रविवार के लोग

रविवार को अतिरिक्त गतिविधि होती है घर में। रामसेवक आते हैं। सप्ताह में एक दिन वे हमारे बगीचे को संवारते हैं। उसके बाद बगीचे की दैनिक देखभाल मेरी पत्नीजी करती हैं। रामसेवक तीन चार घण्टे लगाते हैं और उनके काम में पूरी दक्षता, पूरा समर्पण रहता है। आसपास के गांवों में और शहरों में भी उनके जैसा कर्मठ व्यक्ति दिखता नहीं।

सवेरे ही राजकुमार आता है। वह मेरी साप्ताहिक मालिश करता है। पैर, हाँथ, बदन, कंधे; सब की। उसको वह करने में ज्यादा समय नहीं लगता। करीब बीस मिनट। आठ दस महीने से वह यह कर रहा है। शुरू में वह मुझे बहुत अच्छा लगता था। शरीर हल्का हो जाता था। अब लगता है कि वह सब यंत्रवत होता जा रहा है। पर फिर भी सिस्टम चल रहा है। कोरोना काल का जब पीक था, तब भी यह सिस्टम चला।

मैं चाहता हूं कि यह मालिशानुशासन खत्म किया जाये। शरीर में तेल की गंध बनी रहती है। कपड़े भी तेल और उसके बाद उनपर जमने वाली धूल से चीकट हो जाते हैं। पर बदन के दर्द का कोई और उपाय नहीं लगता। उम्र का भी शायद तकाजा है। मधुमेह के कारण त्वचा भी रूखी हो जाती है, विशेषकर सर्दियों में। तेल मालिश रूखेपन और उसके कारण होने वाली एलर्जी से भी बचाती है। इसके अलावा, शायद राजकुमार को भी अतिरिक्त आमदनी की जरूरत है। सो यह चल रहा है।

बगीचे के एक छोर पर बैठे चाय पीते राजकुमार और रामसेवक

पत्नीजी रामसेवक के और राजकुमार के आते ही उनके लिये चाय का इंतजाम करती हैं। घर में आने वाले लोग चाय की अपेक्षा रखते ही होंगे। चाय अनुष्ठान भी साप्ताहिक-दैनिक जरूरत है। मैं इस अनुष्ठान की कॉस्टिंग करने का बहुधा प्रयास करता था। उसके कारण बढ़े दूध, चीनी या अदरक के खर्चे की बात करता था। मेरी पत्नीजी मेरी उस आदत को चिरकुटई की श्रेणी में मानती हैं। अब मैंने भी उस स्वभाव को त्याग दिया है।

रामसेवक जी के नाती और राजकुमार का बालक अर्जुन कभी कभी सवेरे गेट से झांकते आ जाते हैं। उनके लिये घर में पत्नी जी टॉफी-कम्पट रखती हैं। पहले उन सब को डांटा जाता है कि किसी फूल को हाँथ लगाने की कोशिश न करें। उसके बाद एक एक टॉफी दी जाती है!

रामसेवक के साथ फावड़ा चलाते गुलाब चंद्र

नौ बजे तक मेरे ड्राइवर – गुलाब चंद्र भी आ जाते हैं। गुलाब भी बगीचे के काम में हाथ बंटाते हैं थोड़ा-बहुत। पौधों को पानी देने में तो वे मेरी पत्नीजी के साथ लगे ही रहते हैं। आज एक नयी क्यारी बनाने के लिये उन्होने रामसेवक के साथ फावड़ा चलाया।

चाय के बाद सवेरे के नाश्ते का नम्बर आता है। पत्नीजी ने सवेरे के नाश्ते को भी उनके साथ शेयर करने का नियम बना दिया है। सो, वह मेरे चिरकुटत्व को और भी कष्ट देने लगा था। अंतत: एक दिन मुझे रेवेलेशन हुआ। यह रेवलेशन कि दमड़ी को इस तरह दांत से पकड़ना कोई अच्छी बात नहीं; और एक भूतपूर्व अफसर के लिये तो और भी बेईज्जती की बात है। मेरा चिरकुटत्व मर गया। शायद। वैसे सूम भावना कब किस रूप में आपके पर्सोना को कोंचने लगे, कहा नहीं जा सकता।

रविवार के सवेरे के नाश्ते में कचौरियां बन रही हैं और दो का पहाड़ा पढा जा रहा है।

आज नाश्ता स्पेशल है। मटर, दाल भर कर कचौरी बनी है। साथ में कबुली चने की तरी। कुसुम कचौरी छान रही है। पत्नीजी सबको दो दो कचौरी देने के लिये रसोईं में लोगों की संख्या गिन रही हैं और दो का पहाड़ा पढ़ा जा रहा है। अगर कचौरी का मसाला कम पड़ा तो सिम्पल पूरी भी निकालने का प्रावधान है।

