घर के बगीचे में

लॉकडाउन के समय मेरी पत्नीजी इस ब्लॉग पर एक को-ऑथर के रूप में घर की गतिविधियों के बारे में लिखा करती थीं। फिर उनका अभ्यास छूट गया। मेरे ख्याल से एक फेसबुक पेज बना कर उन्हें घर के बारे में लिखना चाहिये।

पर घर में उनकी चलती है। मेरे ख्याल का क्या?! :-D

अब आज देखा – छितवन के पेड़ पर एक घोंसला टांगा है – चिडिया का कार्ड-बोर्ड का बना घर। अपेक्षा थी कि उसमें छोटी चिड़िया – मुनिया, गौरय्या या रॉबिन भी – अपने अण्डे दे कर बच्चे पालेगी। पर उन्हें यह पसंद नहीं आया। वे पेड़ों पर केमॉफ्लॉज करते हुये अपना घोंसला बनाना, अपनी मेहनत से बनाना पसंद करती हैं। रॉबिन जरूर ऐसे कार्ड बोर्ड के घोंसले इस्तेमाल करती है। पर ज्यादातर गिलहरी अपना कब्जा जमाती है।

छितवन के पेड़ पर एक घोंसला टांगा है

गिलहरी हमारे ही घर के छोटे कपड़े चुराती है। दो जोड़ी मोजे उसकी चोरी से ही बरबाद हुये हैं, और उनमें से एक तो नया ही था। कपड़े, कतरन, रेशे, पत्तियों के लंबे टुकड़े – वह सब घोंसले में पैक करती है। इस तरह कि लगे कि इस घोंसले में कुछ भी नहीं है। फिर उसमें वह चुपके से आ कर बच्चे जनती है। महीना भर आती जाती रहती है। बच्चों को दूध भी पिलाना होता होगा। शायद कुछ खाने की चीजें भी वहां जमा करती हो। यह भी हो सकता है कि लंबे अर्से तक वह वहीं जमी रहती है, इसलिये अपने भोजन का भी इंतजाम करती हो।

अब इस छितवन के घोंसले पर गिलहरी अपना कब्जा जमा चुकी है। उसने सारे छेद कतरनों-करकट से पैक कर दिये हैं। अभी यह किये दो दिन ही गुजरे हैं। शायद बच्चे जन दिये हों।

गांव में सीसीटीवी का इन्तजाम नहीं है, वर्ना एक कैमरा वहीं छितवन पर फोकस कर महीना भर की गतिविधि रिकार्ड करना बहुत रोचक होता।

घर में एक नांद है। मेरे साले साहब, शैलेंद्र दुबे, मेरे पड़ोसी की गौशाला की एक स्पेयर नांद मेरी पत्नीजी मांग कर ले आयी थीं। उसमें पानी भर कर एक कमलिनी की कलम लगा दी गयी थी। एक साल बाद लगा कि शायद मर गयी है कमलिनी। यह सोचा कि पानी बदल कर फिर प्रयोग किया जाये। या सब कुछ हटा कर नांद साले साहब को सधन्यवाद वापस कर दी जाये। पर कमलिनी को शायद हमारा इरादा पसंद नहीं आया। वह फिर से पनपने लगी। पूरे नांद में फैल गयी। और आज उसके इस दूसरे अवतार में पहला फूल खिला!

कमलिनी को शायद हमारा इरादा पसंद नहीं आया। वह फिर से पनपने लगी। पूरे नांद में फैल गयी। और आज उसके इस दूसरे अवतार में पहला फूल खिला!

उसका चित्र आज पत्नीजी ने भी खींचा और मैंने भी। वे तो शायद अपने चित्र को ह्वात्सएप्प के अपने ग्रुप/ग्रुपों में प्रेषित करें। मैं उसे ब्लॉग पर ही चिपका रहा हूंं। नांद, कमलिनी, कार्पेट घास का लॉन, गमले और विभिन्न पौधे – फूल – सब मेरी पत्नीजी और मेरे माली रामसेवक जी की मेहनत है। उनके पास इस बागवानी विधा और उसमें पलते जीवजंतुओं के बहुत से अनुभव हैं और बहुत सी कहानियां भी। वे उन्हें ब्लॉग पर प्रस्तुत करें तो छोटे-मोटे रस्किन बॉण्ड (0.10RuskinBond) जैसा काम हो सकता है। पर पता नहीं उनका यह करने का मन होगा या नहीं। …. लिखने और अभिव्यक्ति के लिये आधा बीघे का घर का परिसर बहुत होता है। पूरी दुनियाँ इसमें समा सकती है।

कमलिनी

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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