गांव के सामने की नेशनल हाईवे 19 पर अलग सा दीखता दृष्य था। मोटर साइकिल पर फ्लैक्सी शीट पर ‘दण्डवत परिक्रमा’ का विवरण दिखाता एक नौजवान धीरे धीरे चल रहा था। मोटर साइकिल बंद थी। वह अपने पांवों से ही चल कर आगे बढ़ रहा था। उसके आगे एक दूसरा नौजवान सड़क पर लम्बा लेट कर दूरी नाप रहा था। उसके हाथ में एक पत्थर की गुट्टक थी। जिसे वह अपने हाथ आगे फैला कर सबसे अधिक दूरी पर रखता था और फिर उठ कर गुट्टक वाली जगह अपना पैर रख पुन: दण्डवत लेटता था।
लगभग तीस सेकेण्ड में वे तीन गज की दूरी नाप रहे थे। यह बड़ी कष्टसाध्य यात्रा थी। उमस थी और बयार भी चौआई चल रही थी। कभी कभी रुक भी जाती थी।

मोटर साइकिल वाले ने मुझे प्रसाद दिया, एक मुट्ठी लाई। अपना नाम बताया – रवि। आगे दण्डवत यात्रा करने वाले बड़े भाई का धर्मेंद्र। वे लोग चंदौली के अपने गुरू जी के आश्रम से दण्ड-यात्रा कर रहे हैं और बुलंदशहर तक जायेंगे। लगभग 850 किमी की यात्रा। उनके गुरू जी का चंदौली में जन्मस्थान है और बुलंदशहर में उनका बड़ा आश्रम है।
अपनी श्रद्धा और गुरू के प्रति आस्था जताते हुये धर्मेंद्र और रवि यह दण्डयात्रा-अनुष्ठान कर रहे हैं। बकौल रवि, यह पांच छ महीने तक चलेगा।

मैं दो चार चित्र ले कर आगे बढ़ गया। दण्ड करते धर्मेंद्र जी ने शायद मुझे नमस्कार भी किया। उनसे बात करने का अवसर नहीं था। पर जब मैं साइकिल सैर कर वापस लौट रहा था तो शिवाला के पास एक जलेबी वाले से जलेबी खरीदते धर्मेंद्र जी को देखा। उनके सीने पर सड़क की मिट्टी लगी थी और पसीने से कमीज भीगी थी। जलेबी खरीद कर उन्होने एक बछ्ड़े को बड़े प्यार और आदर से खिलाई। बछड़ा भी उनके साथ लाड़ से अपना मुंह उनके पैर से रगड़ रहा था। कभी कभी सींंग भी छुआ देता था। धर्मेंद्र ने जलेबी खिला कर पुचकारा, छुआ। बछड़े और धर्मेंद्र की आत्मीयता से मुझे लगा कि यह शायद उनके दण्ड यात्रा में साथ साथ चला आ रहा हो। पर धर्मेंद्र ने बताया कि वह तो यहीं आसपास दिखा था।

एक दिन में धर्मेंद्र तीन-चार किमी लेट-लेट कर चलते हैं। उनके मोटर साइकिल पर कामचलाऊ समान रखा है।
धर्मेंद्र ने बताया कि वे बुलंदशहर के रहने वाले हैं और मौनीबाबा के आश्रम से जुड़े हैं। वहां आसपास उनके कई आश्रम हैं और उनके बीच बीस इक्कीस किलोमीटर की दण्डवत यात्रा वे कार चुके हैं। अब उनकी आस्था बाबा के जन्मस्थान से यात्रा करने की हुई। वे बाईस मई को दण्डवत यात्रा प्रारम्भ कर यहां तक पंहुचे हैं। हर दिन, बिना नागा वे आगे बढ़ते हैं। स्वास्थ्य ठीक रहा तो वे यह यात्रा पूरी करेंगे ही।
मैंने धर्मेंद्र जी से मोबाइल नम्बर आदान प्रदान किया। मुझे नहीं मालुम की उनकी यात्रा के बारे में आगे वैसा कुछ लिखा जा सकेगा, जिसपर लोगों को रुचि जमे। पर आगे भी मैं उनसे सम्पर्क में रहने और उनकी यात्रा के बारे में जानकारी लेने का प्रयास करूंगा। उनकी यह यात्रा मुझे आस्था का हठ लगती है। पर सम्भवत: इसके माध्यम से भी व्यक्ति का आत्मिक-आध्यात्मिक विकास होता हो। मुझे यह भी जानने की उत्कण्ठा होगी कि इसके माध्यम से धर्मेंद्र और रवि जी के व्यक्तित्व में क्या परिवर्तन होते हैं।
कुल मिला कर मुझे धर्मेंद्र-रवि की यह दण्ड-यात्रा अनूठी लगी। मेरे घर के पास की नेशनल हाईवे उन जैसे लोगों से मिलाती रहती है। नेशनल हाईवे भी एक नदी की तरह है मेरे लिये जो विविध दृष्य, विविध अनुभव कराती है। वह भी एक गंगा ही है! लाइफलाइन!
धर्मेंद्र मुझे कल मिले थे। एक दिन में तीन-चार किमी चलते हैं तो आज भी आसपास ही होंगे। यहां से औराई तक पंहुचे होंगे। … कछुये की चाल से आगे बढ़ती यह यात्रा उसी तरह उन्हें विजयी बनायेगी, जैसे कछुये को खरगोश पर विजय मिली थी।
श्रद्धा और आस्था की विजय होगी ही।
धर्मेंद्र और रवि की जय हो!

वाह गज़ब की निष्ठा और संकल्प है ,धर्मेद्र जी को मेरा प्रणाम है ।
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Sudhir Khatri फेसबुक पेज पर
कुछ हो न हो लेकिन इनकी हिम्मत,साहस और जज्बा तो बूस्ट आप हो रहा है, इनकी यात्रा पर ब्लाग बनता है
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Dinesh Kumar Singh फेसबुक पेज पर –
दीवानापन।
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शैलेन्द्र कपिल, फेसबुक पेज पर –
अपनी अपनी आस्था है
दणडवत प्रणाम को मिली मान्यता है
तभी तो स्थापित होती जा रही,
विवेचना होकर साधना की पराकाष्ठा है।
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101 नहीं 108 पढ़ें – अगली ट्वीट में लिखा गया।
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