रविवार की यह क्रियायें हम लोगों के जीवन में उत्सव की तरह बनती जा रही हैं। साप्ताहिक उत्सव। इनके लिये शुरू में अहसास नहीं हुआ; पर अब धीरे धीरे कण्डीशनिंग हो गयी है। हम दम्पति को रविवार की प्रतीक्षा रहती है। ग्रामीण सामाजिकता का यह अध्याय आगे और पुख्ता हो। और कुछ जुड़े। पोस्ट रिटायरमेण्ट नीरसता में कमी आये; इसकी सोच पनपती है।

पर यह सोच एक अंकुर भर है। इसके लिये हवा-पानी-धूप कब कम पड़ने लगे, कब मन उचट जाये, कब हम लोग अपने खोल में दुबकने लगें; कहा नहीं जा सकता। पर अभी तो रविवार और रविवार के लोगों की प्रतीक्षा होती है!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

12 thoughts on “रविवार के लोग

  1. आदरणीय ज्ञान दत्त जी, आपके पोस्ट का इंतजार रहता है। हिंदी में लिखी गुणवत्ता वाली पोस्ट कम ही है और आपका पोस्ट इस कमी की भरपाई करता है। आपका पोस्ट पढ़कर बगैर कोई कमेंट लिखें आगे बढ़ जाऊं तो यह भी एक तरह की चिरकुटता ही होगी ।आपके पोस्ट का इंतजार रहेगा। आपके घर परिवेश के रविवार का वर्णन हमारा रिटायरमेंट कैसा हो की एक मानसिक तस्वीर बनाने में मदद करता है

    Liked by 1 person

    1. धन्यवाद रवि जी कि आप और कई अन्य लोग भी पोस्ट रिटायरमेंट जीवन की कल्पना करने के लिए मेरी पोस्टों को उपयोगी मानते हैं.
      कुछ तो सार्थकता अनुभव होती है. 😊

      Like

  2. सबके चिरकुटत्व का फोकस भी अलग अलग होता है. कोई चीनी के अतिरिक्त व्यय में चिरकुटई करता है पर बिजली पंखे चलते छोड़ देता है! हमारे ही अंदर जैसे देव दानव दोनों होते हैं वैसे चिरकुटत्व और औदार्य दोनों होते हैं! बरसों की कंडीशनिंग के अनुसार वे बारी बारी से बाहर आते हैं. मुझे भी ये ब्रह्मज्ञान एक दिन तब प्राप्त हुआ जब घी बनाते समय अंतिम घी की बूँद को निचोड़ लेने के संकल्प में कढ़ाई को चलनी पे साधने की कोशिश में चलनी के नीचे रखी घी की बरनी लुढ़क गई!!!

    वैसे रीताजी का संडे कब होता है?

    Liked by 1 person

    1. रीता जी का संडे – रूटीन से बिल्कुल अलग चलना – तो साल में 4-5 दिन से ज्यादा नहीं होता होगा. 🤔

      Like

  3. यहाँ देखने वाली बात यह है कि आपके रविवार का इंतेज़ार ३ और परिवारों को रहता है जो कि प्रत्यछ/अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं। यह आप दोनो लोगों की उनके प्रति विशाल हृदय की उदारता है जो इतना करते हैं,नहीं तो मैंने कईयों को देखा है कि चाय नाश्ता करवाने में भी बहुत तकलीफ़ होती है और उनको सुना भी देते हैं।
    तुलसी पंछी के पिये,घटे न सरिता नीर,
    दान किए धन ना घटे,जो सहाय रघुबीर।
    🙏🙏🙏

    Liked by 1 person

  4. Umesh Pandey फेसबुक पेज पर –
    साहबजी🙏🙏
    आप और आपके चिरकुटत्व अद्भुत विष्लेषण।आपकी सरलता सहृदयता को साष्टांग दण्डवत🙏

    Like

  5. तरुण शर्मा, ट्विटर पर –
    एक सामान्य रविवार का असाधारण चित्रण। आपके लेख पढ़ते हुए कभी-कभी रस्किन बांड की कथायें याद आती हैं, जैसे वह सामान्य सी घटनाओं का दिल छूने वाला असाधारण, आलस भरा चित्रण करते हैं वैसा ही आपके इस लेख को पढ़कर लगा।
    चिरकुटत्व का भान होना और उससे मुक्ति पाना भी बड़ी उपलब्धि है। 😁😁

    Like

Leave a reply to Gyan Dutt Pandey Cancel reply

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started