तेंदुआकलाँ का बनवासी सनी

मैंने मोहन बरम के बारे में लिखा था। वह स्थान धनावल में है, मिर्जापुर जिले में। मेरी पुत्रवधू का मायका है। उसके पिताजी की जमीन पर ही है मोहन बरम का थान। बबिता, मेरी पुत्रवधू, अपने मायके गयी थी साथ में मेरी पोती चिन्ना (पद्मजा) पाण्डे को साथ लिये।

चिन्ना पाण्डे का फोन आया – बाबा, एक फोटो भेजा है। देखिये। बहुत अच्छा है। बर्तन टांगने का चीज है।

चिन्ना पांड़े, पलाश की जड़ के रेशे की रस्सी से बनी बकेल दिखाते हुये।

मैंने चैट साइट पर देखा। कुछ वैसा लगा मानो पशुओं के मुंह पर उन्हें चरनी या खेत में मुंह मारने से बचाने के लिये खोंचा बनाया हो मजबूत रस्सी से। पर उसे सीखर कहा जाता है। और वह (आजकल के चलन के हिसाब से किसी सिंथैटिक रस्सी से नहीं) पलाश की जड़ के रेशों से बुन कर बनता है। पूर्णत: प्राकृतिक संसाधनों से बना उपकरण। घरों में, झोंपड़ियों में छत से लटका कर मेटी-कमोरी या अन्य भोज्य पदार्थ लटकाने के लिये इस्तेमाल हो सकने वाली चीज। इस पलाश की रस्सी को बकेल कहा जाता है। विकीपेडिया पर इसके लिये बांख शब्द का भी प्रयोग हुआ है।

पहली बार मुझे पता चला कि पलाश या छिउल की जड़ों के रेशे की रस्सी भी बनती है। मजबूत रस्सी। पलाश का हर अंग उपयोगी है। इसके दण्ड को ले कर ही बटुक का यज्ञोपवीत होता है। इसके पत्ते, फूल, फल, छाला – सब का ग्रामीण और वनवासी प्रयोग करते हैं। महुआ की तरह इसका सब कुछ उपयोगी है; पर यह महुआ की तुलना में कहीं अधिक शुभ और पवित्र वृक्ष माना जाता है। विकीपेडिया पर मुझे यह जानकारी मिली कि इसकी जड़ के रेशे से रस्सियां बुनी जाती हैं।

सनी अपने सीखर दिखाते हुये।

बबिता ने बताया कि पलाश के जड़ों से रस्सी (बकेल) और उससे विभिन्न उपकरण बनाने वाले आदमी हैं सनी। पास के गांव तेंदुआ कलाँ (ब्लॉक लालगंज, जिला मिर्जापुर) के बनवासी हैं। पलाश की रस्सी के कई उपकरण बनाते हैं। पर अब सिंथैटिक रस्सी का प्रचलन बढ़ गया है तो बकेल का बाजार ही खत्म हो रहा है। अब सनी की कारीगरी की वह पूछ नहीं रही। मोलभाव कर एक सीखर उन्होने 40 रुपये का दिया। बबिता से आधा दर्जन सीखर हमने मंगवाये। तुरंत उसका प्रयोग मेरी पत्नीजी ने अपने गमले टांगने में कर लिया।

पलाश की रस्सी से बुने सीखर से गमला टांगता मेरा वाहन चालक गुलाब चंद

सीखर का मुख्य प्रयोग दूध दही या भोजन के बर्तन ऊंचाई पर टांगने के लिये ही होता है, जिससे वे पदार्थ बिल्ली-कुत्ते की पंहुच में न आ सकें। हमारे घर में रस्सी पर रंग कर सीखर को और आकर्षक बनाने और उसके अन्य प्रयोग करने पर चर्चा हो रही है। सनी बनवासी ने बताया है कि वे अन्य कई प्रकार के उपकरण बनाते हैं। पलाश, बांस, कुशा, सरपत और कासा के प्रयोग से अखनी, भऊंकी, टोकरी, दऊरी आदि अनेक चीजें बनती हैं। उनको खरीदने के लिये भी उत्सुकता बनी है। जब हमारे घर में ऐसी उत्सुकता है शहरी मानस में भी बनेगी ही। शहरी मध्य और उच्च वर्ग तो प्लास्टिक और सिंथैटिक का विकल्प तलाश ही रहा होगा जो अनूठा दिखे और कुछ सीमा तक ड्यूरेबल हो। इन चीजों की सही मार्केटिंग किये जाने पर उनके लिये वाजिब बाजार बन ही सकता है।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

