दीर्घजीवन की सेंच्यूरी मारने की इच्छा शायद मेरे शहरी जीवन त्याग कर इस ग्रामीण अंचल में बसने के निर्णय के मूल में है। हो सकता यही चाह सुनील जी को गड़ौली धाम लाई हो। जो हो; इस शतकीय सोच की एक एक गेंद खेलना और लिखना है!
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
दीर्घजीवन की सेंच्यूरी मारने की इच्छा शायद मेरे शहरी जीवन त्याग कर इस ग्रामीण अंचल में बसने के निर्णय के मूल में है। हो सकता यही चाह सुनील जी को गड़ौली धाम लाई हो। जो हो; इस शतकीय सोच की एक एक गेंद खेलना और लिखना है!