये गये। पर जब पिछले तीन महीने वातावरण धूल से भरा था, तब क्या वह सपाइयों की शह पर हो रहा था? हर चीज में राजनीति, प्रकृति से छेड़छाड़ में भी राजनीति सही नहीं है – चाहे भाजपा करे, या सपा या आआपा। ट्रेक्टर-आतंक तो ऐसा है कि कभी कभी लगता है गांव में बस कर कोई बुद्धिमानी का काम नहीं किया।
खैर, राजनीति की बात छोड़ी जाये। मूल मुद्दे पर आया जाये। कल कोहरा पड़ेगा?
LikeLike
LikeLike
LikeLike
LikeLike
कोहरे से मुझे मेरे सुबह सुबह स्कूल जाने वाले दिन याद आ गये।मैं सोचता था कि कोहरा में कोई आया नहीं होगा लेकिन जाने पर देखता तो सारे लोग डटे मिलते थे।
आपके सुबह सुबह चाय बनाने वाली दिनचर्या ने मुझे अपने इलाहाबाद वाले दिन,सुबह ५:३० बजे उठकर चाय चढ़ा देने की याद दिला गया। अभी आपने फिर से प्रेरित कर दिया तो लगता पत्नी जी को थोड़ा आराम मिलने वाला है। 😀
LikeLiked by 1 person
बनाने की आदत पड़े तो बताइयेगा. आपके घर चाय कौन सी पसंद की जाती है? नींबू की या दूध वाली?
LikeLike
दोनो बनाते हैं,वैसे ज़्यादातर दूध वाला ही रहता है।
LikeLiked by 1 person
LikeLike
LikeLike