11 thoughts on “तेंदुआकलाँ का बनवासी सनी

  1. गुलमोहर के पुष्प मैंने मामाजी के घर पर देखे है बहुत ही मनमोहक दिखते थे। ऐसा प्रतीत होता था मानो वाटिका ने अपनी सम्पूर्ण ऊर्जा उसीमें समाहित कर दिया हो।
    चिन्ना रस्सियों के साथ बड़ी cute दिख रही हैं। सही कहा आपने मेपल की तरह है।

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  2. सुश्री चिन्‍ना पाण्‍डे भी आपकी तरह परिवेश को ऑब्‍जर्व करना सीख रही हैं।

    ग्रामीण क्षेत्रों में बनने वाले ऐसे उत्‍पादों की मांग तो बहुत है, लेकिन उत्‍पादन से एंड यूजर तक प्रॉपर चेन नहीं है। अमेजन से ऐसी बहुत सी चीजें मंगवाता रहता हूं, लेकिन खर्च दो से तीन गुना तक होता है। अगर मास लेवल प्रॉडक्‍शन हो या सप्‍लाई चेन प्राॅॅपर हो तो सामानान्‍तर बड़ा बाजार बन सकता है।

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  3. पलाश के पुष्पों की पंखुड़िया ऊपर की ओर इस तरह से उभरी होती हैं, जैसे मानो आग की लपट हो। इसे “जंगल की आग” भी कहा जाता है।एक पौराणिक कथा के अनुसार यह अग्निरूपकता इतनी लोकप्रिय हुआ कि उसे अग्नि का ही अवतार मान लिया गया।
    एक पुराणकथा के अनुसार शिव और पार्वती का एकांत भंग करने के कारण अग्निदेव को शापग्रस्त होकर पृथ्वी पर पलाश के वृक्ष में जन्म लेना पड़ा।
    पलाश उत्तर प्रदेश का राज्य पुष्प भी है।🙏🙏🙏

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    1. वसंत में पलाश और गुलमोहर की छटा देखते ही बनती है. आपके यहां के maple 🍁 ट्री से कम मोहक नहीं होती वह. वास्तव में अग्नि की तरह! 🔥

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  4. वैकल्पिक उपयोगिता हो सकती है जैसे आपने गमले टांग कर किया अन्यथा अब खाना इत्यादि के लिए तो जरूरत नहीं रही शहरों में.

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  5. तरुण शर्मा, ट्विटर पर –
    इन उत्पादों को बाजार में आना चाहिए, जिससे इससे जुड़े लोगों का भला हो और सिंथेटिक उत्पादों का उपयोग कम हो।

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  6. बबन पंडित फेसबुक पेज पर –
    इसकी मोटी जड से दिवालों की चूने से पुताई भी करते हैं, जड का एक सिरा कूट कूट कर ब्रश जैसा बना लेते हैं

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  7. गजेंद्र कुमार साल्वी, फेसबुक पेज पर –
    नमस्ते सर…. काफी समय बाद आपकी पोस्ट प्राप्त हुई 🙏

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  8. दुर्गेश कुमार पांडेय, फेसबुक पेज पर –
    सर् प्रणाम, पलाश के फूल का शर्बत भी बहुत शानदार और रिफ्रेशिंग होता है। एक मर्तबा DLW के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पिलाया था। बहुत शानदार अनुभव रहा। गर्मियों में लू से बचाता है।

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