गांव का लेवल क्रॉसिंग बंद था और मेरे आगे एक फेरीवाला अपनी मॉपेड के साथ खड़ा था। एक बड़ी खांची में सामान लिये। वह अगर खांची में ओवर डायमेंशनल कंसाइनमेण्ट न लिये होता तो बहुत सम्भव है कि लेवल क्रॉसिंग गेट को मॉपेड झुका कर पार कर गया होता। पर उसकी मजबूरी थी रुकना। मेरी भी मजबूरी थी बंद गेट ट्रेन के चले जाने और उसके दो मिनट बाद फाटक के बूम के ऊपर उठने का इंतजार की। जिंदगी भर मैंने इसी बात में गुजारी है कि लोग लेवल क्रॉसिंग के नियमों का पालन करें। अब खुद उस नियम को तोड़ तो नहीं सकता। 😦

समय गुजारने के लिये मैंने चित्र लेने शुरू कर दिये। उस मॉपेड वाले से बात करनी भी प्रारम्भ की। खांची में और थैलों में वह काफी सामान लिये था। गांव में जो बिक सकता है – टॉफी, चूरन, पूपली और कंफेक्शनरी के बहुत से आईटम। किण्डर ज्वॉय – जो बच्चों को बहुत प्रिय है और तीस चालीस रुपये का आता है (वह मध्यम वर्ग के बच्चे ही खाते होंगे) का डूप्लीकेट का एक पैकेट भी था जिसपर लिखा था – मिस्टर फन बनी। चोको बीन्स। उसने बताया कि वह पांच रुपये का मिलता है मार्केट में। पूपली – चावल की तली कुरकुरी नमकीन जो एक पाइप के आकार की होती है; की बजाय चौड़ी और कई छेदों वाली लाल और पीले रंग की मिली जुली पूपलियों के कई पैकेट थे। एक पैकेट बीस रुपये का। खुदरा में दो रुपये का एक बेचते होंगे दुकानदार। उसका नाम फेरीवाले ने बताया – “लोग चिप्स कहते हैं पर हम उसे भिण्डा कहते हैं। कटी भिण्डी जैसा दिखता है।”

अधिकांशत: फन बनी और भिण्डा ही था उसके पास; पर थैलों में और भी बहुत तरह के आईटम थे। दोनो तरफ लटके थे थैले। उन सब के साथ वह कैसे मॉपेड चलाता होगा, वह अपने आप में कारीगरी है। कोई मोटर-वैहीकल लाइसेंस देने वाला ऐसे वाहन की दशा के अनुसार लाइसेंस नहीं देता होगा। पर उस फेरीवाले को ऐसे सामान के साथ हाईवे पर नहीं गांव की पंचायती सड़कों और पगडण्डियों पर ही चलना होता है।
उस व्यक्ति ने अपना नाम बताया – लोलई राम गुप्ता। वह कटका में रहता है। सामान बनारस से ले कर आता है। भिण्डा का कच्चा माल भी लाता है बनारस से और उससे तल कर पैकिंग अपने घर नुमा कारखाने में करता है। अकेले ही यह काम करता है। बच्चे अभी पढ़ रहे हैं। स्कूल जाते हैं। उनको इस व्यवसाय में नहीं लगाया। बनारस से सामान लाना; भिण्डा बनाना और फेरी लगा कर आसपास के पांच सात किमी के इलाके में बेचना; यही उसका उद्यम है।
लोलई राम ने बताया कि दिन भर का टर्न ओवर छ से सात हजार का होता है। बिके सामान पर आठ से दस प्रतिशत का मुनाफा होता है। मोटे अनुमान से पंदरह हजार महीने की आमदनी। गांव देहात की लेबर फोर्स सामान्यत: पांच-सात हजार कमाती है। उस हिसाब से लोलई राम का उद्यम अच्छा ही कहा जायेगा। कोई बम्बई जा कर पच्चीस हजार भी कमाये, उसकी बजाय लोलई का यह बिजनेस मॉडल कहीं बेहतर है।

ट्रेन चली गयी थी। लेवल क्रॉसिंग खुल गया था। मैं फटका पार कर बांयी ओर अपने घर की ओर अपनी साइकिल को मोड़ चला और लोलई राम ने अपनी मॉपेड दांये मोड़ी चमरऊट की ओर। वहां घरों में तीन चार दुकानें हैं जो लोलई राम गुप्ता जी के सामान बेचती हैं। गांव में हर गली मुहल्ले में किराने और कंफेक्शनरी की दुकानें हैं। एक बड़ी अण्डर एम्प्लॉयेड लोगों की फौज ऐसी दुकानें चलाती है। लोलई राम के उत्पाद हर गली नुक्कड़ पर मिलते हैं। बड़ा बाजार है इन चीजों का और लोलई राम उनका सही दोहन कर रहे हैं।
तुम भी एक मॉपेड खरीद लो जीडी! एक मॉपेड कितने की आती है?
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